कफ सिरप के जरिए मौत का कारोबार, वाराणसी से फैला देशभर में जहर का जाल
* विभोर राणा और विशाल राणा का करीबी है वाराणसी का प्रशांत उपाध्याय
*1000 करोड़ की बेनामी सम्पत्ति खड़ी कर रखी है वाराणसी के प्रशांत उपाध्याय ने
वाराणसी (रणभेरी विशेष संवाददाता)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से एक ऐसा मामला संज्ञान में आया है जो न केवल कानून-व्यवस्था की पोल खोलता है, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक नैतिक और सामाजिक खतरे की घंटी भी है। यह मामला किसी साधारण दवा तस्करी का नहीं, बल्कि उन नशे के सिरपों से जुड़ा है जो अब हजारों किशोरों और युवाओं के शरीर-मन को खोखला कर रहे हैं। यह वही सिरप है जो खांसी मिटाने के लिए बनाई गई थी, लेकिन अब उसी से लाखों परिवारों की सांसें थमने लगी हैं।
हमारे विशेष सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि मंडुवाडीह थाना क्षेत्र के मडौली निवासी तथाकथित दवा कारोबारी प्रशांत उपाध्याय उर्फ़ लड्डू का कनेक्शन हाल में सहारनपुर से गिरफ्तार हुए विभोर राणा और विशाल राणा से है। बताया जा रहा है कि वाराणसी के सप्तसागर दवा मंडी में राजेंद्र ड्रग एजेंसीज एवं राधिका एंटरप्राइज नाम से फर्म संचालित करने वाला प्रशांत उपाध्याय पिछले 2 पीढ़ी से चल रहे कोडिन कफ सिरप (फेंसीडिल, एस कफ, ऑनरेक्स सहित अन्य प्रतिबंधित सिरप ) के काले कारोबार की कमान संभाल रहा है। सूत्र बताते है कि यह व्यक्ति सिर्फ कोडिन सिरप ही नहीं बल्कि हर तरीके के नारकोटिक्स प्रोडक्ट का अवैध कारोबार करता है।
विभोर राणा और विशाल राणा का करीबी है प्रशांत
बताते चले कि तीन दिन पूर्व लखनऊ एसटीएफ ने सहारनपुर के दो सगे भाईयों समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया है। आरोप है कि इन दोनों भाइयों ने फर्जी फर्म बनाकर नशा तस्करों को महंगे दामों में फेंसेडिल सिरप की सप्लाई की और इस अवैध कारोबार से अर्जित कालेधन से 200 करोड़ रुपये कीमत की संपत्ति बना ली। पुलिस ने इनके दो साथियों को भी गिरफ्तार किया है। इनसे दो पिस्टल भी बरामद हुए हैं। चार मोबाइल फोन और इनकी गाड़ी से भारी मात्रा में दस्तावेज भी मिले हैं। अब इन सभी दस्तावेजों की जांच की जा रही है।
जानिए क्या है राणा भाईयों का पूरा मामला
बीते 3 दिन पूर्व स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ ने सहारनपुर में छापा मारकर बड़े स्तर पर फेंसेडिल कफ सिरप की तस्करी के मामले का भंडाफोड़ किया है। टीम ने फेंसेडिल कफ सिरप के साथ-साथ कोडीनयुक्त नशीली दवाओं की अवैध तस्करी के आरोपी दो सगे भाईयों समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया है। एसटीएफ को यह सूचना मिली थी कि, सहारनपुर में फेंसेडिल कफ सिरप का अवैध भंडारण करके नशे के रूप में प्रयोग करने के लिए इसका अवैध कारोबार किया जा रहा है। सहारनपुर से इस सिरप को यूपी समेत उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, असम, पश्चिम बंगाल और यहां तक कि बांग्लादेश भेजा जा रहा है। इस सूचना की जांच पड़ताल करने पर विभोर राणा का नाम सामने आया। इसके बाद जब विभोर राणा की कुंडली खंगाली गई तो पता चला कि विभोर राणा ने अपने भाई विशाल सिंह के साथ मिलकर वर्ष 2018 में एक फर्म जीआर ट्रेडिंग के नाम बनाई और इस फर्म पर एबॉट कंपनी से सुपर डिस्ट्रीब्यूशनशिप ले ली। पहले कुछ दिन तक तो इन दोनों ने ठीक से काम किया लेकिन कुछ ही समय बाद इन्होंने फर्जी फर्म बनवाकर रिटेलर्स के लिए स्टोर किए गए फेंसेडिल सिरप को बड़ी मात्रा में नशे के कारोबारियों को सप्लाई करना शुरू कर दिया। इस सिरप को इतने अधिक ऊंचे दाम पर बेचा गया कि इन लोगों ने कुछ ही समय में 200 करोड़ रुपये की संपत्ति जुटा ली।
