वीडीए वाले गर्ग साहब की सह पर अस्पताल को बना दिया होटल

वीडीए वाले गर्ग साहब की सह पर अस्पताल को बना दिया होटल
  • हाईकोर्ट के आदेश को वीसी ने किया दरकिनार, गंगा किनारे अनवरत होता रहा निर्माण 
  • ट्रस्टियों ने तेलंगाना की एक निजी कंपनी के हाथों लगा दी अस्पताल की बोली
  • नियमों को ताक पर रख निजी स्वार्थ में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से काशी की जनता पर किया गया कुठाराघात 
  • अस्पताल को मिलता था प्रतिवर्ष  सरकारी अनुदान, सरकारी फंड से लगाई गई थी लाखों की मशीन
  • इंदिरा गांधी, शंकर दयाल शर्मा, कमलापति त्रिपाठी समेत कई चर्चित राजनेता भी आ चुके हैं मेहता अस्पताल 
  • गरीब तबके के लिए किसी वरदान से कम नहीं था मेहता अस्पताल

वाराणसी (रणभेरी): काशी की जनता को मेहता अस्पताल के रूप में अविस्मरणीय उपहार देने वाले वाले दो शख्शियत बलदेव राम मेहता और शालिग्राम मेहता की मृत्यु के बाद, वसीयत के अनुसार ट्रस्ट ने इस भूमि पर एक छोटे स्तर पर “मेहता धर्मार्थ अस्पताल” की शुरुआत की थी। प्रारंभिक दिनों में अस्पताल में सीमित संसाधनों में भी मरीजों को मुफ्त या नाममात्र शुल्क पर उपचार की सुविधा दी जाती थी। यह सुविधा खास तौर पर बनारस और पूर्वांचल के गरीब तबके के लिए किसी वरदान से कम नहीं थी। ट्रस्ट के तत्कालीन ट्रस्टीगण ने देखा कि अस्पताल का कार्य सफलतापूर्वक चल रहा है, परंतु मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण जगह की कमी महसूस हो रही है। इस आवश्यकता को समझते हुए उन्होंने अस्पताल से सटी हुई एक और संपत्ति का अधिग्रहण किया। यही नहीं, एक अतिरिक्त भवन भी रामघाट क्षेत्र में खरीदा गया जिससे अस्पताल का विस्तार संभव हो सके। इन सभी भवनों को ट्रस्ट में समाहित कर दिया गया, और अस्पताल की सुविधाएं चरणबद्ध रूप से बढ़ाई गईं। इसके साथ-साथ अस्पताल की इमारतों का निर्माण, विभागों का विस्तार और योग्य चिकित्सकों व स्टाफ की नियुक्ति हुई। अस्पताल में रोगियों के लिए अलग-अलग विभाग जैसे हड्डी रोग, बाल रोग, आंख-कान-गला, सर्जरी और जनरल मेडिसिन खोले गए, जिससे वह उस समय का एक आधुनिक और बहु-आयामी चिकित्सा केंद्र बन गया। ट्रस्ट ने यह सुनिश्चित किया कि अस्पताल न सिर्फ एक इमारत हो, बल्कि सेवा की जीवंत परंपरा को आगे बढ़ाए। यही कारण है कि मेहता अस्पताल न केवल बनारस के लिए, बल्कि पूरे पूर्वांचल के लिए आशा की किरण बन गया।

