सर्राफा व्यवसायी पर क्यों मेहरबान हुए वीसी साहब ?

- रथयात्रा चौराहे के पास बिना मानचित्र धड़ल्ले से तैयार हो रहा एक आलीशान शोरूम
- तो क्या राजू अग्रवाल ने राजस्व चोरी के लिए लगा दी है वीसी साहब की बोली !
- सरकार के राजस्व में लगाई जा रही करोड़ों की सेंध, फिर भी कार्रवाई की जहमत नहीं उठा रहे वीडीए वीसी !
- गर्ग जी की कृपा से अग्रवाल जी ने लगा दिया राजस्व में 2 करोड़ का चूना
- मुख्यमंत्री की छवि पर दाग लगा रहे वीसी पुलकित गर्ग और जोनल संजीव कुमार
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी): काशी, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कर्मभूमि और सांस्कृतिक राजधानी के रूप में विश्व स्तर पर पहचान मिल चुकी है, आज भ्रष्टाचार, अवैध निर्माण और प्रशासनिक मिलीभगत के कारण अपनी ही गरिमा पर प्रश्नचिह्न खड़े करता नज़र आ रहा है। विशेषकर जब यह भ्रष्टाचार ठीक उसी शहर के कलेजे पर हो रहा हो, जहाँ ‘नियम कानून’ और ‘सुशासन’ की मिसालें दी जाती रही हों। ताजा मामला रथयात्रा चौराहे का है जिसे शहर का सबसे चर्चित और पॉश इलाक़ा माना जाता है। जहां एक एक इंच ज़मीन की कीमत आसमान छू रही है। यहां एक बहुचर्चित सर्राफा कारोबारी राजू अग्रवाल द्वारा ज़ोर-शोर से एक आलिशान शोरूम का निर्माण करवाया जा रहा है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि इस आलीशान भवन के लिए न ही कोई मानचित्र स्वीकृत है, न ही प्राधिकरण से मानचित्र हेतु किसी तरह का आवेदन किया गया है। बिना किसी आवेदन एवं अनुमति के शहर के प्रमुख चौराहे पर खुलेआम धड़ल्ले से बड़ा अवैध निर्माण जारी है। इस अवैध निर्माण में सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि यह सारा काम वाराणसी विकास प्राधिकरण के शीर्ष अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहा है। वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के वीसी पुलकित गर्ग और ज़ोनल अधिकारी संजीव कुमार की नजदीकी जगजाहिर है। इस निर्माण में भी दोनों ने मिलकर सिर्फ मरम्मत के नाम परसम्पूर्ण नवनिर्माण की मंज़ूरी देकर नियमों का मखौल उड़ा दिया। जबकि हकीकत यह है कि पुरानी इमारत को ज़मींदोज़ कर पूरी तरह नया, बहुमंजिला और अत्याधुनिक सर्राफा शोरूम खड़ा किया जा रहा है।
सवाल यह है कि इतना सब कुछ बिना प्रशासन की जानकारी के कैसे हो सकता है ? क्या वीडीए को यह मालूम नहीं कि निर्माण किस स्तर पर हो रहा है ? और अगर मालूम है, तो कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही ? करोड़ों के राजस्व की क्षति, नियमों का उल्लंघन, और जनता के विश्वास के साथ धोखा...इन सबके बावजूद ज़िम्मेदार अधिकारी चुप क्यों हैं ?
पैसा और रसूख के आगे बौना साबित हो रहा सिस्टम
जब आप इस निर्माण की तह तक जाएंगे तो मालूम होगा कि यह निर्माण कार्य सिर्फ़ एक शोरूम का मामला नहीं है, बल्कि यह एक 'सिस्टम' की पोल खोलता है, जहाँ पैसा, रसूख और सियासी संरक्षण के आगे नियम-विधि बौने साबित हो रहे हैं। इसमें राजू अग्रवाल अकेला नहीं, बल्कि उसे संरक्षण देने वाला पूरा तंत्र शामिल है। वीडीए के अधिकारी, स्थानीय प्रशासन और संभवतः कुछ राजनीतिक हस्तियाँ भी इस अवैध निर्माण में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर रहे हैं।
प्रश्न सिर्फ़ यह नहीं कि एक अवैध शोरूम बन रहा है, बल्कि यह है कि वाराणसी जैसे संवेदनशील और ऐतिहासिक शहर में क्या अब कोई भी करोड़ों की लूट को मरम्मत बताकर वैध बना सकता है ? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जहाँ बार-बार अधिकारियों को पारदर्शिता, जवाबदेही और भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन के लिए चेताते हैं, वहीं उनके ही अफसर इन निर्देशों की सरेआम धज्जियाँ उड़ा रहे हैं।
मरम्मत की आड़ में चल रहा आलीशान इमारत का खेल
