वीसी, ज़ोनल, बिल्डर बाबू सबको एक-एक फ्लैट !

वीसी, ज़ोनल, बिल्डर बाबू सबको एक-एक फ्लैट !
  • सील के बाद ध्वस्तीकरण से बचने के लिए सद्दाम ने कर ली डील 
  • सद्दाम, अल्ताफ़ और रिज़वान की तिकड़ी को क्यों नहीं भेज रहे जेल 
  • ज़ोनल के संरक्षण में रिज़वान कर रहा अपराध, सिस्टम पर उठ रहे सवाल
  • आखिर कबतक शहर में बर्बादी की इबारत लिखेंगे विकास प्राधिकरण के जिम्मेदारान 

अजीत सिंह 

वाराणसी (रणभेरी): काशी, एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगरी, जहां हर गली, हर इमारत, हर पत्थर पर परंपरा की परछाई नजर आती है। यह शहर आध्यात्मिकता और विरासत की जीवंत मिसाल है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से इस शहर के नक्शे पर अनियंत्रित और अवैध निर्माणों की भरमार हुई है, उसने न केवल शहर की ऐतिहासिकता को खतरे में डाला है बल्कि शासन-प्रशासन की मिलीभगत से जनहित को भी भारी नुकसान पहुंचाया है। अवैध निर्माण कोई नई बात नहीं है, लेकिन जो नया है, वह है इसकी प्रणालीगत स्वीकृति है जहां भ्रष्टाचार, फर्जीवाड़े और प्रभावशाली लोगों की सेटिंग के दम पर कानून की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं। ताज़ा मामला बृज एन्क्लेव का है, जहाँ एक ऐसी बहुमंजिला इमारत का निर्माण हुआ है जिसकी नींव ही धोखाधड़ी पर रखी गई है। इस इमारत के नीचे केवल कंक्रीट और सरिया नहीं है, बल्कि गरीब किसानों की जमीन, कब्रिस्तान की पवित्रता, फर्जी दस्तावेज़ों की साज़िश और सत्ता के संरक्षण की मोटी परतें हैं। यह न केवल उस इमारत की दीवारें उधेड़ती है, बल्कि उन तिकड़मी बिल्डरों, बेईमान अधिकारियों और सत्ता के दलालों की परतें भी खोलती है, जिन्होंने इस अपराध को अंजाम दिया और अब खुलेआम घूम रहे हैं। रणभेरी के पास जब एक गरीब परिवार ने अपने दस्तावेज़ों के साथ मदद की गुहार लगाई, तब यह सामने आया कि किस प्रकार से सद्दाम हुसैन, अल्ताफ अंसारी और रिज़वान नाम के तीन शातिर लोग, विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से ऐसी जमीन पर बहुमंजिला इमारत खड़ी कर देते हैं, जिस पर उनका कोई वैधानिक हक नहीं था। और इससे भी गंभीर बात यह कि यह जमीन आंशिक रूप से एक कब्रिस्तान की है। जिसका उपयोग किसी भी सूरत में व्यावसायिक या आवासीय निर्माण के लिए नहीं किया जा सकता। इस मामले को सामने लाने के बाद भी प्राधिकरण द्वारा की गई कार्रवाई केवल कागजी साबित हुई। ना तो जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई हुई, ना ही रिज़वान की तरह के बिल्डरों को जेल भेजा गया। बल्कि, कुछ ही समय में मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इसके पीछे का कारण और भी चौंकाने वाला है वह है डील। सूत्रों के अनुसार, रिज़वान ने प्राधिकरण के वीसी पुलकित गर्ग और जोनल अधिकारी संजीव कुमार को ध्वस्तीकरण रोकने के बदले एक-एक फ्लैट सौंप दिए। चार फ्लैट की यह "सौदेबाज़ी" भ्रष्टाचार का वह आईना है जिसमें वाराणसी जैसे शहर की साख को दागदार किया गया। इस पूरे मामले में रिज़वान और उसके साझेदारों की भूमिका केवल अपराधियों जैसी नहीं है, बल्कि वे इस व्यवस्था के उत्पाद भी हैं...एक ऐसी व्यवस्था जिसमें पैसे और पहुंच के दम पर कानून को झुकाया जा सकता है, अफसर खरीदे जा सकते हैं, और न्याय को टालना एक आम चलन बन गया है।

