ऐसा बनाया नक्शा कि रोपवे ने शहीद सरदार उधम सिंह की प्रतिमा को भी नहीं बख्शा

ऐसा बनाया नक्शा कि रोपवे ने शहीद सरदार उधम सिंह की प्रतिमा को भी नहीं बख्शा
  • रोपवे की आंधी में शहीद उधम सिंह की प्रतिमा कहां गायब हो गई पता नहीं
  •  जिस स्थान पर प्रतिमा लगी थी उस पिलर पर रोज  चढ़ायी जाती है माला
  • उधम सिंह ने जालियांवाला बाग हत्याकांड का लिया था बदला 
  • 21 साल बाद लंदन जाकर माइकल ओ-डायर की गोली मार कर की थी हत्या

राधेश्याम कमल

वाराणसी (रणभेरी): रोपवे के चलते न जाने कितनों का व्यापार चौपट हो गया और न जाने कितने लोग बेरोजगार हो गये। बनारस की हृदयस्थली मानी जाने वाले गिरजाघर पहले कितना गुलजार हुआ करता था लेकिन जब से रोपवे का निर्माण कार्य शुरू हुआ इस इलाके की खुशियां जैसे छीन गई है। गिरजाघर के आसपास लगने वाला बाजार भी  प्राय: खत्म सा हो गया है। रोपवे के निर्माण के चलते इस क्षेत्र की कई दुकानें प्रशासन के आदेश की भेंट चढ़ गई। प्रशासन के आदेश का भेंट शहीद सरदार उधम सिंह की प्रतिमा भी चढ़ गई। अब यह प्रतिमा कहां है शायद इसकी जानकारी किसी को नहीं है। लोग बताते हैं कि शहीद सरदार उधम सिंह की प्रतिमा यहां पर पुन: लगायी जायेगी लेकिन यह तो समय ही बतायेगा कि शहीद उधम सिंह की प्रतिमा यहां फिर से लग पायेगी या नहीं। यहां पर पहले शहीद उधम सिंह स्मारक समिति बनायी गई थी जो इस प्रतिमा की देखरेख किया करती थी। पहले यहां पर सरदार उधम सिंह की जयंती या फिर शहीद दिवस पर आयोजन हुआ करते थे। उनकी पुण्यतिथि पर यहां पुलिस लाइन से जवानों की टोली आकर बंदूक से फायरिंग करके उनको सलामी दिया करते थे। लेकिन अब यह कुछ भी  नहीं रह गया है। गिरजाघर पर जिस स्थान पर शहीद उधम सिंह की प्रतिमा लगी थी उस स्थान पर लगे पिलर (पत्थर) पर लोगों ने माला-फूल चढ़ा दिया है। उस पत्थर को ही लोग शहीद स्मारक मान कर पूजा कर रहे हैं। रोपवे के निर्माण के चलते शायद लोग इस महान क्रांतिकारी शहीद उधम सिंह की प्रतिमा को भी  भूल गये हैं। रोपवे का निर्माण हो लेकिन इसके चलते पूरे इलाके का व्यवसाय ही चौपट हो जाय यह कहां का न्यायसंगत है। इस निर्माण की आंधी ने शहीद सरदार उधम सिंह को भी अपनी चपेट में ले ही लिया।

कौन थे शहीद सरदार उधम सिंह 

सरदार उधम सिंह (1899-1940) देश के महान क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्हें जालियांवाला बाग हत्याकांड (1919) का बदला लेने के लिए जाना जाता है। उन्होंने 21 साल बाद लंदन जाकर माइकल ओ डायर (तत्कालीन पंजाब के गर्वनर) की गोली मार कर हत्या कर दी थी। उन्होंने यह कार्य जालियांवाला बाग में निहत्थे भारतीयों की हत्या के प्रतिशोध के रूप में किया था। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर 31 जुलाई 1940 को फांसी दे दी गई थी। उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 के पंजाब के सुनाम में शेर सिंह के रूप में हुआ था। बाद में उन्होंने उधम सिंह मान रख लिया। 1931 में सरदार भगत सिंह जिन्हें वे अपना गुरु मानते थे, की फांसी न्याय के प्रति उनकी इच्छा को और प्रबल कर दिया। 1935 में सरदार भगत सिंह जालियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के इरादे से पहुंचे थे। 

उधम सिंह में थे बलिदान से निकले कई क्रांतिकारी भाव

शहीद उधम सिंह का कोई एक निश्चित नारा नहीं था। बल्कि उनके जीवन और बलिदान से निकले कई क्रांतिकारी भाव थे। जिनमें प्रमुख इंकलाब जिंदाबाद था जो उनके विरोध प्रदर्शनों में गूंजता था। उनका अंतिम शब्द ब्रिटिश साम्राज्य मुर्दाबाद था जो उन्होंने फांसी से पहले कहा था। उनका मूल उद्देश्य जालियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेना और भारत की आजादी था। जिसके लिए उन्होंने कहा था कि वे अपने देश के लिए मर रहे हैं, उन्हें मौत से डर नहीं है। सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 सुनाम पंजाब हुआ था। उनका निधन 31 जुलाई 1940 (लंदन यूके) में हुआ था। उन्होंने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी। 1919 में पंजाब प्रांत (अब पंजाब) के अमृतसर स्थित जालियांवाला बाग में ब्रिटिश सेना द्वारा नागरिकों के नरसंहार का बदला लिया था।

एक गोली की गूंज आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है

उधम सिंह की एक गोली की गूंज आज भी इतिहास के सीने को चीरती है। 13 अप्रैल 1919 को जालियांवाला बाग में हुए नरसंहार का बदला लेने वाले शहीद उधम सिंह ने 21 साल लंदन में जाकर माइकल ओ डायर को मौत के घाट उतारा था। 31 जुलाई 1940 को ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें फांसी दे दी थी। लेकिन उनका बलिदान आज तक हर भारतीय के सीने में गर्व बन कर धड़कता है। उन्होंने एक गोली चलायी थी लेकिन उसकी आवाज आज तक इतिहास के पन्नों में गूंज रही है।