सद्दाम, अल्ताफ और रिज़वान को आखिर किसका है संरक्षण?

- सद्दाम की अवैध इमारत पर कब होगी ध्वस्तीकरण की कार्रवाई !
- वीडीए का फ़र्ज़ी बोर्ड लगाने वाले रिज़वान को कौन भेजेगा जेल ?
- फरेब और मक्कारी की सारी हदें पार कर गया रिज़वान
- कूटरचित दस्तावेज तैयार करने वाले गिरोह से जुड़े हैं रिज़वान के लिए तार - सूत्र
- डंके की चोट पर खुलेआम एचएफएल एरिया में निर्माण कराने का माहिर है रिज़वान
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी): वाराणसी, जिसे काशी भी कहा जाता है, न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। वाराणसी के विकास पर देश के प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुखिया की विशेष नजर रहती है। वाराणसी के सौंदर्यीकरण के लिए पीएम जब भी बनारस आते करोड़ों की सौगात देकर जाते हैं लेकिन अफसोस की उसी काशी की सुंदरता को वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) की कार्यप्रणाली गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रही है। शहर के गंगा किनारे से लेकर एचएफएल क्षेत्र तक अवैध निर्माण की बाढ़ आ चुकी है, जो न केवल पर्यावरण को प्रभावित कर रही है, बल्कि यहां की सांस्कृतिक धरोहर को भी संकट में डाल रही है। वीडीए के जिम्मेदार अधिकारियों ने मुख्यमंत्री की सख्त जीरो टॉलरेंस नीति को दरकिनार करते हुए इस अवैध निर्माण पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। मुख्यमंत्री ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए बार-बार निर्देश दिए थे कि शहर में अवैध निर्माण को लेकर कठोर कार्रवाई की जाए, लेकिन वीडीए के अधिकारी इन आदेशों को गंभीरता से लेने के बजाय उसे अनदेखा कर अपनी जेब भर रहे हैं। चाहे गंगा का किनारा हो, ऐतिहासिक कुण्ड तालाब का तटीय क्षेत्र हो या फिर एचएफएल एरिया, हर तरफ कई ऐसे निर्माण हुए हैं जिनके लिए वीडीए द्वारा किसी प्रकार की अनुमति नहीं दी गई, लेकिन फिर भी इनका निर्माण धड़ल्ले से चल रहा है तथा जिम्मेदार अंधे, गूंगे और बहरे बने हुए हैं। अगर समय रहते नहीं चेता गया तो वह दिन दूर नहीं जब काशी नगरी अपनी प्राचीनता की असली पहचान खो देगी।
एचएफएल क्षेत्र में निर्माण के नाम पर फरेब
वाराणसी विकास प्राधिकरण के जोन 4 का भेलूपुर वार्ड, विशेषकर एचएफएल क्षेत्र, एक समय शांत और व्यवस्थित इलाका माना जाता था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस इलाके की तस्वीर तेजी से बदली है। अब यहां बहुमंजिला इमारतें, संकरी गलियों में भारी भरकम निर्माण और अव्यवस्थित विकास ने न केवल इलाके की पहचान बदल दी है, बल्कि क्षेत्रीय निवासियों के जीवन को भी संकट में डाल दिया है। इन सबके पीछे एक संगठित गिरोह के फरेब और विभागीय सहमति से लूट का खेल चल रहा है। ऐसे ही संगठित अपराध में शामिल चेहरों में शुमार है सद्दाम, अल्ताफ और रिज़वान का चेहरा जिनके द्वारा कराया जा रहा निर्माण कार्य न केवल नियमों को ठेंगे पर रखता है, बल्कि उसके पीछे की कानूनी व्यवस्था, प्रशासनिक तंत्र और सरकारी चुप्पी भी उतनी ही संदिग्ध है। निर्माण के दौरान न ही सुरक्षा मानकों का पालन किया जाता है, न ही मकान का मानचित्र स्वीकृत होता है फिर भी इनके द्वारा किया जाने वाला निर्माण कार्य धड़ल्ले से जारी रहता है। सूत्र बताते है कि इन बिल्डरों को वीसी पुलकित गर्ग का संरक्षण प्राप्त है। ऐसे मामलों में जब भी कोई शिकायत करता है, तो उसकी सुनवाई या तो टाल दी जाती है, या फिर जांच के नाम पर खानापूर्ति कर दी जाती है।
