दबी जुबान बोल रहे हैं देखो अपने नेता जी

- वीडीए में भ्रष्टाचार के सवाल पर कतराते दिखे सरकार के चौकीदार
- नेता जी को चश्मे से सब दिख रहा है चंगा, वीडीए ने बेच दिया खुलेआम किनारा गंगा
- हर एक अवैध निर्माण से पहले होती है डील, फिर भी नेता जी नहीं कर पाए भ्रष्टाचार को फील
- तो समीक्षा बैठक में सीएम को चौकीदार ही दे रहे हैं धोखा !
- जिलाध्यक्ष जी विलाप रहे अलग ही राग, जवाब के बदले में उल्टे सवाल रहे है दाग
- भ्रष्टाचार के सवाल पर तिलमिलाएं भाजपा जिलाध्यक्ष, भ्रष्टाचार के सवाल पर बोलें विपक्षियों ने बिगाड़ा काम
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी वर्षों से विकास और आध्यात्मिक विरासत के संरक्षण की बातों के केंद्र में रहा है। यहां गंगा की स्वच्छता, घाटों के सौंदर्यीकरण और विरासत को संरक्षित करने के नाम पर हजारों करोड़ रुपये की योजनाएं लायी गई। लेकिन जमीनी सच्चाई इन दावों से बहुत अलग नजर आती है। वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए), जो शहर को नियोजित और सुंदर बनाने के लिए एक जिम्मेदार एवं प्रमुख संस्था है, अब खुद ही अनियोजित और अवैध विकास का पर्याय बनती जा रही है। नियमों और पर्यावरणीय मानकों को ताक पर रखकर गंगा के तट से जहां 200 मीटर के भीतर किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं है, वहां आदिकेशव से लेकर अस्सी तक साढ़े 6 किलोमीटर की परिधि वाले पावन गंगा के प्राचीन तट पर धड़ल्ले से बहुमंजिला होटल, गेस्ट हाउस और कॉम्प्लेक्स बनवाए जा रहे हैं। पैसे के हवस में अंधे कुछ धनाढ्य लोग आज कल वीडीए अफसरों को पहले रखैल बना रहे है फिर उसके बाद काशी की साची विरासत को तार तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वाराणसी में गंगा-वरुणा के तटों से लेकर असी के एचएफएल तक अवैध निर्माणों के लिए या तो फर्जी तरीके से गुमराह करने वाले मानचित्र पास कराए गए हैं, या फिर बिना किसी स्वीकृति के "डायरेक्ट डील" पर काम शुरू कर दिया गया है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि वीडीए के कुछ अधिकारी पैसे और प्रभाव के बदले निर्माण कार्यों को नजरअंदाज कर रहे हैं। जोनल अधिकारी स्तर से लेकर उच्चाधिकारियों तक की यह स्थिति है कि गंभीर से गंभीर शिकायत पर भी ये कार्रवाई करने की बजाय वे खुद अवैध निर्माण के संरक्षक बन जाते हैं। इस काले कारनामों को भ्रष्ट अफसर ही बढ़ावा दे रहे हैं। वाराणसी विकास प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्टाचार के मामले पर आम जनता अब सवाल उठा रही है। लोगों का कहना है कि जब प्रधानमंत्री खुद इस क्षेत्र के सांसद हैं और गंगा को 'मां' कहकर उनके संरक्षण की बात करते हैं, तो फिर उनके संसदीय क्षेत्र में यह खुला खेल कैसे ? क्या सरकार के प्रतिनिधि वीडीए के काले कारनामों से अनजान हैं या फिर जानबूझकर आंख मूंदे बैठे हैं ? आखिर सरकार के इन चौकीदारों को किस चश्मे से सब चंगा दिखता है ? जनता जानना चाहती है कि क्या गंगा की पवित्रता और शहर बनारस की विरासत सिर्फ चुनावी भाषणों का हिस्सा बनकर रह गई है, जबकि जमीनी हकीकत में भ्रष्टाचार और अनियोजित विकास ने शहर विनाश के मुहाने पर लेकर जा रहा है? वक्त आ गया है कि अब इन सवालों के जवाब जनता को मिलने ही चाहिए।
जनप्रतिनिधियों से भी नहीं आस, गंगा किनारे बिकता विकास
