बेलगाम भीड़ में रोज घुटती है अल्हड़ काशी

बेलगाम भीड़ में रोज घुटती है अल्हड़ काशी
  • फकीरी अध्यात्म और गंगा  की आस्था ने काशी को वैश्विक पर्यटन केंद्र बनाया, लेकिन सुविधाओं और व्यवस्था भीड़ के आगे साबित हो रही बौनी 

  • काशी विश्वनाथ धाम, कालभैरव,दशाश्वमेध और गंगा आरती ने श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ाई, जिससे गलियां और सड़कें रोजाना जैम में तब्दील 

  • पर्यटकों की भीड़ के बीच स्थानीय नागरिक सबसे ज्यादा परेशान रोजमर्रा की जिंदगी में निकलना भी बन चुका है संघर्ष 

  • त्यौहार,अवकाश और हर शाम की गंगा आरती यातायात अव्यवस्था को बना दिया है काशी की नियति 

राधेश्याम कमल

वाराणसी (रणभेरी): देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में दिनोंदिन लोगों की भीड़ बेतहाशा बढ़ रही है। काशी की फकीरी में परदेसी सैलानियों का भी मन खूब रम रह है। भौतिक जीवन के उलझन को दूर करने वाली काशी का अध्यात्म सैलानियों को सात समंदर पार से भी  यहां खींच कर ला रहा है। काशी में सिर्फ विदेशी पर्यटक ही नहीं बल्कि पूरे देश भर से श्रद्धालु काशी में गंगा की डुबकी, गंगा घाट, और गंगा आरती, बाबा विश्वनाथ के दर्शन की आस लिए यहां खींचे चले आ रहे हैं। काशी में गंगा, गंगा घाट, सारनाथ सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र तो है ही अब गंगा तट पर होने वाली सायंकालीन गंगा आरती ने सैलानियों के साथ ही देश भर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है। इतना ही नहीं पर्यटकों को बनारस की रहस्यमयी गलियों ने भी अपनी ओर हमेशा से आकर्षित किया है।

गलियों के अलावा शहर के विभिन्न इलाकों में स्थापित योग साधना केन्द्र एवं अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को मौलिक शैली में उद्घाटित करने वाले अत्याधुनिक शैली ने भी  सैलानियों को काशी की ओर आकर्षित किया है। यही सब वजह है कि काशी में दिनोंदिन भीड़ बढ़ती ही जा रही है। बनारस ही एक ऐसा शहर है जहां पर एत पर्व खत्म होता है तो दूसरे पर्व को मनाने के लिए शुरुआत हो जाती है। इसके बारे में कहावत है कि-सात वार नौ त्यौहार। यानि सप्ताह में सात दिन ही होते हैं लेकिन बनारस में लोग सात दिन में नौ त्यौहार मनाते है। त्यौहारों की धूम के चलते भी  बनारस में इसको सेलिब्रेट करने के लिए देशभर से लोग आते हैं।

वर्ष 2014 से पूर्व काशी के देवालयों में स्थानीय एवं विदेशी सैलानियों की इतनी भीड़ नहीं हुआ करती थी। हालात यह था कि कई देवालयों का रोजाना का खर्च भी  नहीं चल पाता था। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। काशी के देवालयों में भीड़ अब कई गुना बढ़ चुकी है। काशी विश्वनाथ मंदिर में पहले भी  देश भर से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते थे। चार साल पूर्व जब से काशी विश्वनाथ धाम (काशी विश्वनाथ कारिडोर) बना तब से श्रद्धालुओं की भीड़ में लगातार इजाफा ही हुआ है। 