बिना नक्शा पास कराए चल रहा निर्माण
सद्दाम नाम का यह व्यक्ति शहर में एचएफएल सहित प्रतिबंधित क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों से एक के बाद एक अवैध निर्माण कार्य करवाता जा रहा है। रणभेरी की पड़ताल में यह तथ्य सामने आया है कि सद्दाम और अल्ताफ ने बृज इंक्लेव कालोनी में विवादित ज़मीन पर कब्ज़ा किया फिर रिज़वान की मदद से फर्जी दस्तावेज बनवाकर विभागीय मिलीभगत से बहुमंजिली इमारत खड़ी कर लिया । इस निर्माण में न कोई वैध नक्शा पास हुआ, न भूमि उपयोग परिवर्तन की अनुमति ली गई, और न ही निर्माण सुरक्षा मानकों का पालन किया गया। आपके अपने अखबार गूंज उठी रणभेरी ने इस कुकृत्य को प्रमुखता से उजागर किया लेकिन सील डील के खेल में निर्माण जारी रहा लेकिन किसी जिम्मेदार अधिकारी ने ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जहमत नहीं उठा पाई।
सूत्र बताते हैं कि सद्दाम को कुछ ज़ोनल अधिकारियों और जेई (जूनियर इंजीनियर) का संरक्षण प्राप्त है, जो नियमित रूप से 'मौखिक निरीक्षण' कर मामले को टालते आ रहे हैं। यहाँ तक कि जब सील के बाद भी यहां चोरी छुपे निर्माण होता रहा जिसपर स्थानीय थाना क्षेत्र में लोगों ने शिकायत की, तो पुलिस भी यह कह कर पल्ला झाड़ गई कि यह मामला प्राधिकरण का है, हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
रिज़वान : ‘फर्ज़ी बोर्ड’ वाला बिल्डर
रिज़वान का नाम आते ही शहर के तमाम बिल्डर सहित विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट अधिकारी दो बातों से वाकिफ हैं। पहला, निर्माण की तेज़ रफ्तार और दूसरा, वीडीए के नाम पर लगाए गए फर्जी बोर्ड। रिज़वान ने अवैध निर्माण की कला को इस हद तक पेशेवर बना दिया है कि वह निर्माण स्थल पर वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) का एक बड़ा बोर्ड टांग देता है, जिस पर लिखा होता है....“यह निर्माण कार्य वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत नक्शे के अनुसार कराया जा रहा है, जिससे आम नागरिक भ्रमित हो जाते हैं। जब इसकी पड़ताल की गई तो पता चला कि न तो वह नक्शा पास है, न ही फाइल नंबर असली है। रिज़वान का सबसे बड़ा हथियार है 'दिखावे की वैधता'। वह अपने हर निर्माण स्थल पर सफेद रंग से चुनी हुई दीवारें, नकली बोर्ड, नकली लेटरहेड पर तैयार किए गए डॉक्युमेंट्स और नकली रसीदें प्रस्तुत करता है। इससे न सिर्फ आम नागरिक बल्कि कई बार सरकारी कर्मचारी भी गच्चा खा जाते हैं। सूत्रों के अनुसार, रिज़वान का संबंध उन लोगों से है जो कूटरचित दस्तावेज तैयार करने के संगठित गिरोह से जुड़े हैं। वह पुराने मकानों के पट्टे और नक्शे हासिल करता है, उनमें छोटे बदलाव करवा कर नए नक्शों की नकल तैयार करता है, और फिर उन्हीं कागज़ों को वीडीए द्वारा स्वीकृत बताकर फ्लैट्स बेच देता है।
