बाबा की चरणरज लेने को आतुर गंगा

बाबा की चरणरज लेने को आतुर गंगा

 वरुणा तटवासियों के लिए भी मुसीबतें बढ़ीं, बेघर होने के हालात

शवदाह करने पहुंचे लोगों की बढ़ गई हैं मुश्किलें, ग्रामीण इलाकों में तटवर्ती खेत और फसलें डूबीं

वाराणसी (रणभेरी सं.)। किसी नवयौवना की तरह कुलांचे मारतीं गंगा की लहरें विश्वनाथ धाम के आंगन में अठखेलियों के लिए बेताब है। घाटों की एक-एक सीढ़ियों को खुद में समेटते हुए तेजी बढ़ती गंगा शुक्रवार शाम धाम की दहलीज तक पहुंच गईं। गुरुवार की रात से जलस्तर में शुरू हुए बढ़ाव ने 24 घंटे में चार गुना रफ्तार पकड़ ली। यही स्थिति रही तो अगले 48 घंटे में गंगा धाम में प्रवेश कर जाएंगी। उधर रात 8 बजे तक बढ़ाव तीन सेमी प्रतिघंटा रहा। जलस्तर चेतावनी बिंदु से करीब आधा मीटर नीचे है। गंगा के जलस्तर में ठहराव के बाद पुन: तेजी से शुरू हुई वृद्धि ने फिर जलधारा में उफान ला दिया है। गंगा तेजी से चेतावनी बिंदु की ओर बढ़ रही हैं। पांच सेमी प्रति घंटा के वेग से बढ़ता पानी आधी रात बाद तक चेतावनी बिंदु तक पहुंच सकता है। इधर, बढ़ता पानी शुक्रवार की दोपहर तक दशाश्वमेध घाट पर बने जल पुलिस के बूथ और घाट की ऊपरी सीढ़ी पर बने गंगा मंदिर में घुस गया। पुलिसकर्मियों ने जल्दी-जल्दी अपने सामान समेट सुरक्षित स्थान पर भेज दिए। मणिकर्णिका घाट की गलियों में पानी भर जाने से दुकानें बंद हो गई हैं, और वहां अब नाव चलने लगी है।

 मणिकर्णिका घाट की सीढ़ियों पर ही शवों को अंतिम स्नान करा छत पर शवदाह किया जा रहा है। इसके चलते शवों की कतार लगने लगी है। इधर, पुराने असि घाट की ओर भी बाढ़ का पानी गलियों में बहने लगा है। नए असि घाट पर सुबह-ए-बनारस का मंच डूब चुका है। सड़क तक पानी आने के लिए आठ सीढ़ियां शेष बची हैं। सामने घाट के पास निमार्णाधीन भाग के गुंबद तक पानी पहुंच गया और जज हाउस की सीढ़ियों के ऊपर से बहने लगा है। इससे तटवर्ती बस्तियों के निवासी सुरक्षित स्थानों की ओर जाने के लिए अपना सामान समेटने लगे हैं। 

धूप निकलते ही वाढ़ प्रभावित इलाकों में बढ़ी दुर्गध, गंदगी

वरुणा नदी के जुड़े नालों के किनारे के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में शुक्रवार को धूप निकलते ही पानी में गंदगी की सड़न की दुर्गंध ने आसपास के क्षेत्रों के लोगों का सांस लेना दुश्वार कर दिया। इन इलाकों में नगर निगम की तरफ से कीटनाशक दवा का छिड़काव अभी तक नहीं किया गया है। गंगा के पलट प्रवाह से उफनाई वरुणा की बाढ़ का पानी नालों के माध्यम से नए इलाकों में फैलता जा रहा है। सलारपुर के चमेलिया बस्ती, पुलकोहना, सलारपुर रेलवे लाइन के किनारे, दनीयलपुर इलाकों के दर्जनों मकानों में बाढ़ का पानी घुस गया है। लोग बाढ़ के पानी के साथ-साथ आई गंदगी से भी परेशान हैं। वही गंदगी से आने वाली दुर्गंध ने सांस लेना दूभर कर दिया है। बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि इसी तरह तीन दिन धूप हुई तो बीमारी फैलने लगेगी। यही हाल सलारपुर रेलवे लाइन के किनारे, रसूलगढ़, पुलकोहना छोटी मस्जिद के बगल का भी है।

वरूणा नदी का जलस्तर बढ़ा, 30 हजार घरों को खतरा

गंगा के साथ वरुणा नदी में भी बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई है। अब वरुणा किनारे रहने वाले परिवारों में खलबली मचने लगी है। खासकर सरैया, नक्खी घाट, शैलपुत्री, शलारपुर, पंकोसी, वरूणा क्षेत्र के डेंजर जोन में आने वाले लगभग 30 हजार घरों में बाढ़ का पानी आ गया है।
 लोगों ने पलायन की तैयारी शुरू दी है। जैसे ही वरुणा का पानी कॉलोनी, मोहल्लों और आबादी एरिया में रुख करेगा। वैसे ही सुरक्षित स्थानों पर पहुंचने का सिलसिला शुरू  हो जाएगा।

ढाब के सैकड़ों एकड़ क्षेत्रफल में फसलें डूबीं

चिरईगांव। दोबारा उफनाई गंगा ने ढाब की चालीस हजार की आबादी को मुसीबत में डाल दिया है। सोता किनारे चांदपुर से मोकलपुर के बीच लगभग डेढ़ हजार एकड़ में पलवल, नेनुआ, की करैला, लौकी, भिंडी और चारे खेती की गई है। कुछ किसानों ने गेंदा, गुलाब आदि फूल भी लगाए हैं। रातोंरात पांच सौ एकड़ फसलें डूब गई हैं। अब आबादी में पानी घुसने की चिंता है। सोता किनारे कटान भी शुरू हो गया है।

मणिकर्णिका-हरिश्चंद्र घाट डूबे

काशी का महा श्मशान मणिकर्णिका घाट गंगा में डूब गया है। घाट से करीब 15 फीट ऊपर एक रूफ टॉप पर श्मशान चल रहा है। यहां अंतिम संस्कार के लिए लाशों की लाइन लगी है। आलम ये है कि एक साथ 5-6 लाशें ही जलाई जा रही हैं। बाकी जितनी भी लाशें आ रही हैं, उनको चिता तक लाने के लिए 2 से ढाई घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। लोग कफन से लिपटी लाशों के बीच बैठकर अपनी बारी आने की राह देख रहे हैं। जल चुकी लाशों पर नजरें टिकी हुई हैं। हरिश्चंद्र घाट भी गंगा की धारा में डूब चुका है, इसलिए वहां भी अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहे हैं। वाराणसी के 84 घाटों पर पानी पहुंचने के बाद 10 हजार दुकानदारों की दुकानें शिफ्ट करनी पड़ी हैं। वहीं बाढ़ जैसे हालात होने के बाद नाविकों को भी नदी में जाने से रोक दिया गया है। 3 हजार नाविकों की आजीविका पर खतरा पैदा हो गया है।