कभी सेवा की ऊंचाई छूता था मेहता अस्पताल

शुरुआत में एक छोटे से धर्मार्थ अस्पताल के रूप में कार्यरत मेहता अस्पताल, समय के साथ न केवल अपनी भौतिक संरचना में विस्तृत हुआ, बल्कि सेवा की गुणवत्ता में भी ऊंचाई छूने लगा। ट्रस्ट के मूल उद्देश्य जनकल्याण और निःस्वार्थ सेवा को केंद्र में रखते हुए अस्पताल का प्रत्येक विस्तार जनहित में किया गया। वर्ष 1982 तक, अस्पताल में कुल 75 डॉक्टर, नर्स, कंपाउंडर और सहायक कर्मचारी कार्यरत थे। यह आंकड़ा उस दौर में किसी भी निजी या सरकारी अस्पताल के समकक्ष था। यही नहीं, अस्पताल परिसर में ट्रस्ट के संस्थापक बलदेव राम मेहता और शालिग्राम मेहता की मूर्तियां भी स्थापित की गईं, जो आने-जाने वाले मरीजों और आगंतुकों को ट्रस्ट के सेवा दर्शन की याद दिलाती थीं।

अस्पताल की साख और कार्यशैली इस कदर प्रभावशाली हो चुकी थी कि उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रहे पंडित लोकपति त्रिपाठी स्वयं इसकी कार्यप्रणाली से प्रभावित हुए। उन्होंने प्रत्येक वर्ष 90,000 रुपए का सरकारी अनुदान इस अस्पताल को स्वीकृत करवाया, ताकि जनसेवा का यह केंद्र और सशक्त हो सके। उस समय यह अनुदान एक बड़ी राशि मानी जाती थी, जो ट्रस्ट की पारदर्शिता और सेवा की प्रमाणिकता का परिचायक था। वर्ष 1986 में मेहता अस्पताल ने एक और ऐतिहासिक कदम उठाते हुए न्यूरोलॉजी विभाग की स्थापना की। यह विभाग न सिर्फ बनारस, बल्कि पूर्वांचल के लिए एक क्रांतिकारी पहल थी, जहाँ तंत्रिका तंत्र संबंधी बीमारियों का विशेषज्ञ इलाज उपलब्ध हो सका। न्यूरोलॉजी विभाग की स्थापना से यह स्पष्ट हो गया कि अस्पताल न केवल धर्मार्थ है, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में अग्रणी बनने की दिशा में भी सक्रिय है।

बाहर के विशेषज्ञ डॉक्टर भी देते थे निःशुल्क सेवाएं

सरकारी अनुदान और ट्रस्ट की नीतिगत प्रतिबद्धता के फलस्वरूप अस्पताल में लगभग 50 लाख रुपये की लागत से आधुनिक एक्स-रे मशीनें और अन्य जांच उपकरण स्थापित किए गए थे। अस्पताल में 100 बेड, महिला वार्ड, बाल रोग विभाग, हड्डी रोग, नेत्र-कर्ण-गला विभाग, जनरल मेडिसिन, सर्जरी, जैसे विविध विभागों का सफल संचालन किया जा रहा था। इस सेवा यात्रा में केवल नियुक्त डॉक्टर ही नहीं, बल्कि कई बाहर के विशेषज्ञ डॉक्टर भी निःशुल्क अपनी सेवाएं देने के लिए अस्पताल से जुड़े थे। ऐसा वातावरण बन गया था जहाँ चिकित्सा सेवा एक धर्म बन चुकी थी, कोई मोलभाव नहीं, कोई लालच नहीं, केवल सेवा। अस्पताल की साख इतनी मजबूत थी कि वहाँ आने वाले मरीजों की भीड़ दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी। बनारस ही नहीं, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर, भदोही, सोनभद्र और बिहार के सटे जिलों से भी लोग इलाज के लिए यहाँ आते थे। ट्रस्ट ने न केवल इलाज की व्यवस्था की थी, बल्कि मरीजों और उनके परिजनों के लिए सस्ती दरों पर कैंटीन और प्रतीक्षालय जैसी सुविधाएं भी विकसित की थीं। यह वही दौर था जब मेहता अस्पताल बनारस के चिकित्सा मानचित्र पर एक आदर्श के रूप में स्थापित हो चुका था। ट्रस्ट की पारदर्शिता, जनता का विश्वास और सरकार की सहानुभूति, इन तीनों स्तंभों पर टिका था यह संस्थान। लेकिन समय ने करवट ली, और जिस ऊंचाई पर अस्पताल पहुंचा था, वहीं से उसकी गिरावट की पटकथा लिखी जाने लगी...