1000 करोड़ की बेनामी सम्पत्ति खड़ी कर रखी है वाराणसी के प्रशांत उपाध्याय ने
सूत्र बताते है कि सहारनपुर के विभोर राणा और विशाल राणा के साथ जुड़कर सिरप का काला कारोबार करने वाले वाराणसी निवासी प्रशांत उपाध्याय ने कम समय में अपने काले कारोबार के जरिये अकूत संपत्ति बना लिया। इस तथाकथित दवा व्यवसायी के मडौली स्थित मकान की क़ीमत लगभग सौ करोड़ बतायी जा रही है। अपने काले कारोबार की अवैध कमाई से इसने यह व्यक्ति रोहनिया क्षेत्र में लगभग सौ करोड़ रूपये की लागत से एक आलीशान होटल का निर्माण करवा रहा है। सूत्र यह भी बताते है कि कोतवाली थाना क्षेत्र के सप्तसागर दवा मार्केट में एक काम्प्लेक्स तथा सिगरा क्षेत्र में भवानी मार्केट के नाम से एक बड़ा व्यवसायिक काम्प्लेक्स भी है ।
विदित हो कि कोरोना के वक्त भी प्रशांत उपाध्याय के इस अवैध कारोबार की खबरें विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई थी। मगर पैसे और पावर की बदौलत इस ड्रग माफिया ने पूरे के पूरे सिस्टम के गले में पट्टा दाल दिया था और बड़े सफाई से मामले को दबा दिया गया। बताया जा रहा है कि शहर के कुछ बड़े सत्ताधारी नेता व मंत्री के साथ भी प्रशांत के बेहद करीबी रिश्ते है। अपने काले कारोबार की बदौलत प्रशान्त से लगभग 1000 करोड़ की बेनामी सम्पत्ति है खड़ी कर ली है। वाराणसी के सप्तसागर दवामंडी में लगभग एक दर्जन ऐसे लोग है जो प्रशांत के लिए बड़े पैमाने पर काला कारोबार आगे बढा रहे है।
नशे की बोतलों में बंद मौत
अभी तक मिली जानकारी के अनुसार वाराणसी के जिस तथाकथित दवा व्यवसायी प्रशांत उपाध्याय का नाम सामने आ रहा है जिसे बड़े पैमाने पर सिरप के काले कारोबार का मुख्य सरगना बताया जा रहा है। उसके सिंडिकेट की देख-रेख में दवा के रूप में बिकने वाले कोडीन युक्त कफ सिरप का अवैध व्यापार अब इस स्तर तक फैल चुका है कि देश के लगभग एक दर्जन राज्यों के हर गली-नुक्कड़ पर नशे की यह "मीठी मौत" बेची जा रही है। कोडीन, जो अफीम से निकला रसायन है, खांसी रोकने के लिए सीमित मात्रा में उपयोगी होता है, लेकिन जब इसका सेवन नशे के रूप में होने लगता है, तो यह अंदरूनी अंगों को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है। किशोरों और छात्रों में इसकी लत इतनी गहरी हो चुकी है कि अब यह सिर्फ “कफ सिरप” नहीं रहा, यह नशे का नया चेहरा बन गया है।
काले धन की चमक में डूबा नैतिक अंधकार
इस धंधे की जड़ें वाराणसी से निकलकर अब बिहार, झारखंड, पंजाब, दिल्ली, गाजियाबाद और हिमाचल तक फैल चुकी हैं। सूत्र बताते हैं कि कुछ प्रभावशाली लोगों ने कानूनी फार्मा व्यवसाय की आड़ में यह अवैध नेटवर्क खड़ा किया। नकली बिलिंग, फर्जी गोदाम, और परिवहन लाइसेंस के जरिए लाखों बोतलें हर हफ्ते देश के विभिन्न हिस्सों में भेजी जा रही हैं। यह सब उस “काले धन” की भूख का नतीजा है जिसने इंसानियत को भी खरीद लिया है। जिस व्यापार से लोगों की ज़िंदगी बचनी चाहिए थी, वही व्यापार अब उनकी मौत का सौदा कर रहा है।
युवाओं की सेना बना रहा है यह व्यापार
सबसे डरावनी बात यह है कि इस व्यापार में सैकड़ों की संख्या में युवा लड़के शामिल हो चुके हैं। वाराणसी और आसपास के जनपदों के कई बेरोजगार युवाओं को यह धंधा आसान पैसे का रास्ता लगा। धीरे-धीरे वही लड़के अब सिरप की तस्करी, नकली वितरण लाइसेंस बनवाने और पुलिस की नज़रों से बचाने के “माध्यम” बन गए हैं। एक स्थानीय जांच अधिकारी के अनुसार, “ये युवक अब अपराध की उस दलदल में उतर चुके हैं जहां से निकलना लगभग असंभव है। वाराणसी के सप्तसागर दावा मंडी में पहले जो युवा कंधे पर दवाओं की पेटी ढोते थे, अब वही युवा अवैध नेटवर्क चलाने लगे हैं।” यह स्थिति किसी सामाजिक महामारी से कम नहीं।
वाराणसी- नैतिकता का केंद्र या नशे का नया गढ़?
