गोदाम मिला एक...पर सिरप माफिया सौ !

गोदाम मिला एक...पर सिरप माफिया सौ !
  • जब सप्लाई बांग्लादेश तक...तो वाराणसी पुलिस सिर्फ भदवर तक क्यों ?
  • नशे का काला कारोबार और पुलिस का सफेद मौन 
  • ऑटो ड्राइवर का बेटा से मैनेजर साहब : देखते ही देखते अचानक धनकुबेर बन गया विशाल मेहरोत्रा उर्फ लालू 
  • मैनेजर साहब की कुतिया शैडो पहनती है सोने का हार
  • योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति को चुनौती : कोतवाली क्षेत्र में अभी भी सक्रिय है सिरप गैंग !

वाराणसी (रणभेरी/विशेष संवाददाता)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र, उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार का सबसे प्रमुख और संवेदनशील शहर। जिस शहर को सरकार ने शून्य सहनशीलता की नीति का प्रतीक बताया, वहीं पिछले दिनों हुए नशीली कफ सिरप के बड़े खुलासे ने न सिर्फ प्रदेश के तस्करी नेटवर्क को हिलाकर रख दिया, बल्कि पुलिस की भूमिका, स्थानीय अफ़सरों की सतर्कता और अपराधियों के संरक्षण के गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

राज्य की खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन तथा एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स की संयुक्त कार्रवाई में अब तक लगभग तीन दर्जन फर्मों और व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी है। यह कार्रवाई अपने आप में बेहद बड़ी है, क्योंकि यह बताती है कि वाराणसी के भीतर एक संगठित, टिकाऊ और दूर तक फैला नेटवर्क पिछले लंबे समय से सक्रिय था। परंतु, इस सफलता के बीच एक ऐसी सच्चाई भी सामने आई है जिसने पूरे शहर को बेचैन कर दिया है। क्योंकि ऐसे तमाम सिरप कारोबारी जिनके काले कारोबार के बारे में शहर का बच्चा बच्चा जानता है, वो आज भी शहर में खुलेआम मौजूद हैं और कथित रूप से स्थानीय पुलिस के संरक्षण में अपना बचा-खुचा माल ठिकाने लगा रहे हैं।

कार्रवाई 3 दर्जन पर, गोदाम सिर्फ एक क्यों?

नशीली कफ सिरप का नेटवर्क छोटा नहीं था। वाराणसी से लेकर बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पंजाब और यहां तक कि बांग्लादेश तक इसकी सप्लाई जाती थी। इतने बड़े पैमाने पर अवैध व्यापार वर्षों तक चलता रहा, फिर भी छापेमारी टीम सिर्फ रोहनिया के भदवर इलाके के एकमात्र गोदाम तक ही क्यों पहुँच पाई?

जब 3 दर्जन से अधिक फर्मों और व्यक्तियों के नाम सामने आ चुके हैं, तो गोदाम और बरामद सिरप की संख्या सिर्फ एक स्थान पर ही क्यों सिमट गई? यह प्रश्न सिर्फ प्रशासन नहीं बल्कि पूरे वाराणसी पुलिस तंत्र की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान है।

क्या स्थानीय पुलिस को कुछ नहीं पता था? या फिर...

सवाल और भी गंभीर है, क्या स्थानीय पुलिस को इन गोदामों की कोई जानकारी नहीं है ? या फिर सेटिंग-गेटिंग का खेल वर्षों से चल रहा था? जिन इलाकों में यह कारोबार फल-फूल रहा था, वे थानों की नाक के नीचे आते हैं। इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं कि इतनी बड़ी अवैध गतिविधि बिना पुलिस की जानकारी के नहीं चल सकती। वाराणसी पुलिस का मौन अब संदिग्ध लगता है और यह शंका ही इस पूरे मामले को और गंभीर बनाती है।

संदेहों के केंद्र में कोतवाली थाना

वाराणसी की दवा व्यवस्था का सबसे बड़ा केंद्र सप्तसागर दवा मंडी है और यह पूरा क्षेत्र सीधे कोतवाली थाना के अंतर्गत आता है। छापेमारी के बाद भी चर्चा इसी थाने की भूमिका को लेकर सबसे अधिक है।

