नौनिहालों की किलकारी नहीं अब रूम सर्विस की बजेगी घंटी

नौनिहालों की किलकारी नहीं अब रूम सर्विस की बजेगी घंटी
  • जनता के लिए खुले मेहता अस्पताल पर पड़ गया कुकर्मियों का काला साया 
  • किसने रची ये साजिश : कर्मचारियों का अपमान करो, मरीजो को भगाओ, फिर सब कुछ बेच डालो ?
  • जिम्मेदारों ने नहीं निभाई अपनी जिम्मेदारी, जनता के साथ किया धोखा, उम्मीदों के साथ की गद्दारी
  • सवाल : जब अस्पताल बिक रहा था, तब सीएम के चौकीदार कहां थे ?
  • झूठे साबित हुए दयालु गुरु के भी दावे, गरीबों का सहारा मेहता अस्पताल के अस्तित्व को बचाने में रहे नाकाम 

अजीत सिंह

वाराणसी (रणभेरी): बनारस, जिसे काशी, अविमुक्त क्षेत्र और आनंदवन जैसे नामों से जाना जाता है, भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अभिन्न हिस्सा है। यहां की पवित्र भूमि पर श्रद्धा और आध्यात्मिकता की विशेष अनुभूति होती है। यह वही स्थान है जहां जीवन और मृत्यु के अर्थ को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा जाता है, और यहां गंगा नदी का बहाव केवल जल प्रवाह नहीं, बल्कि एक दिव्य आस्था का प्रतीक है। इसी भूमि पर कई राजा-महाराजा, व्यापारी और दानवीर अपने पुण्य कार्यों के लिए आए, ताकि वे इस पवित्र धरती पर कुछ सार्थक योगदान दे सकें। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, कोलकाता के दो महान व्यापारी वल्लभ राम मेहता और शालिग्राम मेहता ने बनारस में एक अस्पताल की स्थापना की। इस अस्पताल निर्माण का उद्देश्य न तो व्यावसायिक होकर लाभ कमाना था, और न ही किसी प्रकार का व्यक्तिगत प्रचार। यह अस्पताल धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा संचालित था, जिसमें गरीबों और जरूरतमंदों को अत्यंत सस्ती दरों पर या मुफ्त इलाज की सुविधा प्रदान की जाती थी। मेहता अस्पताल ने न केवल बनारस बल्कि आसपास के क्षेत्रों के गरीबों के लिए एक ऐसी स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था की थी, जिसमें सेवा और समर्पण की भावना प्रमुख थी। अस्पताल की स्थापना एक उदाहरण थी, जिसने समाज की सेवा को प्राथमिकता दी और यह सुनिश्चित किया कि बनारस के लोग खासकर पक्के मोहल्ले के लोग बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं से लाभान्वित हो सकें।

जनता के लिए खुला मेहता अस्पताल दलालों की भेंट चढ़ गया

5 अप्रैल 2017...एक तारीख जिसे वाराणसी की जनता आज भी नहीं भूलती। रामघाट पर बसा 80 बेड वाला वल्लभ राम शालिग्राम मेहता अस्पताल, जिसे कभी गरीबों की सेवा के लिए खोला गया था, आज गंगा किनारे किसी आलीशान होटल में तब्दील हो चुका है। तब तत्कालीन डीएम योगेश्वर राम मिश्र और सीएमओ डॉ. वीबी सिंह ने नारियल फोड़कर अस्पताल में ओपीडी सेवा की शुरुआत की थी। उम्मीदों की लौ जलाई थी। तब दावा हुआ था कि अस्पताल को मल्टी-स्पेशियलिटी बनाया जाएगा। पूरे बनारस सहित पूर्वांचल में उम्मीदें जगीं कि अब गंगा किनारे एक आधुनिक अस्पताल सेवा देगा। लेकिन क्या हुआ? कुछ ही महीनों में ये सेवा केंद्र असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया। और कुछ ही सालों में एक साजिश, एक सौदा, और अस्पताल की नींव हिला दी गई। और मल्टी-स्पेशियलिटी का यह सपना, एक सपना बनकर ही रह गया। 

