हर-हर बम-बम की जयकारों से गूंजा शिवपुरी का कोना कोना

यादव बंधुओं ने निभाई वर्षों पुरानी परंपरा, हर-हर महादेव के जयघोष से गूंज उठा मंदिर
वाराणसी (रणभेरी सं.)। सावन के पहले सोमवार को काशी शिवमय हो गई है। बाबा विश्वनाथ के दर्शन को भक्तों का रेला उमड़ पड़ा। कई किलोमीटर लंबी लाइन लगी है। मंदिर प्रबंधन की ओर से भक्तों पर पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत किया गया। भोर में मंगला आरती से शुरू हुआ दर्शन-पूजन का सिलसिला देर रात शयन आरती तक चलेगा। सावन के पहले सोमवार को बाबा का दर्शन करने के लिए रात से ही भक्त लाइन में लग गए थे। रात में रुक-रुककर बारिश के बावजूद उनकी आस्था नहीं डिगी। भोर में चार बजे बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार कर भव्य मंगला आरती की गई। इसके बाद मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए। हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ बाबा के दर्शन-पूजन और जलाभिषेक का क्रम शुरू हुआ। मंदिर प्रबंधन की ओर से भक्तों की सुविधा के लिए तमाम इंतजाम किए गए हैं। पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल, जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार और मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्वभूषण समेत अफसरों ने भक्तों पर पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत किया। देशभर से आए श्रद्धालुओं के लिए धाम में प्रशासन द्वारा व्यापक इंतजाम किए गए हैं। पेयजल काउंटर्स, चिकित्सा सहायता केंद्र, खोया-पाया केंद्र सहित अन्य सुविधाएं शामिल हैं।
भोर से शुरू हुआ दर्शन-पूजन का सिलसिला देर रात तक चलेगा। मंदिर प्रशासन को रात तक लगभग 8 लाख भक्तों के दर्शन-पूजन का अनुमान है। भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं। यातायात व्यवस्था को सुचारू रखने के लिए गोदौलिया से काशी विश्वनाथ धाम तक कई डायवर्जन प्वाइंट्स बनाए गए हैं। साथ ही ड्रोन, सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से पूरे इलाके में निगरानी की जा रही है।
जानें क्यों यादव बंधु करते है जलाभिषेक
सैकड़ों साल पहले जब पूरे देश में अकाल था और बारिश नहीं होने के कारण पशु पक्षी और मनुष्य बेहाल थे। उस वक्त नगर के यादव बन्धुओं ने लोक कल्याण के लिए काशी के शिवालयों में जलाभिषेक किया था। इसके बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और बारिश हुई, तभी से ये परम्परा निरन्तर चली आ रही है। 93 सालों से अधिक समय से ये परम्परा चली आ रही है। इस जलाभिषेक यात्रा में यादव बंधु बिल्कुल पारम्परिक वेश भूषा के अलावा नयनों में काजल लगाकर बाबा के जलाभिषेक के लिए निकलते हैं और सभी शिवालयों पर जल चढ़ाते है।
कोटेश्वर महादेव मंदिर में उमड़े श्रद्धालु, किया जलाभिषेक
वाराणसी (रणभेरी सं.)। बड़ागांव के बिगवापुर चकबंकट स्थित कोटेश्वर महादेव मंदिर में सावन के पहले सोमवार पर श्रद्धालु ने चढ़ाया जल। भक्तों ने विधि-विधान से पूजा-अर्चना की और बेलपत्र के साथ जलाभिषेक किया। कोटेश्वर महादेव मंदिर महाशिवरात्रि के अवसर पर मेले का आयोजन होता है। इस दौरान आस-पास के गांवों से बड़ी संख्या में लोग मेले में आते हैं। मंदिर के निकट से वरना नदी बहती है। यह नदी आगे चलकर सरावा गांव में स्थित मां भद्रकाली के मंदिर के पास से गुजरती है। सरावा में स्थित मां भद्रकाली के मंदिर में हर शनिवार को मेला लगता है। दूर-दूर से श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आते हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार, मां भद्रकाली के दर्शन के बाद कोटेश्वर महादेव के दर्शन करने से मनोकामना पूरी होती है। गांव के लोगों ने कोटेश्वर महादेव से प्रार्थना की और उनसे गांववासियों पर कृपा बनाए रखने की विनती की।
यादव बंधुओं ने निभाई सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा
वाराणसी (रणभेरी सं.)। सावन के पहले सोमवार पर यादव बंधुओं ने सैकड़ों साल पुरानी परम्परा का निर्हवन करते हुए श्री काशी विश्वनाथ का जलाभिषेक किया। पूरे पारम्परिक वेशभूषा में शहर भर के यादव बंधु हाथों में जल लेकर शहर के प्रमुख शिवालयों से होते हुए बाबा का जलाभिषेक करने पहुंचे. इस दौरान हर-हर महादेव के जयघोष से विश्वनाथ धाम गूंज उठा। बता दें कि, हर वर्ष सावन के पहले सोमवार को यादव बंधुओं द्वारा श्री काशी विश्वनाथ को जलाभिषेक किए जाने की परंपरा है। वाराणसी के केदारघाट से इस जलाभिषेक यात्रा की शुरूआत होती है. सबसे पहले यादव बंधु गौरी केदारेश्वर का जलाभिषेक करते हैं। उसके बाद तिलभांडेश्वर और फिर दशाश्वमेध घाट से जल लेकर बाबा विश्वानथ को जल अर्पण करते हैं. बाबा विश्वनाथ के दरबार के बाद मृत्युंजय महादेव और त्रिलोचन महादेव के दर्शन कर काल भैरव को जल अर्पण के बाद ये यात्रा पूरी होती है।
शूलटंकेश्वर महादेव समेत कई मंदिरों में लगी भक्तों की कतार
वाराणसी (रणभेरी सं.)। रोहनिया क्षेत्र में सावन के पहले सोमवार पर शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर, केसरीपुर भास्कर तालाब का प्राचीन शिव मंदिर, नरउर का बाबा बाणासुर मंदिर और दरेखू स्थित प्राचीन शिव मंदिर में सुबह से ही भक्तों की लंबी कतारें देखी गईं। श्रद्धालु विशेष पूजन सामग्री के साथ मंदिरों में पहुंचे। उनके हाथों में गंगाजल, बेलपत्र, दूध, दही, शहद और चावल थे। साथ ही काले तिल, गेहूं, धतूरा, भांग, कपूर, सफेद चंदन और भस्म भी लेकर आए। आंक के फूलों की माला और फल भी चढ़ाए गए। भक्त कलश में पंचामृत लेकर आए। 'ॐ नम: शिवाय' मंत्र का जाप करते हुए श्रद्धालुओं ने भगवान शिव को अर्घ्य चढ़ाया। मंदिर की परिक्रमा कर अपनी मनोकामनाएं मांगी। परंपरा के अनुसार, ये सभी चढ़ावे शिव जी के विभिन्न गुणों और उनसे जुड़ी पौराणिक कथाओं से संबंधित हैं। प्रशासन ने शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर पर विशेष सुरक्षा व्यवस्था की। गंगा घाट पर गोताखोर, मोटरबोट और स्टीमर की व्यवस्था की गई। हजारों श्रद्धालुओं ने व्यवस्थित रूप से लाइन में लगकर दर्शन-पूजन किया। साथ ही गंगा में रस्सी बांधकर श्रद्धालुओं को रोका गया जिससे वह गहरे पानी में न जाए और कोई आकस्मिक घटना घटित ना हो।