वीडीए की कार्यप्रणाली पर कौन करेगा ट्रस्ट ! सबके सब भ्रष्ट

सील - डील का खेल एक बार फिर हुआ पूरा, आखिर इस अवैध निर्माण के लिए जोनल अधिकारी ने कितने में बेचा ईमान
सील, ध्वस्तीकरण का आदेश फिर भी 6 महीनों में किसके संरक्षण में बन गया घाट के पास अवैध होटल
वाराणसी (रणभेरी/विशेष संवाददाता)। गंगा तट से 200 मीटर के भीतर किसी भी प्रकार का निर्माण प्रतिबंधित है ऐसा हाइकोर्ट का आदेश और सरकार का यह स्पष्ट नियम है। मगर वाराणसी में इस नियम की हैसियत कुछ चंद नोटों के आगे कितनी बौनी हो जाती है, इसका जिदा उदाहरण है अस्सी घाट के पास, गंगा से महज 50 मीटर की दूरी पर लबे रोड पर खड़ा अवैध होटल। यह होटल न केवल नियमों की धज्जियाँ उड़ाकर बनाया गया है, बल्कि वीडीए की कार्रवाई को भी धता बताते हुए खड़ा हो गया है। वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) ने छह महीने पहले ही इस निर्माण को अवैध करार देते हुए सील और ध्वस्तीकरण की कार्यवाही पूरी कर दी थी। होटल के पास न तो नक्शा पास है, न एनओसी, न पर्यावरणीय स्वीकृति और न ही भूमि उपयोग परिवर्तन की अनुमति। इसके बावजूद छह मंजिला यह स्ट्रक्चर अब लगभग बनकर तैयार है।
सवाल उठता हैआखिर ये संभव कैसे हुआ ? इसका सीधा जवाब है...भ्रष्टाचार। वीडीए में नीचे से लेकर ऊपर तक हर स्तर पर बैठे अधिकारियों की मिलीभगत ने इस अवैध निर्माण को संरक्षण दिया। जोनल अधिकारी से लेकर इंजीनियर और शीर्ष अफसर तक, सभी ने या तो आंख मूंद ली या जेब भर ली। यह केवल एक होटल नहीं, बल्कि नियमों और व्यवस्था पर खड़ा एक शर्मनाक तमाचा है।
सील - डील में छुपा संरक्षण
सूत्रों के मुताबिक, गंगा किनारे बने इस अवैध होटल निर्माण के पीछे भ्रष्टाचार की पूरी चेन सक्रिय रही। जोनल अधिकारी, जेई, बाबू से लेकर बड़े अधिकारियों तक इस निर्माण को लेकर भारी भरकम रिश्वत की लेन-देन हुई। शुरूआत में सिर्फ खानापूर्ति के लिए होटल के प्रवेश द्वार पर सील लगाने की ह्यनौटंकीह्ण की गई, जिससे जनता को लगे कि कार्रवाई हो रही है। लेकिन इसके बाद वीडीए की टीम न तो मौके पर गई, न ही किसी प्रकार की निगरानी की।
होटल की छत तक का ढांचा खड़ा हो गया, और वीडीए के अफसर गहरी चुप्पी साधे रहे। मौन सहमतिह्व का यह नमूना केवल भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ाने जैसा है। स्थानीय निवासियों ने जब विरोध किया और शिकायतें कीं, तो उन्हें या तो धमकाया गया या शिकायतों को कूड़ेदान में फेंक दिया गया।
इससे साफ है कि यह निर्माण किसी अकेले व्यक्ति की करतूत नहीं, बल्कि सिस्टम की मिलीभगत का नतीजा है, जिसमें नियम-कानून कुछ रुपयों के सामने बौने साबित हो गए।
वीडीए बन चुका है भ्रष्टाचार का अड्डा
वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) अब विकास से ज्यादा विनाश और भ्रष्टाचार का प्रतीक बन चुका है। नक्शा पास कराने से लेकर निर्माण निरीक्षण तक, हर प्रक्रिया में रिश्वतखोरी गहराई से जड़ें जमा चुकी है। जोनल अफसर, जेई और बाबुओं की मिलीभगत से ऐसे निर्माण धड़ल्ले से हो रहे हैं, जो नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हैं। हाइकोर्ट और सरकार की गंगा तट के 200 मीटर भीतर निर्माण पर रोक जैसी सख़्त हिदायतें भी वीसी और जोनल अफसरों के लिए कोई मायने नहीं रखतीं। वजह साफ है...यहाँ 'नियम' नहीं, 'डील' चलती है। गंगा किनारे रोज नई इमारतें उठ रही हैं, और वीडीए मौन दर्शक नहीं, सक्रिय सहभागी बना है।
तो जोनल अफसर का ईमान है बिकाऊ ?
