आखिर कौन बचाएगा आस्था और इतिहास की इस धरोहर को !
- पौराणिक शिवपुर तालाब का अस्तित्व संकट में, पंचक्रोसी परिक्रमा का चौथा पड़ाव, आज खुद बदहाली का शिकार
- 1883-84 के राजस्व अभिलेखों में तालाब दर्ज, फिर कैसे हुआ कब्जा ?
- हाईकोर्ट और जांच समिति ने माना तालाब, फिर भी अधर में बहाली
- पुनः खनन और वॉटर बॉडी रेस्टोरेशन की उठी तेज मांग
वाराणसी (रणभेरी) : काशी की धार्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक परंपराओं से जुड़ा शिवपुर पंचक्रोसी मार्ग स्थित ऐतिहासिक तालाब आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। पंचक्रोसी परिक्रमा के चौथे पड़ाव के रूप में प्रसिद्ध यह तालाब न केवल श्रद्धालुओं के विश्राम का प्रमुख केंद्र रहा है, बल्कि वर्षों तक स्थानीय जनजीवन, पर्यावरण और धार्मिक आस्थाओं का आधार भी रहा। आराजी संख्या 69, मौजा व परगना शिवपुर, तहसील सदर में स्थित यह तालाब अब अवैध कब्जों, प्रशासनिक उदासीनता और राजनीतिक हस्तक्षेप की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है।
यह वही तालाब है जहां कभी महिलाएं जीवित्पुत्रिका व्रत का पूजन करती थीं, प्रसिद्ध “प्याला मेला” लगता था और पंचक्रोसी यात्री विश्राम कर अगले पड़ाव के लिए प्रस्थान करते थे। चारों ओर सैकड़ों वृक्ष, हजारों जलचर जीव-जंतु और पक्षियों का कलरव इसकी पहचान था। वर्षभर जल से लबालब रहने वाला यह तालाब कभी साइबेरियन पक्षियों का भी आश्रय स्थल रहा, लेकिन आज इसकी तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि कतिपय भूमाफियाओं ने भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से इस सार्वजनिक व पौराणिक तालाब की भूमि पर छलपूर्वक अपना नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज करा लिया। जब तालाब को मिट्टी से पाटने का प्रयास शुरू हुआ तो क्षेत्रीय नागरिकों ने इसका तीखा विरोध किया। इस संघर्ष की अगुवाई क्षेत्रीय पूर्व पार्षद एवं उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व सदस्य डॉ. जितेन्द्र सेठ ने की। उन्होंने सड़कों से लेकर नगर निगम सदन और कार्यकारिणी समिति तक इस मुद्दे को उठाया और कई बार धरना-प्रदर्शन किए।

शिवपुर तालाब को कब्जा मुक्त कराने के लिए विधायक सौरभ श्रीवास्तव से मिले डॉ. जितेंद्र सेठ
मामला जब उच्च न्यायालय इलाहाबाद पहुंचा तो जांच के लिए वाराणसी मंडल के तत्कालीन मंडलायुक्त के निर्देश पर चार सदस्यीय समिति गठित की गई। समिति में जिलाधिकारी, नगर आयुक्त और अपर जिलाधिकारी शामिल थे। जांच रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया कि सन 1291 फसली (1883-84) में गाटा संख्या 69 तालाब के रूप में दर्ज थी और आदेश पारित होने से पहले ही कपटपूर्वक नाम दर्ज कराए गए। समिति ने यह भी स्पष्ट किया कि यह तालाब की भूमि है और इसका स्वरूप किसी भी स्थिति में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। जांच के बाद नगर निगम द्वारा जारी अनापत्ति प्रमाणपत्र और वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत भू-विन्यास मानचित्र को निरस्त कर दिया गया। तत्कालीन जिलाधिकारी के निर्देश पर अवैध कब्जेदारों के खिलाफ शिवपुर थाने में नामजद रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई। बावजूद इसके, तालाब की वास्तविक बहाली आज तक नहीं हो सकी।
डॉ. जितेन्द्र सेठ का कहना है कि वर्ष 2002 से वह इस तालाब को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। तत्कालीन कमिश्नर नितिन रमेश गोकर्ण के निर्देश पर दो जेसीबी लगाकर तालाब की खुदाई भी शुरू कराई गई थी, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते यह कार्य बीच में ही रोक दिया गया। आज स्थिति यह है कि तालाब को मिट्टी से पाट दिया गया है, हालांकि जनविरोध के कारण अब तक उस पर निर्माण नहीं हो पाया है। पूर्व पार्षद ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मांग की है कि इस पौराणिक व धार्मिक महत्व के तालाब का रीस्टोरेशन ऑफ वॉटर बॉडी कराकर इसे उसके मूल स्वरूप में बहाल किया जाए। सवाल अब यह है कि काशी की आस्था, इतिहास और पर्यावरण से जुड़ी इस अमूल्य धरोहर को बचाने के लिए शासन-प्रशासन कब निर्णायक कदम उठाएगा ?