चुप्पी की आड़ में खेला गया ज़मीन का खेल

इस पूरे मामले की तह में उतरने पर तीन प्रमुख नाम उभरकर सामने आते हैं...सद्दाम हुसैन, अल्ताफ अंसारी, और रिज़वान। ये तीनों ना सिर्फ एक अवैध निर्माण के सूत्रधार हैं, बल्कि विभागीय तंत्र की कमज़ोर कड़ियों को भांपकर उसे अपने पक्ष में मोड़ने वाले खतरनाक खिलाड़ी भी हैं। इनकी कार्यप्रणाली, रिश्तों का जाल, और दस्तावेज़ों के साथ की गई जालसाज़ी, भ्रष्टाचार की एक भयावह तस्वीर प्रस्तुत करती है। सद्दाम हुसैन अशफाक नगर क्षेत्र का निवासी है, जिसका नाम पहले भी ज़मीन विवादों में उछल चुका है। हालांकि, उस पर कभी कोई गंभीर कानूनी कार्रवाई नहीं हो पाई, शायद इसलिए क्योंकि वह हमेशा 'सेटिंग' के सहारे कानूनी शिकंजे से बचता रहा है। बृज एन्क्लेव के जिस भूखण्ड पर बहुमंजिला इमारत बनाई गई है, उस पर सद्दाम का कोई वैध अधिकार नहीं था, फिर भी उसने अपने भाई अल्ताफ के साथ मिलकर खुद को मालिक घोषित करवा लिया। सद्दाम की विशेषता यह है कि वह अपने पीछे कोई स्पष्ट सबूत नहीं छोड़ता। वह खुद कभी सामने नहीं आता, बल्कि दस्तावेजों की 'कवच' में रहकर सारे काम करवाता है। इस बार भी, फर्जी दस्तावेजों के दम पर पहले 1200 वर्गफीट जमीन का नक्शा पास कराया गया और बाद में पूरे 6000 वर्गफीट पर कब्जा कर लिया गया।

यह भी ज्ञात हुआ है कि अल्ताफ ने दस्तावेज़ों की फाइलिंग और मानचित्र स्वीकृति के समय प्राधिकरण के कर्मचारियों से नजदीकी बना ली थी। विभागीय सूत्रों की मानें तो जिस दिन यह फर्जी मानचित्र पास हुआ, उस दिन अल्ताफ की प्राधिकरण में लंबी बैठक हुई थी, जिसे "चाय-पानी" के नाम पर "सेटिंग" कहा जा रहा है। इस पूरे प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण और शातिर नाम है रिज़वान। रिज़वान खुद को 'बिल्डर' बताता है, लेकिन हकीकत में वह एक ऐसा व्यक्ति है जो जमीन कब्जाने, दस्तावेज़ों को फर्जी रूप देने और सरकारी सिस्टम को मैनेज करने में माहिर है। रिज़वान ने न केवल इस अवैध निर्माण की योजना बनाई, बल्कि निर्माण से पहले दस्तावेज़ों की पूरी 'स्क्रिप्ट' तैयार की। एक किसान की जमीन और कब्रिस्तान की जमीन को जोड़कर इसे एक 'नकली भूखंड' में तब्दील कर दिया गया, जिसमें अल्ताफ और सद्दाम को मालिक बताया गया। फिर उसी के आधार पर मानचित्र स्वीकृत हुआ। रिज़वान की ताकत उसके संबंधों में है। वह वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के अधिकारियों से लेकर निगम के बाबुओं तक को "मैनेज" करने में माहिर है। सूत्रों के अनुसार, प्राधिकरण के वीसी पुलकित गर्ग और जोनल अधिकारी संजीव कुमार के साथ उसकी कई 'बंद कमरे' की मुलाकातें हुईं जिनका नतीजा था ध्वस्तीकरण से बचाव और बदले में फ़्लैटों का वितरण।

कोई कार्रवाई क्यों नहीं?