वीडीए उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग

साजिश : कर्मचारियों का अपमान करो, मरीज भगाओ, फिर बेच डालो

सपना था सुपर स्पेशियलिटी का, हकीकत बना नशेड़ियों और जुआड़ियों के अड्डा। नवंबर 2017 आते-आते गंगा किनारे यह अस्पताल किसी उपचार केंद्र की जगह असामाजिक तत्वों का गढ़ बन गया। डॉक्टरों को धमकाया जाने लगा, कर्मचारियों को प्रताड़ित किया जाने लगा, महिला कर्मचारियों के साथ बदसलूकी होने लगी। लेकिन न नेता बोले, न अफसर चेते। तत्कालीन राज्यमंत्री नीलकंठ तिवारी, जिन्होंने विधायक के रुप में निर्वाचित होने के बाद वाहवाही लूटने के मक़सद से खुद अस्पताल की मृत प्राय ओपीडी का पुन:उद्घाटन कराया था, उन्होंने भी सोशल मीडिया पर वाहवाही लूटने के बाद  पलटकर दोबारा देखना जरूरी नहीं समझा। नतीजा? गैलरियों में गुटखे की थूक, वार्डों में ताश की गड्डियां, और अस्पताल के बेड पर मरीज नहीं, बल्कि अपराध का पोषण होने लगा।

सेवा के मंदिर को बना दिया मुनाफे का सौदा

विगत कई वर्षो से मेहता अस्पताल के बंद होने या फिर बिक जाने की अफवाहों के बीच जब माननीय मंत्री जी की एंट्री हुई तो आम जनमानस को यह भरोसा हो गया कि अब अस्पताल का जीर्णोद्धार होकर ही रहेगा। लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत। शहर दक्षिणी के विधायक और पूर्व राज्यमंत्री की खामोशी और मौन समर्थन के बीच ट्रस्ट के कुछ सदस्यों ने मिलकर एक फर्जी फैमिली ट्रस्ट बनाया, कर्मचारियों को निकाला, मरीजों की कैंटीन बंद की गई और धीरे-धीरे अस्पताल की सांस रोक दी गई। करोड़ों की संपत्ति को औने-पौने दाम पर बेच दिया गया। गंगा किनारे की जमीन पर होटल बनाने की प्लानिंग पहले ही कर ली गई थी। और इसमें साथ दिया वी.डी.ए. के अधिकारियों ने, जो चाहते तो एक भी ईंट नहीं रखी जाती, लेकिन उन्होंने भी नज़रें फेर लीं।

नीलकंठ तिवारी (विधायक, दक्षिणी विधानसभा)

जनता के साथ धोखा, उम्मीदों के साथ गद्दारी

जिस अस्पताल को एक गरीब की आखिरी उम्मीद समझा जाता था, उसे सत्ता, पैसे और मुनाफे के लिए मार दिया गया। उस अस्पताल में बलदेव राम और शालिग्राम मेहता की आत्मा बसती थी, जिन्होंने वसीयत में लिखा था कि ये जगह गरीबों के इलाज के लिए समर्पित रहेगी। लेकिन सत्ता के भूखे लोगों ने उस आत्मा को भी बेच खाया। आज जहां कभी जीवन बचता था, वहां अब एक आलीशान होटल की दीवारें उठ रही हैं। वहां अब कोई मरीज़ नहीं आता, कोई डॉक्टर नहीं दिखता, बस एक होटल जैसा आभास कराने वाली गैलरी और शानदार कमरे दिख रहे हैं लेकिन इस इमारत की चमक ही अब इस शहर की सबसे बड़ी शर्म है।

सवाल अभी ज़िंदा है : जब अस्पताल तोड़कर होटल बन रहा था, तब सीएम के चौकीदार कहां थे ?