राजनेताओं और समाज का भरोसा था मेहता अस्पताल

मेहता अस्पताल की ख्याति सिर्फ बनारस या पूर्वांचल तक सीमित नहीं रही। यह अस्पताल एक ऐसी संस्था बन चुका था, जहाँ सेवा और संवेदना को सर्वोच्च माना जाता था। यही कारण रहा कि देश की राजनीति, समाज सेवा और प्रशासनिक जगत से जुड़े कई प्रख्यात व्यक्तित्वों ने मेहता अस्पताल को न केवल देखा, समझा, बल्कि उसकी सराहना भी की। भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, जब काशी दौरे पर आईं, तो उन्होंने मेहता अस्पताल की कार्यप्रणाली और वहां की सेवा को देखकर गहरा संतोष व्यक्त किया था। उनके साथ-साथ भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा भी इस अस्पताल का दौरा कर चुके हैं। इन शीर्षस्थ नेताओं की उपस्थिति किसी भी संस्थान के लिए गर्व का विषय होती है, और मेहता अस्पताल ने यह सम्मान अपने सेवा कार्यों से अर्जित किया था। काशी नरेश डॉ. विभूति नारायण सिंह, जो स्वयं चिकित्सा और संस्कृति के संरक्षक माने जाते थे, उन्होंने भी मेहता अस्पताल के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा था कि “यह अस्पताल सिर्फ शरीर की नहीं, आत्मा की सेवा करता है।” पंडित कमलापति त्रिपाठी, डॉ. कौशल त्रिपाठी, पंडित लोकपति त्रिपाठी जैसे बनारस के प्रतिष्ठित राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस अस्पताल को हमेशा से एक 'आदर्श मॉडल' के रूप में देखा। उनके द्वारा समय-समय पर आर्थिक, राजनीतिक और नैतिक सहयोग भी प्रदान किया गया, जिससे अस्पताल जनसेवा के अपने मार्ग पर निरंतर अग्रसर रह सके। इन दिग्गजों की उपस्थिति और समर्थन ने मेहता अस्पताल को केवल एक स्वास्थ्य संस्थान नहीं, बल्कि काशी की सांस्कृतिक, सामाजिक और परमार्थिक चेतना का प्रतीक बना दिया था।

लोभियों ने निजी स्वार्थ की बलिवेदी पर चढ़ा दिया मेहता अस्पताल

परंतु, समय की धारा में कुछ ऐसा विष घुल गया, जिसने सेवा के इस मंदिर को निजी स्वार्थ की बलिवेदी पर चढ़ा दिया। जिस अस्पताल की दीवारें वर्षों तक सेवा के स्वर में गूंजती रहीं, आज वहाँ सन्नाटा पसरा है। अस्पताल बंद हो चुका है, मशीनें बेच दी गई हैं, और वह पवित्र उद्देश्य जिसके लिए यह अस्पताल खड़ा हुआ था, वो धूमिल हो चुका है।

व्यक्तिगत लोभ की भूख ने एक धरोहर को निगल लिया

यह ट्रस्ट द्वारा संचालित केवल एक धर्मार्थ अस्पताल नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की आस्था और विश्वास का केंद्र बन चुका था। यह भरोसा अचानक नहीं बना था। वर्षों की सेवा, कठिन परिश्रम, पारदर्शी प्रशासन और बिना किसी भेदभाव के गरीब-अमीर, हिंदू-मुसलमान, सभी का समान उपचार ही इसकी नींव में था। लेकिन समय की गति ने उस नींव को भी हिला डाला, जब इस भरोसे को उन्हीं लोगों ने तोड़ा जिन्हें इसके रक्षक के रूप में बैठाया गया था। एक सुनियोजित षड्यंत्र और  व्यक्तिगत लोभ की भूख ने उस धरोहर को निगल लिया जिसे काशी ने अपना गौरव माना था।