इतने बड़े फर्जीवाड़े और कब्जे के बावजूद इन तीनों में से किसी को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। कारण साफ है... पैसे का प्रभाव और सत्ता का संरक्षण। विभागीय अधिकारी जिनकी जिम्मेदारी थी कि वे इस निर्माण को रुकवाएं और जिम्मेदारों को सज़ा दिलाएं, वे खुद इस भ्रष्टाचार में हिस्सेदार बन गए। इनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई ना होना यह दर्शाता है कि प्रशासनिक तंत्र के भीतर एक अदृश्य गठजोड़ काम कर रहा है, जो अपराधियों को सज़ा से बचा लेता है और जनहित की बलि चढ़ा देता है।

कब्रिस्तान और किसान की ज़मीन पर खड़ी की गई इमारत 

इस मामले की जड़ में अगर सबसे बड़ा कोई षड्यंत्र छुपा है तो वह है फर्जी दस्तावेज़ों का सुनियोजित निर्माण, जिसकी बदौलत एक पूरी इमारत खड़ी हो गई। दस्तावेज़ों की इस घातक चालबाज़ी में न केवल नियमों की अनदेखी की गई, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और मानवीय मूल्यों को भी पूरी तरह कुचल दिया गया।वाराणसी जैसे धार्मिक और संवेदनशील शहर में जहाँ कब्रिस्तान की जमीन को पवित्र माना जाता है, वहाँ एक बहुमंजिला इमारत का निर्माण यह दर्शाता है कि लालच और प्रभाव का गठबंधन किस हद तक जाकर कानून और आस्था दोनों को रौंद सकता है। यह फर्जीवाड़ा एक सोची-समझी योजना के तहत शुरू हुआ। रिज़वान, जो कि पहले से ही फर्जी दस्तावेज़ों की 'फैक्ट्री' चला रहा था, ने बृज एन्क्लेव में स्थित एक भूखंड की पहचान की, जिसका स्वामित्व स्पष्ट नहीं था। जमीन का एक हिस्सा एक स्थानीय गरीब किसान के नाम था और शेष हिस्सा कब्रिस्तान के अंतर्गत आता था। रिज़वान ने सद्दाम और अल्ताफ को इस “गोल्डन चांस” के रूप में पेश किया। एक ऐसी ज़मीन, जहाँ कागजों की थोड़ी सी हेराफेरी करके मालिकाना हक दिखाया जा सकता था। 

प्राधिकरण को कैसे दी गई वैधता की गलत जानकारी?

फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे, सद्दाम और अल्ताफ ने खुद को भू-स्वामी घोषित किया और विकास प्राधिकरण से नक्शा पास कराने की प्रक्रिया शुरू की। वहाँ भी विभागीय 'सेटिंग' का सहारा लिया गया। अधिकारियों को नकली रजिस्ट्री और खतौनी दिखाकर उन्हें यह यकीन दिलाया गया कि जमीन का स्वामित्व स्पष्ट है। सूत्रों के अनुसार, प्राधिकरण में कार्यरत एक क्लर्क ने इन फाइलों को बिना कोई आपत्ति उठाए पास कर दिया, क्योंकि उसे पहले से “बोल दिया गया था कि मामला ऊपर से सेट है।

बताया जाता है कि पहले फर्जी तरीके से लगभग 1200 वर्ग फ़ीट जमीन पर दो मंजिला आवासीय मकान बनाने के नाम पर मानचित्र स्वीकृत करावा लिया फिर उसके बाद कब्रिस्तान एवं किसान की ज़मीन के कुछ हिस्से पर अतिक्रमण करते हुए लगभग 6000 वर्गफीट भूमि पर चार मंजिला इमारत में 16 फ़्लैट का निर्माण करा डाला।

वास्तविक मालिकों की गुहार अनसुनी

रणभेरी के पास जब उपरोक्त भू खण्ड पर मालिकाना हक़ रखने वाले एक अन्य अत्यंत निर्धन परिवार ने तमाम शिकायती पत्रों सहित पूरा प्रकरण प्रस्तुत किया तो रणभेरी ने इस पूरे मामले की पड़ताल की। मालूम हुआ कि रिज़वान नाम के बिल्डर ने यह सारा खेल खेला और फर्जी कागजों के आधार पर न केवल सद्दाम और अल्ताफ़ को किसी अन्य की ज़मीन का मालिक प्रदर्शित कर दिया बल्कि विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट अधिकारियों को मिलाकर उक्त भूमि के तथा कथित मालिकान के पक्ष में एक मानचित्र भी स्वीकृत करवा लिया। जब रणभेरी ने बड़ी ही प्रमुखता के साथ इस ख़बर को प्रकाशित किया तो प्राधिकरण ने विभागीय स्तर पर नोटिस,  एफआईआर और फिर ध्वस्तीकरण का कागजी आदेश जारी करके अपना पल्ला झाड़ लिया।