वार्ड की पूर्व पार्षद श्रीमती साधना वेदांती, जो खुद वीडीए बोर्ड की मेंबर हैं, क्या उन्हें अस्पताल की इमारत तोड़कर होटल बनाए जाने की खबर नहीं थी? क्या स्थानीय विधायक को गंगा किनारे हो रही इस डील की भनक नहीं थी ? क्या वीडीए के चेयरमैन को गंगा किनारे अवैध रूप से बनाए जा रहे अवैध होटल की खबर नहीं थी ? जनता पूछ रही है और जवाब अब भी बाकि है।

साधना वेदांती (सदस्य वाराणसी विकास प्राधिकरण बोर्ड)

गंगा किनारे आज भी उठ रही न्याय की चीखें

वाराणसी के रामघाट पर खड़ा वह मेहता अस्पताल अब सिर्फ ईंट-पत्थर की खड़ी शानदार इमारत नहीं है। वह एक प्रतीक है...सिस्टम की नाकामी का, जनप्रतिनिधियों की मुनाफाखोरी का, और उस भरोसे के टूटने का जो जनता ने "सरकारी निगरानी" नामक छलावे पर किया था। सवाल सीधा है... जिस अस्पताल को जनता के स्वास्थ्य की रीढ़ बनना था, वह सफेदपोशों और दलालों की साजिश में क्यों दम तोड़ गया ? क्यों मुख्यमंत्री के जिले में, मुख्यमंत्री के ‘चौकीदारों’ की मौजूदगी में, जनता की सेवा के केंद्र को निजी मुनाफे की चिता में झोंक दिया गया? आज गंगा किनारे एक होटल खड़ा है। लेकिन उस होटल की हर ईंट एक वादा तोड़ती है, हर दीवार एक धोखे की कहानी कहती है। शासन और प्रशासन का कोई नुमाइंदा यह जवाब नहीं दे पा रहा कि एक सौ साल पुराना अस्पताल आखिर क्यों और कैसे बेचा गया ? कहां गया वह प्रस्ताव, जो इसे मल्टी सुपर स्पेशियलिटी बनाने की बात करता था ? किस फाइल में दफन है जनता की सेहत का वह सपना ? अगर यही विकास है, अगर यही ‘स्मार्ट सिटी’ का मापदंड है, तो यह विकास नहीं, विनाश है। और यह विनाश सिर्फ एक इमारत का नहीं, बल्कि जनता के विश्वास का है।

सोते रहे चौकीदार, दलालों ने बेच दिया मेहता अस्पताल 

जिस वाराणसी में प्रधानमंत्री ‘स्वास्थ्य सुविधाओं के सशक्तिकरण’ की बात करते हैं, उसी वाराणसी के रामघाट पर सौ साल पुराना बलदेव राम शालिग्राम मेहता धर्मार्थ अस्पताल, सत्ता और पूंजी की साँठगाँठ में निगल लिया गया। वो अस्पताल, जिसकी नींव में दानवीरों की भावना और जनता की सेवा की प्रतिबद्धता थी, उसे चुपचाप बेचकर वहां होटल खड़ा कर दिया गया और सत्ता की चुप्पी साफ इशारा करती है कि यह अपराध 'मूक सहमति' से हुआ। ट्रस्टियों प्रदीप लाल मेहता, मनोज मेहता और अविनाश मेहता ने जिस फर्जी ट्रस्ट के दम पर अस्पताल को हथियाया, वह महज़ पहला कदम था। इसके बाद वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए), नगर निगम, स्थानीय विधायक और पूर्व राज्यमंत्री नीलकंठ तिवारी सहित वर्तमान आयुष मंत्री जैसे जनप्रतिनिधियों ने या तो आंख मूंद ली, या मिलीभगत कर ली। वीडीए की बोर्ड सदस्य और पूर्व पार्षद साधना वेदांती ने उस निर्माण को होते देखा, जिसे रोकने की संवैधानिक जिम्मेदारी उन्हीं की थी।