तुलसी घाट, असि, नगवां, सुंदरपुर, डाफ़ी, लंका, रामघाट, दशाश्वमेध, प्रहलाद घाट, राज घाट, लहरतारा, रथयात्रा इन नामों से काशी का आध्यात्मिक भूगोल सजता है। यही क्षेत्र आज बहुमंजिला होटलों, गेस्ट हाउसों और कॉमर्शियल भवनों से पटे हुए हैं। एक ओर एनजीटी और उच्च न्यायालय के सख्त निर्देश हैं कि गंगा नदी के 200 मीटर के भीतर किसी प्रकार का व्यावसायिक निर्माण नहीं हो सकता, वहीं दूसरी ओर वीडीए उन्हीं जगहों पर भवन निर्माण की अवैध अनुमति देता दिख रहा है। स्थानीय निवासियों की मानें तो पहले किसी भी प्रकार के निर्माण के लिए अनुमति या नक्शा नकारा जाता है, फिर "डीलिंग" के बाद उन्हीं कार्यों को टेबल के नीचे से मंजूरी दी जाती है। किसके बाद पूरी मक्कारी और बेहयाई के साथ अवैध रूप से होने वाले निर्माण पर "मानचित्र स्वीकृत है" का फर्जी बोर्ड लगा दिया जाता है। यह पूरी डीलिंग कैसे और कितने में होती है, इस पर कोई अधिकारी या जनप्रतिनिधि खुलकर बोलने को तैयार नहीं होता। नगवां क्षेत्र हो, असि हो या फिर रामघाट जहां एक बहुचर्चित होटल निर्माण इसका उदाहरण है। यह निर्माण गंगा से महज 120 मीटर की दूरी पर हो रहा है। न नक्शा सार्वजनिक है, न पर्यावरणीय स्वीकृति। लेकिन निर्माण जारी है और स्थानीय प्रशासन मौन है। पूछने पर यही जवाब मिलता है...जांच करवाते हैं। वीडीए सूत्रों की माने तो किसी भी तरह के निर्माण का नक्शा (वैध या अवैध) पास करवाने की अलग अलग कीमत होती है। गंगा किनारे अगर कोई व्यावसायिक नक्शा पास करना है, तो जेई से लेकर ज़ोनल तक की अलग-अलग दरें हैं। बताया जा रहा है कि इसके लिए 2 से 5 लाख रुपये तक का खेल होता है। इसके बाद यदि निर्माण कार्य शुरू होने पर किसी ने विरोध दर्ज कराया या फिर विभाग में कोई शिकायत प्राप्त हुई तो मामला जेई से जोनल तक नहीं रह जाता है निर्माण के चर्चा में आते ही अपर सचिव, सचिव से लेकर वीसी तक की हिस्सेदारी तय हो जाती है। अब सवाल यह है कि जब यह सब खुलेआम हो रहा है, तो फिर सरकार के प्रतिनिधि चुप क्यों हैं?
नेता जी की दबी जुबान या फिर मौन स्वीकृति !
उत्तर प्रदेश सरकार में वाराणसी के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से नेतृत्व करने वाले योगी आदित्यनाथ के विधायक जब शहर में हो रहे अवैध निर्माणों के सवाल पर भागते फिर रहे है। भ्रष्टाचार के सवाल पर माननीय विधायक गण बात करना मुनासिब नहीं समझते हैं। जब सवाल पूछे जाते हैं, तो ये बागली झांकते है और आवाज़ नहीं निकलती। कभी मोबाइल पर बात हो जाए तो जवाब आता है...जानकारी नहीं है, जांच कराएंगे। लेकिन न जांच होती है, न कार्रवाई। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठता है कि क्या नेता जी को कुछ दिखाई नहीं देता या फिर वे सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने हुए हैं ? एक सार्वजनिक स्थल पर अतिक्रमण कर किए जा रहे बड़े निर्माण के मामले में एक भुक्तभोगी ने बताया कि जब उसने सार्वजनिक जमीन पर निर्माण के मामले में अपने विधायक जी को अवगत कराते हुए निर्माण रुकवाने का आग्रह किया तो उन्होंने कहा कि "हमें अधिकार नहीं है, ये तो प्रशासन का विषय है।" सवाल यह है कि जब जनता इन्हीं जनप्रतिनिधियों को चुनती है तो क्या उनकी जवाबदेही नहीं बनती। क्या वे केवल रिबन काटने और फोटो खिंचवाने के लिए पद पर हैं ? कई बार नेताओं की चुप्पी उनकी भागीदारी को दर्शाती है।
गंगा किनारे की ज़मीनो की कीमत करोड़ों में है। अगर वहां किसी भवन का नक्शा पास होता है, तो उसकी कीमत भी बढ़ जाती है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों की मौन स्वीकृति को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। ऐसे में जनता यह जानना चाहती है कि क्या नेता जी सच में नहीं जानते कि गंगा तट के महत्व को दरकिनार कर काशी की विरासत को कैसे नीलाम किया जा रहा है ? शहर में हर तरफ तमाम अवैध निर्माण हो रहे हैं या फिर उन्हें सब पता है, लेकिन चुप रहने की कीमत उन्हें मिल रही है ?
