विदेशों तक मशहूर है काशी की मलइयो का स्वाद

विदेशों तक मशहूर है काशी की मलइयो का स्वाद

ओस की बूंदों से तैयार की जाती है बनारस की मलइयो, स्वाद ऐसा कि देसी विदेशी हर कोई खींचा चला आता है

बनारस के पक्के महाल से हुई थी मलइयो की शुरुआत, स्वाद ऐसा कि बस कुछ पू्छिये मत

राधेश्याम कमल 

वाराणसी (रणभेरी सं.)। ठंड की शुरुआत होते ही शहर के पक्के महाल से लेकर अन्य जगहों पर बनारस की खास मिठाई मलइयो की शुरुआत हो चुकी है। दूध को फेंट कर ओस की बूंदों से तैयार की गई मलइयो का स्वाद लेने के लिए देसी ही नहीं विदेशी भी खींचे हुए चले आ रहे हैं। शहर में कई जगहों पर मलइयो की दुकानें सज गई है जहां पर इसका स्वाद लेने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ रहा है। हर कोई मलइयो का स्वाद लेने को बेताब है। मलइयो का स्वाद लेने के बाद  लोगों के चेहरों पर एक सुकून सा दिखता है। बनारस की मलइयो ठुठरती ठंड में गुनगुनाती धूप सा एहसास देती है। मलइयो ऐसी कि मंह में जाते ही पूरी तरह से घुल जाती है और तासीर ऐसी कि जो देर तक जुबान पर मिठास बनाये रखती है। बनारस शुरू से ह खानपान के लिए काफी मशहूर है।

इसी खानपान में काशी की मशहूर मलइयो शामिल है। पक्के महाल में स्वादिष्ट मिठाइयों को पूरी शुद्धता के साथ तैयार किया जाता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यहां बनने वाली मिठाइयों का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मलइयो सिर्फ एक मिठाई नहीं सर्दियों की एक परम्परा है। सर्दियों की हल्की धुंध के बीच पीले सुनहरे झाग वाली थाल या बड़ा पात्र रखा जाता है तो ला्गे खुद को रोक नहीं पाते हैं।  सुबह होते ही मलइयो के कद्रदानों का हुजूम लगना शुरू हो जाता है। ठंड की शुरुआत होते ही पर्यटक व स्थानीय लोग मलइयो का स्वाद लेकर इसकी तारीफ करना नहीं थकते हैं। मलइयो में एक ऐसी मिठास है तो ठंड के मौसम में मिलती है। ठंड के मौसम में सिर्फ तीन से चार माह तक ही लोग इस मलइयो का आनंद लेते हैं। पिस्ता बादाम के मिश्रण से तैयार होने वाला यह व्यंजन ठंड के मौसम में शरीर में गर्माहट पैदा करता है।

काशी की पहचान बन चुकी है मलाईयां 

देखा जाय तो आज काशी की पहचान मलाइयाँ बन चुकी है। मलइयों का जायका सिर्फ ठंड के दिनों में ही लिया जा सकता है। इसकी वजह यह है कि ये खास कर मलइयो ओस की बूंदों से तैयार की जाती है। बनारस के पक्के महाल से लेकर चौक, चौखंभा, गोलघर, मैदागिन, नीचीबाग, गोदौलिया, दशाश्वमेध, लक्सा, गिरजाघर, कमच्छा, लंका, सिगरा, रथयात्रा, कचहरी, गोलघर में मलइयो की दुकाने सज गई हैं। देखा जाय तो मलइयो पर सिर्फ और सिर्फ काशी का ही एकाधिकार है। जो कि विदेशों तक मशहूर है। मलइयो की शुरुआत सैकड़ों साल पहले काशी में ही हुई थी।

 दूध को उबाल कर खुले आसमान में रखते हैं

मलइयों बनाने के लिए पहले कच्चे दूध को उबाला जाता है। उबले हुए दूध को खुले आसमान में किसी बड़े पात्र में रखा जाता है। ताकि उस पर ओस की बूंदें पड़े सके। भोर होते ही दूध को मथा जाता है। धूध को फेंटने के बाद निकलने वाले झाग में चीनी, केसर, पिस्ता, बादाम, मेवा, इलायची  आदि मिला कर मलइयो तैयार की जाती है। फिर उसे कुल्हड़ या मटकी या बड़े वाले पुरवे में सजा कर पेश किया जाता है। ओस के चलते मलइयो का झाग घंटों उसी तरह बना रहता है। 

चौखंभा में हुई थी इसकी शुरुआत

मलइयों बनाने की शुरुआत पक्के महाल के चौखंभा में हुई थी। चौखंभा के गोपाल मंदिर के समीप इसका दायरा बढ़ा तो पूरे शहर में फैल गया। अब तो मलइयो पक्के महाल से निकल कर शहर के मध्य चौक, गोदौलिया, लक्सा, कमच्छा, सिगरा तक पहुंच गया। इस धंधे में यादव परिवारे के लोग ज्यादा लगे हुए है। चौखंभा के भारतेन्दु भवन के समीप, गोपाल मंदिर के निकट हो या फिर अन्य कहीं भी मलइयों पर यादव परिवार का ही एकाधिकार है। वे बताते है कि मलइयो का स्वाद लेने के लिए सुबह होते ही लोगों की भीड़ दुकानों पर जमा होने लगती है जो दोपहर तक जमा रहती है।


 अब शादी-विवाह में में भी पेश की जा रही मलाइयां 

अब तो शादी विवाह में भी मलाईयां पेश की जाने लगी है। बरातियों का स्वागत भी मलइयों से की जा रही है। अब लागे इसे मशीन से भी तैयार करने लगे हैं। मलइयो 20-25 रुयेसे लेकर 30-40 रुपये छोटे-बड़े कुल्हड़ में बिक रही है।