काव्य-रचना
खुद का साहस
गर बड़ी ख्वाहिशें न होती ,
और इस मन में मेरे जिद्दी साहसे न होती ,
तो जी लेते यूं ही हम भी तकदीर का हवाला देकर ,
न करते कुछ भी आलस्य का सहारा लेकर ,,
और तब ये दर्द भी बड़ा नही होता ।।
पर आवाज आती है ,,अंदर से
जिंदा हौसलों की ,,
सहन कर के बढ़ता चल,,
अजेय , तू अपनी अटल राहों पर,,
की तकदीर भी बोले समय आने पर ,,
न जाने कितने बाधाओं को पार किया है इसने ,
खुद को बनाने को खुद ही से वार किया है इसने,
वरना, यूं ही इस मुकाम पर यहां आज,,
ये मर्द खड़ा नही होता ।।
कुछ लोग जो इस पर्यावरण के मौसम के समान है ,,,
उन मौसम का काम है बदलना
यही उसकी नीयत साफ है ,,
पर खुद बन तू अभिप्रेरण सा गर्म ज्वाला ,
ठंडे पड़े अपने कलेजे का ,की फिर देखें जमाना की
तू खुद में क्या अपने आप है ।
दूसरों की कब तलक, सही जाए कटाक्ष रूपी बाण,
दागा क्यों न जाए, अपनी मेहनत से इन सबका रामबाण,
और जब स्वयं का तेज सा ताप प्रकाशित होगा,,
तो तुम खुद बोलोगे की कपकपा दे मेरी साहस को,,
कोई ऐसा मौसमें सर्द बड़ा नही होता ।।

अजय कुमार पटेल (अजेय)