भ्रष्टाचार के सवाल पर भटक गए अपने जिलाध्यक्ष जी, सुनाने लगें ऑपरेशन सिंदूर का किस्सा
वीडीए पर भ्रष्टाचार और अवैध निर्माणों के सवाल को लेकर जब सत्ताधारी दल के जिलाध्यक्ष महोदय से बात की गई, तो उन्होंने कुछ ऐसा जवाब दिया, जिससे यह सवाल उठने लगा कि ये सब न तो महज गलती है, न ही अनजाने में हो रहा है। जिलाध्यक्ष जी का रुख भ्रष्टाचार पर सवाल उठाने के बजाय ऑपरेशन सिंदूर की सराहना करने का था। जब हमारे संवाददाता ने यह सवाल किया कि कैसे वीडीए के अधिकारी गंगा के किनारे या फिर शहर में कहीं भी अवैध निर्माणों की अनुमति दे रहे हैं और यह सवाल क्यों नहीं उठ रहा है ? तो जिलाध्यक्ष जी ने जवाब दिया कि कहीं कोई अवैध निर्माण नहीं हो रहा है। सब ठीक है।
कहीं कोई भ्रष्टाचार नहीं है, सब चंगा है। जब हमारे संवाददाता ने यह सवाल किया कि क्या यह भ्रष्टाचार के रूप में विकास हो रहा है, तो जिलाध्यक्ष ने इसे नकारते हुए कहा कि आप जो समझ रहे हैं वह गलत है। आप गंगा किनारे के निर्माणों पर ध्यान दें, लेकिन ध्यान देना चाहिए कि विकास हो रहा है। विकास की रणभेरी बजाइए, भ्रष्टाचार की नहीं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या जिलाध्यक्ष भ्रष्टाचार के मुद्दे से खुद को बचाने के लिए इस तरह के बचाव कर रहे थे? उनके जवाब से साफ संकेत मिलते हैं कि उनका ध्यान भ्रष्टाचार की जांच करने की बजाय कुछ और था। क्या ऑपरेशन सिंदूर के तहत शहर में हो रहे इस तरह के निर्माणों को न्यायोचित ठहराने की कोशिश की जा रही थी ?
मुख्यमंत्री जी मंशानुसार वाराणसी में जीरो टॉलरेंस का पालन किया जा रहा है। जीरो टॉलरेंस में वाराणसी पास है। मुख्यमंत्री जी स्वयं हर महीने विकास की समीक्षा बैठक करने के लिए आते है। विकास के साथ भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश भाजपा सरकार की प्राथमिकता है। रही बात विकास प्राधिकरण की तो मैं स्वयं उसका सदस्य हूं। मेरे जानकारी में किसी प्रकार की भ्रष्टाचार के सबूत नहीं आए है। अगर आता है तो जरूर जांच होगी और जो भी इसके संलिप्त होगा उसके खिलाफ शासन को रिपोर्ट भेजकर कार्रवाई की जाएगी।
अम्बरीष सिंह भोला
सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ जी खुद हर महीने वाराणसी के दौरे पर आते है। वो जब भी आते हैं हर विभाग के अधिकारियों के संग बैठक करते हैं। जहां भी कमियां होती वो सुधार का आदेश देते और गलत होने पर फटकार भी लगाते हैं। मैं वीडीए के मेंबर होने के साथ साथ महानगर अध्यक्ष भी हूं इसलिए जिम्मेदारी बड़ी है। जहां तक बात रही वीडीए में व्याप्त भ्रष्टाचार की तो इस संबंध में कोई विशेष जानकारी नहीं है। अगर कहीं भी भ्रष्टाचार की बात आती है तो भ्रष्टाचार किसी कीमत पर बर्दास्त नहीं किया जाएगा। सूबे को विकास की राह पर अग्रसर रखना और भ्रष्टाचार से मुक्त रखना ही मुख्यमंत्री जी का संकल्प है।
प्रदीप अग्रहरि
पार्ट- 39
रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए......भष्टाचार के लिए सपा बसपा और कांग्रेस जिम्मेदार !