सो रहा प्रशासन और गला रेतने को तैयार कातिल चाइनीज मंझा !

सो रहा प्रशासन और गला रेतने को तैयार कातिल चाइनीज मंझा !
  • आखिर कातिल चाइनीज मंझों को क्यों नहीं रोक पा रहा वाराणसी प्रशासन !
  • निर्दयी चाइनीज मंझों से अब तक कई लोगों की कट गई है गर्दन, कईयों को गंवानी पड़ गई अपनी जान
  • बेखबर प्रशासन को नहीं है खबर, मकर संक्रांति के आते ही फिर शुरू हो गई चाइनीज मंझों की बिक्री
  • बाजारों में धड़ल्ले से बिक रहा है कातिल चाइनीज मंझा, सवालों के घेरे में पुलिसिया कार्रवाई 

राधेश्याम कमल

वाराणसी (रणभेरी सं.)। कातिल चाइनीज मंझों की बिक्री को पुलिस प्रशासन आजतक रोक नहीं पाया है। जबकि चानीज मंझों ने बनारस ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल में न जाने कितने ही परिवार वालों की जिंदगी उजाड़ दी है। तलवार की भी धार से तेज इन कातिल चाइनीज मंझों ने न जाने कितने ही लोगों की गर्दन काट दी है। तमाम कोशिशों के बावजूद इन निर्दयी कातिल चाइनीज मंझों की चंगुल में आये निरीह लोगों को बचाया नीं जा सका है। घर से बाहर निकलते समय अगर आप सावधान नहीं रहे तो कभी भी चाइनीज मंझों की चपेट में आकर अपनी जान गंवा सकते हैं। सावधानी हटी कि दुर्घटना घटी। एक बार जो भी इन कातिल चाइनीज मंझों की चपेट में आ जाता है उसे बचाना बड़ा मुश्किल होता है। कातिल चाइनीज मंझा किसी की भी गर्दन को इस कदर रेत देता है जैसे गाजर व मूली रेती जाती है। पूर्वांचल की तो बात छोड़ दीजिए अकेले बनारस में ही कातिल चाइनीज मंझों ने दर्जनों लोगों की गर्दनें काट दी है। अभी पिछले दिनों ही कातिल चाइनीज मंझें ने एक शिक्षक की जान ले ली। शिक्षक अपनी बेटी को स्कूल छोड़ कर घर वापस लौट रहे थ। इस बीच गर्दन में चाइनीज मंझे ने जकड़ लिया। इसके चलते उनकी गर्दन कट गई। अत्यधिक रक्तस्त्राव के चलते चिकित्सकों ने भी हाथ खड़े कर दिये। अंतत: शिक्षक की मौत हो गई। यह सिर्फ एक घटना नहीं है बल्कि इस तरह की बनारस ही नहीं पूरे पूर्वांटल में चाइनीज मंझों से दर्जनों निरीह लोगों की जानें जा चुकी है। चिकित्सकों की लाख कोशिशों के बावजीद इन लोगों को बचाया नहीं जा सका। 

पहले बनारस में चाइनीज मंझे नहीं बिकते थे। पहले चाइनीज मंझों के बारे में कोई जानता तक नहीं था। बनारस में बरेली समेत अन्य शहरों से मंझे मंगवा कर बेचा जाता था। पहले बनारस में बरेली या फिर लखनऊ या अन्य शहरों से मंझों की परेती या रिल मंगला कर बेचा जाता था। आज भी बरेली का मंझा आता है लेकिन चाइनीज मंझों के आगे हर मंझा बेकार साबित हुआ। बनारस से ही पूरे पूर्वांचल में मंझों की सप्लाई की जाती थी। लगभग एक से डेढ़ दशक पूर्व बनारस में चाइनीज मंझों की कुछ दुकानदारों ने बिक्री शुरू की। इसके बाद तो चाइनीज मंझों की देखते ही देखते इतनी बिक्री होने लगी कि बाजारों में इसकी खपत बहुत ज्यादा बढ़ गई। पतंगों व मंझों का मुख्य बाजार कुंदीगढ़ टोला, औरंगाबाद समेत कई और भी इलाके हैं। जहां पर रंग-बिरंगी पतंगों के साथ ही मंझों की भी बिक्री होती है। अगर कोई चाइनीज मंझा खरीदने जाये तो उसे बहुत आसानी से यह नहीं मिल जाते हैं। 

चाइनीज मंझों के लिए दुकानदारों का कोड वर्ड भी होता है। इस कोड वर्ड को बताने पर ही दुकानदार दुकान के पीछे छिपा कर रखे गये कातिल चाइनीज मंझे को लाकर देता है। खरीददार भी इसको जल्दी से लेकर उस छिपा कर चल देता है। यह सब आप को हमेशा देखने को मिल जायेगा। चाइनीज मंझों के लिए जितना दुकानदार जिम्मेदार माना जाता है उसे कहीं ज्यादा जिम्मेदार इसकी खरीदारी करने वाले लोग हैं। इसकी खरीदारी करने वालों को यह पता ही नहीं है कि हम इसे क्यों खरीद रहे हैं। इसके लिए हर अभिभावकों को भी अपने बच्चों को जागरुक करना जरुरी है। बच्चों की तो बात छोड़ दीजिये यावा वर्ग भी इसमें चल्लीन है। वह भी चाइनीज मंझों से ही पतंगबाजी करते हैं। इसके लिए युवाओां को एक बार फिर सोचने की जरुरत है। 

पहले बनारस की गलियों में लोग अपने हाथों से ही मंझा बनाया करते थे लेकिन समय के बदलते दौर में अब सब बंद हो चुका है। ऐसा नहीं कि चाइनीज मंझों के खिलाफ कोई अभियान नहीं चला। कई सामाजिक संस्थाओं ने इसके लिए अभियान भी चलाया लेकिन यह सब टॉय-टॉय फिस्स ही साबित हुआ। अभियान के दौरान दुकानदारों ने चाइनीज मंझों को छिपा कर रखना शुरू कर दिया। आज भी  वही स्थिति है कोई भी दुकानदारा चाइनीज मंझे को खुलेआम नहीं बेचता। हर कोई इसे चोरी-छिपे ही बेचता है। चाइनीज मंझों की बिक्री रोकने के लिए पुलिस प्रशासन भी एकदम मौन है।

शायद प्रशासन को इससे कुछ मतलब नहीं है। चाइनीज मंझे से कोई कटे या मरे पुलिस को इससे लेना-देना नहीं है। चाइनीज सामानों पर एक बार सरकार ने प्रतिबंध लगाया था लेकिन यह आदेश कुछ ही दिनों तक चला। कुछ दिनों के बाद चाइनीज सामानों के साथ ही चाइनीज मंझों की भी धड़ल्ले के साथ बिक्री होने लगी जो आज भी अनवरत जारी है। अखिरकार बनारस में चाइनीज मंझों की बिक्री के लिए जिम्मेदार कौन है। पुलिस प्रशासन, दुकानदार या फिर इसकी खरीदारी करने वाले लोग।