जनता को मल्टी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का सपना दिखाकर ठगा गया, और जब पर्दा गिरा, वहाँ एक निजी होटल खड़ा था। इस होटल की नींव में सिर्फ सीमेंट और कंक्रीट नहीं, बल्कि गरीबों की उम्मीदें, बीमारों की चीखें और जनप्रतिनिधियों की बेईमानी की ईंटें भी शामिल हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 'चौकीदारों' की मौजूदगी में यह सब कैसे हुआ ? यह सवाल हर उस नागरिक का है जिसने कभी इस अस्पताल में इलाज करवाया था, किसी को भर्ती कराया था, या बस यह उम्मीद की थी कि जब ज़रूरत पड़ेगी, "मेहता अस्पताल" उसका सहारा बनेगा।
अब गंगा किनारे न कोई स्टेथोस्कोप बजता है, न जन्म लेने वाले नौनिहालों की किलकारी गूंजती है। वहाँ अब रूम सर्विस की घंटी बजेगी और वातानुकूलित कमरों में वेटर चलते दिखेंगे। सेवा की जगह अब व्यापार होगा और इस व्यापार में सबसे बड़ा सौदा हुआ है "जनता के विश्वास" का।

हमारी आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता

वर्तमान में जहां हम खड़े हैं, वहाँ एक सन्नाटा पसरा है, लेकिन यह सन्नाटा उस सच्चाई को छुपा नहीं सकता जो चुपके-चुपके गंगा किनारे उस होटल के निर्माण में दबी हुई है। यह सन्नाटा उन आवाज़ों का नहीं है, जिन्होंने कभी इस अस्पताल में इलाज लिया, यह सन्नाटा उन परिवारों का है जिन्होंने एक बेहतर स्वास्थ्य सेवा की उम्मीद में इस अस्पताल को अपनी आशा का केंद्र माना था। यह सन्नाटा उन गरीबों की है जो अब कभी उस पवित्र भूमि पर इलाज के लिए नहीं आ सकेंगे। क्या इस चुप्पी के साथ हमें बैठकर इस अन्याय को स्वीकार करना चाहिए ? क्या हमें इस पूरी साजिश के सामने खुद को निस्तेज और असहाय मान लेना चाहिए ? 

झूठे साबित हुए दयालु गुरु के भी दावे 

बेईमान ट्रस्टियों एवं सत्ता के दलालों की साज़िश का शिकार हुए मेहता अस्पताल से बाहर किए गए कर्मचारियों का अलग ही दर्द है। अस्पताल की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने वाले कर्मचारियों को अलग अलग तरह से प्रताड़ित करके उनकी सेवा समाप्त की गई। अपमान के साथ अपनी नौकरी गंवाने वाले कर्मचारियों की माने तो एक समय जब कर्मचारियों को नोटिस थमा दिया गया था तब डॉ. दयाशंकर मिश्र उर्फ़ दयालु गुरू ने मौके पर आकर कर्मचारियों को मिली नोटिस फाड़कर फेंक दिया था और ललकारते हुए कहा था कि मेरे रहते यह अस्पताल कभी बंद नहीं होगा। जिसके बाद कर्मचारियों सहित क्षेत्रीय जनता को भी यह भरोसा हो गया था कि अब यह अस्पताल कभी बंद नहीं होगा। वक्त बदल गया आज दयालु गुरु उत्तर प्रदेश सरकार में आयुष मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं जिन्हें हम सब डॉ. दया शंकर मिश्र दयालु के नाम से जानते हैं।  बहरहाल सर्वाधिक शर्मनाक सवाल यह है कि दयालु गुरु के आयुष राज्य मंत्री होते हुए भी गरीबों का सहारा मेहता अस्पताल अपने अस्तित्व को बचाने में नाकाम साबित हुआ और माननीय आयुष राज्य मंत्री भी इस अस्पताल को बचाने के लिए कुछ न कर सके।

डॉ. दयाशंकर मिश्र "दयालु" (आयुष राज्य मंत्री, उप्र सरकार)

पार्ट- 13 

रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए...नगवां में कैसे गंगा किनारे गंगवार की जमीन पर तन रहा आलीशान भवन