आंकड़ों की मानें तो काशी विश्वनाथ धाम में देशभर से रोजाना एक लाख से अधिक श्रद्धालु यहां पर आते हैं। पर्वोें अथवा अवकाश के दिनों में काशी विश्वनाथ धाम में श्रद्धालुओं की •ाीड़ और भी  बढ़ जाती है। काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर गेट नंबर चार के पास ज्ञानवापी से लेकर बांसफाटक-गोदौलिया तक रोजाना आस्थावानों की कतारें लगी रहती है। पिछले कई सालों से यही सिलसिला चल रहा है। इस शहर में बाहर से आये रोजाना लाखों लोगों के साथ ही स्थानीय लोगों का भी  भारी दबाव झेलना पड़ता है। इस भीड़भाड़ वाले शहर में बेचारे स्थानीय लोग आखिर कहां जायेंगे। उन्हें •ाी तो इसी भीड़भाड़ में अपना जीवन व्यतीत करना है। इसका नतीजा यह होता है कि बम भोले की नगरी काशी बाहरी लोगों के साथ ही स्थानीय लोगों का भी रोजाना दबाव झेलती है। इसके चलते शहर को अनावश्यक भीड़ का भार सहना पड़ता है। कई मंदिरों एवं देवालयों के महंत पं. शिवप्रसाद पांडेय लिंगिया महराज बताते हैं कि और दिनों की अपेक्षा शनिवार-रविवार- सोमवार-मंगलवार के दिन काशी विश्वनाथ धाम के साथ ही बाबा कालभैरव, दुर्गा मंदिर, संकटमोचन मंदिर में बाहर से आये दर्शनार्थियों की भीड़ बढ़ जाती है। बाहर से आये जो भी  सैलानी बाबा विश्वनाथ का दर्शन करते हैं वह काशी कोतवाल बाबा काल भैरव का दर्शन-पूजन जरुर करते हैं। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने के बाद कालभैरव का दर्शन नहीं करता है तो उसकी पूजा अधूरी मानी जाती है। इसीलिए बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने के बाद लोग कालभैरव मंदिर जरुर पहुंचते हैं। यह मंदिर भैरोनाथ चौराहे के समीप स्थित है। यहां की हालत यह है कि मंदिर से लगी श्रद्धालुओं की लंबी कतारें मंदिर के पीछे वाली गली को पार करती हुई चौखम्भा सब्जी मंडी तक चली जाती है। इसके चलते उधर से आने-जाने वाले लोगों के अलावा स्थानीय नागरिकों की भारी फजीहत होती है। रविवार व मंगलवार को तो हालत इतनी बदतर हो जाती है कि भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस को घंटों मशक्कत करनी पड़ती है। गोलघर से भैरोनाथ चौराहा या फिर मैदागिन डाकघर से भैरोनाथ  जाने वाला मार्ग एक ही दिन नहीं बल्कि रोजाना जाम में फंसा रहता है। बाहर से आये लोगों के चलते स्थानीय नागरिकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। काशी में भीड़ बढ़ने का एक और भी  वजह दशाश्वमेधघाट पर होने वाली गंगा आरती है। इस आरती को देखने के लिए शाम 5 बजते ही लोगों की बदहवास भीड़ गोदौलिया से दशाश्वमेधघाट की ओर भागती नजर आती है। जिसे देखिये वही दशाश्वमेधघाट की ओर भागता दिखायी देता है। दशाश्वमेधघाट पर रोज इतनी भीड़ जुटती है कि पुलिस प्रशासन को गोदौलिया चौराहे से दशाश्वमेधघाट जाने वाले मार्ग पर यातायात प्रतिबंधित करना पड़ता है। 

इसके चलते दशाश्वमेधघाट के स्थानीय नागरिकों व व्यवसायियों को •ाारी मुसीबत का सामना रोज ही करना पड़ता है। शाम 5 से लेकर रात्रि 8 बज तक दशाश्वमेधघाट पर रोजाना लोगों का सैलाब उमड़ता है। प्राचीन दशाश्वमेधघाट व दशाश्वमेधघाट (डा. राजेन्द्र प्रसाद घाट) पर नीचे से ऊपर तक घाट की सीढ़ियां खचाखच भरी रहती है। गंगा आरती खत्म होने के बाद जब घाट से भीड़ सड़क की ओर भागती है तो उस भीड़ को संभालने वाला कोई नहीं दिखता है। इस भीड़ में आम नागरिकों का चलना भी दूभर हो जाता है। अब तो दशाश्वमेधघाट के अलावा अस्सीघाट, पंचगंगाघाट, नमोघाट व अन्य घाटों पर भी गंगा आरती होने लगी है। इसके चलते लोग अन्य घाटों पर भी  जाकर गंगा आरती को निहारते हैं। सायंकाल 7.30 बजे जब गंगा आरती खत्म होती है तो उस समय दशाश्वमेधघाट, गोदैलिया से लेकर जंगमबाड़ी, सोनारपुरा, इधर गोदौलिया से चौक, बांसफाटक से लेकर नीचीबाग मैदागिन तक जाम की स्थिति बनी रहती है।

 इस दौरान कोई भी  इस मार्ग से आ-जा नहीं सकता है। रात्रि तक यही स्थिति बनी रहती है। एक दशक पेर्व तक यह स्थिति नहीं थी। अब तो शहर की आबादी भी  काफी बढ़ गई है। अब तो काशी के गंगा घाटों में नमो घाट का भी  नाम जुड़ गया है। जहां पर रोजाना हजारों की भीड़ जुट रही है। लोग यहां पिकनिक मनाने पहुंच रहे हैं। शाम के समय भदऊं से राजघाट-भैंसासुर आदि मार्ग अवरुद्ध रहता है।