इस पूरे प्रकरण में जोनल अधिकारी की भूमिका सबसे अधिक संदिग्ध और शर्मनाक मानी जा रही है। जिन पर अवैध निर्माण की निगरानी और रोकथाम की जिÞम्मेदारी थी, वही अधिकारी कथित रूप से निर्माण कार्य को न केवल नजरअंदाज करते रहे, बल्कि उसकी निर्बाध प्रगति सुनिश्चित कराते भी दिखे। स्थानीय सूत्रों और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, निर्माण स्थल पर वीसी से जुड़े ठेकेदारों, जोनल अधिकारियों के परिचितों और दलालों की आवाजाही नियमित रही। ये वही लोग हैं जो हर फाइल, हर मंजूरी और हर 'कार्रवाई' की कीमत तय करते हैं। ऐसे में यह सवाल अब जोर पकड़ रहा है कि क्या जोनल अफसर ने नियमों और कानून की किताब को चंद लाखों में गिरवी रख दिया ? क्या उनकी ईमानदारी बिकाऊ थी ? जब अवैध निर्माण पर कार्रवाई होनी चाहिए थी, तब महज दिखावटी सील लगाकर खानापूर्ति की गई और फिर निर्माण धड़ल्ले से चलता रहा। यह सब बिना उच्च स्तर के संरक्षण के संभव नहीं। अब जनता जानना चाहती है, जोनल अफसर ने चुप्पी कितने में खरीदी ?
वीडीए के अधिकारी लगा रहे सीएम की छवि पर बट्टा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गुंडा मुक्त और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की छवि को सबसे गहरी चोट खुद उनके ही अधीनस्थ विभागों के भ्रष्ट अफसर पहुंचा रहे हैं। वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) इसका ताजा और सबसे शर्मनाक उदाहरण बन गया है। गंगा तट जैसे पवित्र और संवेदनशील क्षेत्र में नियमों को धता बताकर बहुमंजिÞला अवैध होटल खड़ा कर देना न सिर्फ प्रशासनिक विफलता है, बल्कि यह मुख्यमंत्री की साफ-सुथरी शासन छवि पर सीधा हमला है। वीडीए को शहर की सौंदर्यता, सुरक्षा और नियोजित विकास के लिए गठित किया गया था, लेकिन आज वही संस्था भूमाफियाओं की जेब में बैठी दिख रही है। कोर्ट के आदेश और सीएम के स्पष्ट निदेर्शों को दरकिनार कर अफसर जिस तरह अवैध निमार्णों को संरक्षण दे रहे हैं, उससे आम जनता का विश्वास तंत्र से उठता जा रहा है। लोगों में यह धारणा मजबूत हो रही है कि यहां ईमानदारी नहीं, केवल जुगाड़ काम करता है। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या योगी सरकार इन भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई करेगी? क्या अस्सी घाट पर गंगा की गोद में खड़े अवैध ढांचे को ध्वस्त किया जाएगा? या फिर सब कुछ सिर्फ़ भाषण, नारों और फोटो सेशन तक ही सीमित रहेगा? वाराणसी की जनता जवाब चाहती है, क्योंकि अगर नियमों का मखौल गंगा किनारे उड़ाया जा सकता है, तो बाकी शहर की हालत का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं।