भाजपा के हुए डा. राजेश मिश्रा

भाजपा के हुए डा. राजेश मिश्रा

अजय राय के प्रदेशाध्यक्ष बनने से थे खफा

वाराणसी (रणभेरी)। लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। यूपी के संसदीय लोकसभा सीट वाराणसी से सांसद रहे राजेश मिश्रा ने पार्टी का दामन छोड़ दिया है। वह मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद समेत कई वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में उन्हें प्राथमिक सदस्यता दिलाई। बुके और भाजपा का गमछा देकर उनका स्वागत किया। इस दौरान बनारस से भी बड़ी संख्या में समर्थक भाजपा कार्यालय पहुंचे।

भदोही से मिल सकता है टिकट

सूत्रों की माने तो भाजपा डा. राजेश मिश्रा को पूर्वांचल से टिकट भी दे सकती है। माना जा रहा है कि राजेश, भदोही लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। राजेश मिश्रा वर्ष 2004 से 2009 तक वाराणसी के सांसद रहे हैं। वे लंबे समय से कांग्रेस के फैसलों से नाराज चल रहे थे, वहीं अजय राय के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर अपनी नाराजगी भी जाहिर की थी। उन्होंने वाराणसी में राहुल गांधी की न्याय यात्रा से भी दूरी बनाई थी, जिसके बाद भाजपा में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे थे।

कांग्रेस पर तंज, पीएम की तारिफ

बीजेपी में शामिल होने के बाद राजेश ने कहा कि मेरी कोशिश होगी की इस बार बनारस लोकसभा सीट पर विपक्ष के दल का जो प्रत्याशी होगा उसको पोंलिग एजेंट नहीं मिलेगा। ये सौभाग्य की बात है की मोदी जी वाराणसी के सांसद है। पूरे दुनिया में मोदी जी ने देश का नाम रौशन किया है।

राहुल की न्याय यात्रा का कोई लाभ नहीं

राजेश मिश्रा ने कांग्रेस और सपा पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश से कांग्रेस का सफाया हो गया है। उन्होंने इंडिया गठबंधन पर सवालिया निशान उठाए। कहा कि कांग्रेस के पास कार्यकर्ता तक नहीं बचे हैं। इस समय कांग्रेस का हालत बहुत दयनीय है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्यायल यात्रा पर भी आरोप लगाए। कहा कि उनकी यात्रा से कोई लाभ नहीं होने वाला है।

कांग्रेस के पास उम्मीदवार नहीं

अलायंस पर राजेश मिश्रा ने कहा कि यूपी में कांग्रेस ने सपा के सामने सरेंडर कर दिया। गठबंधन में कांग्रेस को जो सीट मिली है, वहां पार्टी के पास उम्मीदवार ही नहीं है। कई वरिष्ठ नेता पार्टी से नाराज हैं जो अब ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं हैं।

राजनीतिक सफर

वाराणसी की सियासत में राजेश मिश्र को काफी मृदुभाषी राजनेता माना जाता है। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से छात्र राजनीति के रास्ते सियासत का ककहरा पढ़ा। 80 के दशक में वह बीएचयू छात्रसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1996 से 2004 तक दो कार्यकाल के लिए वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे। 1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के शंकर प्रसाद जायसवाल के खिलाफ कांग्रेस ने उन्हें वाराणसी से अपना उम्मीदवार बनाया। हालांकि इस चुनाव में वह हार गए। 2004 में राजेश मिश्र ने जायसवाल से अपनी हार का बदला ले लिया। लोकसभा चुनाव में उन्होंने एसपी जायसवाल को शिकस्त दी। हालांकि 2009 में लगातार तीसरी बार कांग्रेस ने राजेश मिश्र पर भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया। इस चुनाव में बीजेपी से डॉ. मुरली मनोहर जोशी और बीएसपी से मुख्तार अंसारी मैदान में थे। वहीं, बीजेपी से बगावत करने के बाद अजय राय एसपी के टिकट पर चुनाव में उतरे। माना जाता है कि इस चुनाव में वोटों के ध्रुवीकरण की वजह से राजेश मिश्र खिसककर चौथे नंबर पर चले गए। जोशी विजयी हुये थे। 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में नीलकंठ तिवारी को बीजेपी ने मैदान में उतारा और कांग्रेस ने राजेश मिश्र को उनके खिलाफ मौका दिया। नीलकंठ तिवारी ने राजेश मिश्र को मात दे दी। 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस ने राजेश मिश्र को उन्हें गृहक्षेत्र देवरिया जिले की सलमेपुर सीट से उतारा। लेकिन महज 27 हजार 288 वोटों के साथ उनकी जमानत जब्त हो गई।