एचएफएल क्षेत्र में भी रिज़वान करवा रहा निर्माण 

रिज़वान विभागीय सेटिंग के दम पर शहर के कई हिस्सों में अवैध रुप से व्यसायिक एवं आवासीय भवनों का निर्माण कराने में संलग्न है। बताया जा रहा है कि भेलूपुर वार्ड अंतर्गत विजया मॉल के समीप भी लबे रोड एक व्यवसायिक भवन का निर्माण रिज़वान द्वारा करवाया जा रहा है। सूत्रों की माने तो यह निर्माण भी जिस भूमि पर हो रहा है वह भी एचएफएल क्षेत्र है। इस निर्माण को जोनल अधिकारी संजीव कुमार ने पूरा संरक्षण प्रदान किया हुआ है। इस मामले में पूरी पड़ताल के साथ जल्द ही हम वास्तविक ख़बर से अपने पाठकों को अवगत कराएंगे।

संरक्षण में पलता अपराध, आंख मूंदे बैठा सिस्टम

मौन वीसी...प्रशासनिक चुप्पी या मिलीभगत?

प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग का रुख इस पूरे मामले में सबसे संदेहास्पद रहा। एक ओर, रणभेरी की खबर के बाद दिखावे के लिए एक नोटिस और ध्वस्तीकरण आदेश जारी किया गया, लेकिन दूसरी ओर किसी भी स्तर पर एफआईआर की अनुशंसा या निर्माण पर रोक नहीं लगाई गई। इसके पीछे की वजह भी बेहद चौंकाने वाली है। सूत्रों के अनुसार, रिज़वान ने पुलकित गर्ग को “मैनेज” कर लिया था और उसके बदले उन्हें एक फ्लैट का हिस्सा चुपचाप दे दिया गया। चतुर्थ तल पर बने चार फ्लैटों में एक वीसी, एक जोनल और दो रिज़वान के हिस्से में बांटे गए। यह मौखिक समझौता अब विभागीय गलियारों में आम चर्चा है।

सूचना के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई

रणभेरी द्वारा अवैध निर्माण की खबरें लगातार प्रकाशित की जाती रहीं, इसके बावजूद प्राधिकरण की प्रतिक्रिया हमेशा ‘दिखावटी’ रही। एकबारगी नोटिस जारी किया गया, कुछ कर्मचारी मौके पर भेजे भी गए। लेकिन वह सिर्फ फोटो खिंचवाने और “कार्यवाही प्रगति पर है” जैसा बयान देने तक सीमित रहा। जब स्थानीय नागरिकों ने सवाल उठाया कि यदि ज़मीन का स्वामित्व संदिग्ध है तो फिर ध्वस्तीकरण की औपचारिक कार्रवाई पूरी क्यों नहीं की गई, तब तक निर्माण अंतिम चरण में पहुंच चुका था।

ध्वस्तीकरण से बचाने के एवज में रिज़वान को दिया एक फ्लोर 

सूत्रों से यह ज्ञात हुआ कि रणभेरी ने जब इस अवैध निर्माण की ख़बर को कई बार प्रकाशित किया तो शातिर बिल्डर रिज़वाज ने सद्दाम और अल्ताफ़ से उक्त इमारत को ध्वस्तीकरण से बचाने के नाम पर एक और डील कर लिया। रिज़वान ने प्राधिकरण के वीसी पुलकित गर्ग एवं जोनल अधिकारी संजीव कुमार को मैनेज करने के साथ ही अपना स्वयं का हिस्सा तय कर लिया। विभागीय सूत्र बता रहे है कि इस भवन को ध्वस्तीकरण से बचाने के बदले में इसके चतुर्थ तल पर बने चार फ़्लैट में इन लोगों के बीच फ़्लैट के बंदरबाट का समझौता हुआ।

इस समझौते में एक फ़्लैट वीसी, एक फ़्लैट ज़ोनल और दो फ़्लैट रिज़वान के हिस्से आना है। यही वजह है कि सबने मिलकर इस भवन को बचाने में अपनी अपनी भूमिका निभाई।

पार्ट 11

रणभेरी के सोमवार के अंक में पढ़िए...पर्दे की आड़ में अस्पताल की इमारत में बनकर तैयार हुआ होटल