स्थानीय व्यापारियों, निवासियों और सूत्रों का कहना है कि इस मंडी में आज भी एक दर्जन से ज्यादा ऐसे चेहरे मौजूद हैं, जो नशीली दवाओं के काले कारोबार के मुख्य संचालक हैं। ये लोग न सिर्फ इलाके में आराम से घूम रहे हैं, बल्कि अपनी झूठी प्रतिष्ठा का कवच बनाकर अवैध स्टॉक को ठिकाने लगाने में भी जुटे हुए हैं। सूत्र बता रहे है कि  प्रमुख रूप से लालघाट निवासी विशाल मेहरोत्रा उर्फ लालू उर्फ मैनेजर साहब, सिद्धमाता गली लल्ली पाठक, गोलघर निवासी मिलिंद यादव, भैरवनाथ निवासी मुकेश यादव पुलिस संरक्षण में व्हाइट कॉलर बनकर सुरक्षित है और अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने के प्रयास में लगे हुए है। यानी जो कारोबार वर्षों से चल रहा था, वह अचानक रुका नहीं बल्कि अब और छुपकर जारी है।

विशाल मेहरोत्रा उर्फ़ ‘मैनेजर साहब’: अपराध की दुनिया का नया चेहरा

इस पूरे मामले में जिस नाम की चर्चा सबसे ज्यादा है, वह है विशाल मेहरोत्रा उर्फ़ लालू, जिसे आजकल लोग मैनेजर साहब के नाम से पहचानते हैं। लालघाट मोहल्ले का रहने वाला विशाल साधारण पृष्ठभूमि से आता है। उसके पिता मुन्ना मेहरोत्रा एक साधारण ऑटो ड्राइवर रहे, जिन्होंने जीवन भर मेहनत करके परिवार चलाया। लेकिन बेटे को यह सादगी रास नहीं आई।

क्षेत्र के लोगों का कहना है कि वर्षों पहले जिस लालू को उसके पिता अपनी ऑटो में बैठाकर स्कूल तक ले जाते थे, वही लालू आज फॉर्च्यूनर में घूमता है। समाज की नजरों में मुन्ना ड्राइवर का बेटा अब मैनेजर साहब बन चुका है और यह बदलाव किसी नौकरी या बिज़नेस की सफलता का नहीं, बल्कि नशीली दवाओं के काले कारोबार से पैदा हुई काली कमाई का नतीजा है।

समाज के पतन का आईना 

वाराणसी की पावन धरती पर यह कहानी किसी अपराध-कथा से अधिक हमारे समाज की आत्मा पर लगे उस घाव की कहानी है, जिसे हम देखने से बचते रहते हैं। नशीली कफ सिरप के अवैध कारोबार में डूबा विशाल मेहरोत्रा उर्फ लालू, जिसे लोग मैनेजर साहब कहते हैं, सिर्फ कानून के लिए ही चुनौती नहीं है, बल्कि हमारे सामाजिक चरित्र पर एक काला धब्बा है। अवैध धन का नशा इतना गहरा कि इंसानियत, नैतिकता और संवेदनाएँ सब कुछ उसकी जूतियों तले दब चुकी हैं।

वह एक कुत्तिया शैडो पालता है पालना कोई अपराध नहीं, लेकिन अपराध कमाई की बदौलत वह कुत्तिया को सोने का हार पहनाकर मोहल्ले में शक्ति का प्रदर्शन करता है। यह दृश्य केवल उसकी अमानवीय अहंकार की नहीं, बल्कि उस समाज की भी दुर्दशा दिखाता है जहाँ अपराधी धन के बल पर देवता समझे जाने लगते हैं और आम लोग चुपचाप तमाशा देखते रहते हैं।

कभी यह शहर ज्ञान और धर्म का प्रतीक था, अब वही गलियाँ उन कदमों की धूल झाड़ रही हैं, जो युवा पीढ़ी को नशे के नरक में ढकेलते हैं। जब अपराधी खुलेआम जुलूस निकालते हों, जब कुत्तों को सोने के हार पहनाए जाएँ और इंसान गरीबी में सिसकते रहें तो समझ लेना चाहिए कि समाज की मूल आत्मा मरने लगी है।

