हिजाब, हुकूमत और बेहया ठहाके

हिजाब, हुकूमत और बेहया ठहाके

(रणभेरी):  यूं तो इस वक़्त सत्ता के शिखर पर बैठे हमारे कथित लोकप्रिय नेता अमेरिका में अय्याशी से जुड़े एक विवाद और अपने मुख्यमंत्री काल में एक युवती की दीवानगी से जुड़े पुराने क़िस्सों की वजह से बेचैनी में बताए जा रहे हैं। चर्चा है कि 19 दिसंबर को दोस्त डोनाल्ड ट्रम्प एक फ़ाइल खोलने वाले हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि साहिब जी इस्तीफ़ा देंगे और भाजपा किसी जेन ज़ेड चेहरे को आगे बढ़ाएगी। मगर भाजपा के सियासी मिज़ाज और रवैये को देखते हुए ऐसी किसी उम्मीद की गुंजाइश नज़र नहीं आती। हक़ीक़त यह है कि ऐसे न जाने कितने मामले सत्ता के तहख़ानों में दफ़्न हैं। आइये ज़िक्र बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का करते हैं।

भाजपा के साये में पले इस पुराने मुख्यमंत्री ने एक शासकीय कार्यक्रम में नव नियुक्त डॉक्टर नुसरत को नियुक्ति पत्र देते वक़्त ऐसी हरकत की जिस पर लोग थूक रहे हैं। हिजाब पहने नुसरत जैसे ही प्रमाण पत्र लेने आगे बढ़ीं माननीय ने उनका हिजाब अपने कर-कमलों से हटा दिया। चेहरे पर मुस्कान थी। मंच पर मौजूद लोग बेहया ठहाकों में डूबे रहे। नुसरत ने तमाचा नहीं जड़ा लेकिन उसका चेहरा ग़ुस्से और बेबसी से सुर्ख़ था। पीछे खड़े उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कुर्ता खींचकर इशारा किया लेकिन सत्ता के नशे में चूर नीतीश पर कोई असर नहीं पड़ा। अब सफ़ाइयों की बौछार है। कोई इसे बाप-बेटी का रिश्ता बता रहा है। कोई सनक का नाम दे रहा है। यह सब झूठ और मक्कारी है। सत्ता का नशा उन्हें रंगीन-मिज़ाज बना चुका है। सोचिए नुसरत की जगह अगर कोई घूंघट वाली शर्मीली नीलिमा होती तो क्या बिहार यूं ख़ामोश रहता।

मंच पर गूंजी हंसी औरत की तौहीन का पुख़्ता सबूत है। नुसरत को नौकरी चाहिए थी इसलिए वह चुप रही। क्या यही हिंदुस्तानी तहज़ीब है। क्या यही सनातनी हुकूमत का चेहरा है। इसे हल्के में लेना बहन-बेटियों की इज़्ज़त पर सीधा हमला होगा। “बुड्ढा सठिया गया” कहकर बात ख़त्म नहीं की जा सकती। औरतों को आवाज़ उठानी होगी। नीतीश कुमार और मंच पर हंसने वालों को सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगनी चाहिए। सज़ा मिलना मुश्किल है। मगर शर्मिंदा होना तो लाज़िमी है।

-शुमैला अफरीन