रथयात्रा चौराहा, जहाँ हर वर्ग फुट ज़मीन की कीमत लाखों में आँकी जाती है, वहीं एक विशाल भूखंड पर तेज़ी से खड़ा हो रहा है एक बहुमंज़िला सर्राफा शोरूम। इस निर्माण कार्य ने आसपास के स्थानीय निवासियों, व्यापारियों और यहाँ तक कि प्रशासनिक हलकों में भी कानाफूसी तेज़ कर दी है। वजह साफ़ है...यह निर्माण पूरी तरह से गैरकानूनी है। राजू अग्रवाल नामक सर्राफा व्यापारी ने जिस ज़मीन पर यह निर्माण कार्य शुरू किया है, वहाँ पहले एक मंज़िला पुराना भवन स्थित था। प्राधिकरण के रिकॉर्ड में उस भवन के लिए केवल मामूली मरम्मत की अनुमति दी गई थी। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल उलट है। पुराने ढांचे को पूरी तरह तोड़कर नये सिरे से एक भव्य कॉम्प्लेक्स रूपी शोरूम का निर्माण किया जा रहा है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह शोरूम न केवल वाराणसी बल्कि पूरे पूर्वांचल में सबसे बड़ा और आधुनिक सर्राफा शोरूम बनने जा रहा है। इसके डिज़ाइन, इंटीरियर और साज-सज्जा के लिए दूसरे शहर के विशेषज्ञ बुलाए गए हैं। निर्माण कार्य में रात-दिन मजदूरों की फौज लगी हुई है, लेकिन विकास प्राधिकरण के जिम्मेदार अपनी हिस्सेदारी लेकर अंधे, गूंगे और बहरे बने हुए हैं। इस अवैध निर्माण के पीछे जो सबसे बड़ा सवाल उठता है, वह यह है कि जब सिर्फ़ मरम्मत की अनुमति थी, तो इतना बड़ा पुनर्निर्माण किस आधार पर किया जा रहा है ? क्या वीडीए अधिकारी निरीक्षण के लिए नहीं जाते ? या फिर ये निर्माण जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है ?
आखिर राजस्व की चोरी में किसे हो रहा फायदा ?
वाराणसी जैसे तीर्थ और सांस्कृतिक शहर में जब विकास प्राधिकरण ही नियमों की धज्जियाँ उड़ाने लगे, तो सवाल सिर्फ़ नियमन और पारदर्शिता का नहीं, बल्कि करोड़ों के राजस्व की चोरी का भी बन जाता है। रथयात्रा चौराहे पर राजू अग्रवाल द्वारा किए जा रहे अवैध निर्माण से सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है। लेकिन यह नुकसान किसी गलती से नहीं, बल्कि सुनियोजित साजिश का हिस्सा है। जानकारों के अनुसार, इतने बड़े भूखंड पर इस स्तर के व्यावसायिक भवन निर्माण के लिए वीडीए को मानचित्र स्वीकृति शुल्क, कम्पाउंडिंग शुल्क, उपयोग परिवर्तन शुल्क, एवं विकास शुल्क के रूप में लगभग 3 से 5 करोड़ रुपये तक का राजस्व मिलना चाहिए था। इसके अतिरिक्त नगर निगम, जलकल और विद्युत विभाग को भी अपने-अपने शुल्क मिलने चाहिए थे। लेकिन जब यह निर्माण मरम्मत की आड़ में कराया जा रहा है, तो सारे शुल्कों से सीधा बचाव हो जाता है। यानी कि राजू अग्रवाल को करोड़ों की छूट, और सरकारी तंत्र को करोड़ों का नुकसान। और यह सब तब हो रहा है जब निर्माण की भव्यता साफ़ तौर पर एक नये भवन की पुष्टि कर रही है। इसमें सिर्फ़ एक व्यक्ति को लाभ नहीं हो रहा। जिस किसी अधिकारी ने इसे अनदेखा किया, जिसने संरक्षण दिया, जिसने रिपोर्ट दबा दी...वे सभी इस वित्तीय अपराध में भागीदार है। यह मरम्मत का खेल नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का एक प्रायोजित आयोजन है।
मुख्यमंत्री की छवि पर दाग लगा रहे वीडीए के जिम्मेदारान
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि एक सख्त, ईमानदार और भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने वाले प्रशासक की रही है। उन्होंने साफ निर्देश दिए हैं कि प्रदेश में कोई भी अवैध निर्माण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बावजूद इसके, वाराणसी विकास प्राधिकरण के वीसी पुलकित गर्ग और ज़ोनल अधिकारी संजीव कुमार की भूमिका मुख्यमंत्री की इसी साफ-सुथरी छवि को गहरा धक्का पहुँचा रही है। इन सबके बीच यदि राजधानी से सीधे नियंत्रित शहर में ही भ्रष्टाचार और अनियमितता खुलेआम चल रही है, तो सवाल मुख्यमंत्री की कार्यशैली और नियंत्रण पर भी उठते हैं।
कुछ सवाल जिम्मेदारों से ?
क्या यह छूट सिर्फ़ अनदेखी की कीमत पर दी गई है या कुछ और भी है ?
क्या वीसी पुलकित गर्ग और ज़ोनल संजीव कुमार को इस राजस्व हानि की जानकारी थी ?
अगर थी, तो कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, उन्होंने इसकी भरपाई क्यों नहीं करवाई ?
अगर नहीं थी, तो वे उस पद पर रहने के लायक क्यों हैं ?
क्या पैसों और रसूख के आगे विकास प्राधिकरण के जिम्मेदारों ने बेच दिया है ईमान ?
पार्ट-17
रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए.........
...तो क्या गंगा किनारे अब मिलेगी सबको निर्माण की छूट ?