वाराणसी वह शहर है जहां जीवन और मृत्यु दोनों की दार्शनिकता बसी है, जहां गंगा की धारा पवित्रता का प्रतीक मानी जाती है। लेकिन दुखद है कि उसी पवित्र नगरी से अब नशे की यह गंदी धारा बह रही है। कफ सिरप का यह काला कारोबार इस बात का प्रतीक है कि किस तरह लालच, शक्ति और प्रभाव ने यहां की सामाजिक आत्मा को झकझोर दिया है। जब किसी शहर में वकालत, शिक्षा और चिकित्सा जैसे पेशे के लोग ही अपराध के केंद्र में आ जाएँ, तो यह कानूनी ही नहीं, नैतिक पतन का संकेत है।
कानून क्या कहता है- NDPS Act की धाराएँ और कठोर दंड
भारत का NDPS Act 1985 (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act) ऐसे अपराधों पर सख्त कार्रवाई का प्रावधान करता है।
इस कानून के तहत:
धारा 21 – प्रतिबंधित मादक पदार्थों की खरीद-फरोख्त पर 10 वर्ष की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना।
धारा 22 – मनोदैहिक पदार्थों की तस्करी पर 20 वर्ष की सजा और दो लाख रुपये तक जुर्माना।
धारा 25 – अगर कोई व्यक्ति अपने घर, गोदाम या दुकान का उपयोग ऐसे अपराध के लिए करवाता है तो उसे भी समान सजा दी जा सकती है।
इसके अलावा Drugs and Cosmetics Act, 1940 की धारा 18 और 27 के अंतर्गत फर्जी लाइसेंस, गलत लेबलिंग या बिना प्रिस्क्रिप्शन दवा की बिक्री पर जेल और जुर्माना दोनों का प्रावधान है। अगर इन कानूनों का सख्ती से पालन किया जाए, तो ऐसे रैकेट का सफाया असंभव नहीं।
पुलिस और प्रशासन के सामने जटिल चुनौती
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इस अपराध की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह “कानूनी कारोबार की आड़” में चलता है। दवा कंपनियों के नाम पर बिल बनाए जाते हैं, जबकि असल खेप नशे के बाजार में पहुंचती है। इसीलिए पुलिस को औषधि निरीक्षक विभाग और राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) के साथ तालमेल बनाना होगा। केवल छापेमारी से नहीं, बल्कि आर्थिक अपराध शाखा (EOW) के जरिए इनकी जड़ों को काटने की जरूरत है। यह तब ही संभव है जब राजनीतिक संरक्षण और स्थानीय प्रभाव की परवाह किए बिना सख्त कार्रवाई की जाए।
सरकार के लिए बड़ा सवाल, जीरो टॉलरेंस कब जमीन पर दिखेगा?
उत्तर प्रदेश सरकार लंबे समय से “जीरो टॉलरेंस” की नीति का दावा करती रही है।
लेकिन जब वाराणसी जैसे महत्वपूर्ण शहर में ही यह नशे का नेटवर्क फल-फूल रहा है, तो यह नीति सवालों के घेरे में आती है।
जरूरी है कि हर मेडिकल स्टोर की मासिक ऑडिट रिपोर्ट अनिवार्य की जाए,
ऑनलाइन दवा विक्रेताओं पर सख्त निगरानी रखी जाएऔर प्रिस्क्रिप्शन-वेरिफिकेशन सिस्टम लागू किया जाए ताकि डॉक्टर की लिखी दवा से अधिक मात्रा कोई न ले सके। अगर ये कदम नहीं उठाए गए, तो वाराणसी की गलियों से उठी यह “नशे की लहर” जल्द ही पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगी।











