ओडिशा में होम गार्ड भर्ती ने खोली बेरोजगारी की पोल, 187 पदों के लिए 9 हजार उम्मीदवारों से रनवे बना परीक्षा केंद्र
(रणभेरी): ओडिशा में बेरोजगारी की स्थिति कितनी गंभीर हो चुकी है, इसका जीवंत उदाहरण संबलपुर में सामने आया, जहां होम गार्ड भर्ती के लिए अभूतपूर्व भीड़ उमड़ पड़ी। महज 187 पदों के लिए 9 हजार से अधिक युवाओं का परीक्षा केंद्र पर पहुंचना न सिर्फ प्रशासन के लिए चुनौती बना, बल्कि सरकार के रोजगार दावों पर भी बड़े सवाल खड़े कर गया।
मंगलवार को संबलपुर पुलिस द्वारा जमदारपाली एयरस्ट्रिप पर आयोजित इस भर्ती परीक्षा में जिले के 24 थानों के लिए होम गार्ड पद भरे जाने थे। सुबह तड़के से ही लंबी कतारें लग गईं। भीड़ का आलम यह था कि परीक्षा स्थल पर तैनात सुरक्षा बलों को व्यवस्था संभालने में पसीने छूट गए।
पांचवीं पास की योग्यता, फिर भी डिग्रीधारी कतार में
होम गार्ड पदों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता मात्र पांचवीं पास तय की गई थी। काम में पुलिस वाहनों का संचालन और बुनियादी कंप्यूटर कार्य शामिल है, जबकि मानदेय 612 रुपये प्रतिदिन निर्धारित है। इसके बावजूद स्नातक, इंजीनियर, एमबीए, एमसीए, डिप्लोमा और आईटीआई पास युवा बड़ी संख्या में परीक्षा देने पहुंचे। यह दृश्य बताता है कि उच्च शिक्षा भी आज रोजगार की गारंटी नहीं रह गई है।
कई अभ्यर्थियों ने बताया कि निजी क्षेत्र में या तो नौकरी नहीं मिल रही, या फिर इतनी कम तनख्वाह है कि घर चलाना मुश्किल हो गया है। मजबूरी में उन्हें छोटे पदों के लिए आवेदन करना पड़ रहा है।
कड़े सुरक्षा इंतजाम, ड्रोन से निगरानी
भीड़ को देखते हुए पुलिस ने व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की। एसपी मुकेश भामू के नेतृत्व में तीन अतिरिक्त एसपी, 24 इंस्पेक्टर, 86 सब-इंस्पेक्टर और एएसआई तैनात किए गए। 100 से अधिक होम गार्ड और ट्रैफिक कर्मी भी लगाए गए। ड्रोन कैमरों से लगातार निगरानी की गई।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तेज
कांग्रेस ने इस भर्ती से जुड़ा वीडियो साझा कर केंद्र सरकार पर हमला बोला। पार्टी का कहना है कि पदों से कई गुना अधिक युवाओं का परीक्षा देना देश में रोजगार संकट की भयावह तस्वीर पेश करता है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार रोजगार देने के बड़े-बड़े दावे तो करती है, लेकिन हकीकत में पढ़े-लिखे युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही।
रोजगार नीति पर गहराता संकट
सामाजिक चिंतक कान्हू चरण बेहुरा के अनुसार यह स्थिति राज्य की रोजगार और आर्थिक नीतियों की विफलता का परिणाम है। जिला स्तर पर रोजगार योजनाओं की कमी, प्राकृतिक संसाधनों का स्थानीय स्तर पर मूल्यवर्धन न होना और सम्मानजनक नौकरियों का अभाव युवाओं को हताश कर रहा है। इसका नतीजा पलायन, निराशा और सामाजिक असंतुलन के रूप में सामने आ रहा है।
सवाल वही- नौकरी किसे मिल रही है?
सरकारें बार-बार रोजगार सृजन के दावे करती हैं, लेकिन संबलपुर की यह तस्वीर पूछ रही है—आखिर नौकरी किसे दी जा रही है? डिग्रियां हाथ में लिए हजारों युवा जब पांचवीं पास की योग्यता वाले पदों के लिए लाइन में खड़े हों, तो यह सिर्फ एक भर्ती नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल है। बेरोजगारी अब आंकड़ा नहीं, जमीन पर खड़ी हकीकत बन चुकी है