यह कहानी सिर्फ लालू जैसे अपराधी की नहीं, बल्कि उस टूटते समाज की है जिसे अब अपने भीतर झाँककर फैसला करना होगा क्या हम ऐसे ही पतन को स्वीकार कर लेंगे, या उठ खड़े होंगे उस अंधकार के विरुद्ध जो हमारी नई पीढ़ी को निगल रहा है।

शादी में बहाया गया अवैध धन और पुलिस की चुप्पी

बीते कुछ माह पूर्व विशाल की भव्य शादी ने पूरे इलाके में चर्चा बटोरी। बताया जाता है कि इस शादी में अवैध धन पानी की तरह बहाया गया, और मेहमानों से लेकर आयोजन तक सब कुछ इतना भव्य था कि हर कोई लोकल पुलिस की चुप्पी पर सवाल करने लगा।

आखिर एक सामान्य परिवार का युवा इतनी तेज़ी से करोड़ों में कैसे खेलने लगा? और अगर यह सब पुलिस की आंखों के सामने हुआ, तो पुलिस ने कुछ देखा ही नहीं या फिर देखना नहीं चाहा? विशाल मेहरोत्रा जैसे युवाओं का इस अवैध व्यापार में बड़े स्तर पर शामिल होना सिर्फ कानून-व्यवस्था का सवाल नही। लोगों का कहना है कि पुलिस की ढाल ने ही उसे “मैनेजर साहब” बनाया है। जब तक पुलिस संरक्षण रहेगा, अपराधी का मनोबल टूटेगा नहीं। और वाराणसी में यही हो रहा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपराध और मादक पदार्थों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति लागू की है। लेकिन यही नीति वाराणसी में पस्त होती दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में अगर अवैध दवाओं का इतना बड़ा नेटवर्क चल रहा था और प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं पता तो यह शासन में बैठे जिम्मेदार अधिकारियों की नाकामी नहीं तो और क्या है? यह नेटवर्क सिर्फ अपराध नहीं यह सरकार की साख पर सीधा प्रहार है।

नए लड़कों की अपराध में एंट्री समाज के लिए खतरनाक संकेत

सबसे चिंता की बात यह है कि इस नेटवर्क में युवाओं की बड़ी संख्या शामिल पाई गई है। विशाल मेहरोत्रा जैसे लड़के समाज के सामने एक गलत उदाहरण पेश कर रहे हैं जहाँ अपराध से कमाए पैसे को प्रतिष्ठा माना जा रहा है। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यदि अपराध के पैसों से फॉर्च्यूनर चलाने वाले शादी में लाखों बहाने वाले पुलिस के संरक्षण में पलने वाले
अपने कुत्ते को सोने का हार पहनाने वाले ऐसे चेहरे खुलेआम शहर में घूमते रहे, तो आने वाली पीढ़ी को गलत रास्ता चुनने से रोकना मुश्किल हो जाएगा। यह सिर्फ कानून का मुद्दा नहीं यह सामाजिक क्षरण का संकेत भी है।

वाराणसी का सिरप कांड कोई साधारण अपराध नहीं यह उस प्रशासनिक सुस्ती, पुलिस की संदिग्ध भूमिका और सिस्टम में फैली मिलीभगत का सबसे बड़ा प्रमाण है, जो सरकार की सख़्त नीतियों के बावजूद फल-फूल रहा है। आज ज़रूरत है सभी आरोपियों की संपूर्ण सूची सार्वजनिक की जाए, पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच हो, गोदाम संचालकों से लेकर नेटवर्क चलाने वालों तक सख़्त कार्रवाई हो। और सबसे ज़रूरी है प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में किसी भी अधिकारी को ज़ीरो टॉलरेंस की नीति को धता बताने की इजाज़त न दी जाए।
अगर आज यह नेटवर्क नहीं टूटा, तो कल यह शहर और समाज को कहीं गहरे नुकसान पहुँचा सकता है।