रिज़वान ने अब तक कम से कम तीन बड़े निर्माण कार्य इस तरीके से पूरे कर लिए हैं और लगभग आधा दर्जन कार्य प्रगति पर है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जब इन अवैध निर्माणों की शिकायतें दर्ज की गईं, तो किसी भी मामले में उसे हिरासत में नहीं लिया गया। न एफआईआर, न ही जांच, न ही नोटिस। प्रशासनिक तंत्र की यह चुप्पी बहुत कुछ बयां करती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि रिज़वान जैसे लोग अकेले कुछ नहीं कर सकते। इनके पीछे कहीं न कहीं प्रशासनिक संरक्षण ज़रूर है। वरना बिना नक्शे के लगातार निर्माण, और नकली बोर्ड लगाने पर कब का जेल हो गया होता। ऐसा प्रतीत होता है कि रिज़वान ने वीडीए और नगर निगम की कानूनी प्रक्रिया को धता बताकर एक समानांतर 'वैधता की दुनिया' तैयार कर ली है, जिसमें हर चीज का काग़ज़ उपलब्ध है भले ही वह असली न हो।
प्रशासनिक चुप्पी और संरक्षण सबसे बड़ा सवाल
सद्दाम, अल्ताफ और रिज़वान के अवैध निर्माण, फर्जी दस्तावेज़, और नियमों की धज्जियां उड़ाते कारनामे खुलेआम हो रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि प्रशासन क्या कर रहा है? जवाब है... कुछ भी नहीं, या बहुत धीरे-धीरे, जैसे कि जानबूझकर समय बर्बाद किया जा रहा हो। आपके अपने अखबार गूंज उठी रणभेरी ने बीते एक साल से तमाम अवैध निर्माणों के खिलाफ एक मुहिम चलाया है लेकिन नतीजा यह हुआ कि मामला जांच, कार्रवाई, सील और डील तक सीमित रह गई। जिम्मेदारों के लिए यह जांच कितनी गंभीर है, इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि कई निर्माण कार्य तब तक पूरे हो गए, जब तक फाइल विचाराधीन पड़ी रही। वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) की भूमिका सबसे ज्यादा संदेह के घेरे में है। नियम के अनुसार किसी भी निर्माण कार्य से पहले नक्शा स्वीकृति, भूमि उपयोग प्रमाण पत्र, और निर्माण अनुमति लेना ज़रूरी होता है। लेकिन एचएफएल में दर्जनों इमारतें बिना इन प्रक्रिया के खड़ी हो गई हैं। इसके बावजूद ज़ोनल अधिकारियों और अभियंताओं ने ध्वस्तीकरण के कार्रवाई के बदले अपने जेब भरने में मशगूल रहे। इससे साफ है कि या तो विभागों के बीच तालमेल की कमी है, या फिर यह जानबूझकर फैलाया गया संरक्षण का कवच है, जिससे अवैध निर्माणकर्ता सुरक्षित बने रहें। स्थानीय विधायक, पार्षद, वीडीए बोर्ड के शासन के सदस्य और प्रभावशाली चेहरों की चुप्पी भी इस बात को मजबूती देती है कि एचएफएल में जो कुछ हो रहा है, वह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि संगठित मिलीभगत है।
प्रशासन की भूमिका पर क्यों न हो सवाल !
वाराणसी जिला प्रशासन की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं। जब इतने बड़े पैमाने पर निर्माण हो रहा था, तो नजदीकी थाने, नगर निगम और विकास प्राधिकरण की चुप्पी रहस्यमयी है। आखिर इतने बड़े निर्माण की भनक किसी जिम्मेदार अधिकारी को क्यों नहीं लगी ? लगी भी तो सिर्फ नोटिस के खेल तक सीमित रह गईं। कागजी आदेश हकीकत में नहीं बदल सकी। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या वीडीए का बुलडोजर सिर्फ गरीबों पर चलता है ! आखिर सद्दाम, अल्ताफ और रिज़वान के तिकड़ी को कौन संरक्षण दे रहा है!
प्रशासनिक चुप्पी...लापरवाही, साजिश या संगठित गिरोह !
सद्दाम, अल्ताफ और रिज़वान का नाम लेकर यदि हम केवल उन्हें दोषी ठहराएं, तो यह इस पूरे मामले की गंभीरता को कम करके आंकना होगा। ये तीन नाम सिर्फ मुखौटे हैं। असली चेहरा उस व्यवस्था का है जो मौन सहमति, राजनीतिक संरक्षण, और प्रशासनिक चुप्पी से इस अवैध साम्राज्य को पाल-पोस रही है। यह कोई साधारण लापरवाही नहीं, बल्कि एक संगठित साज़िश है।
जिसमें हर खिलाड़ी की अपनी भूमिका है....
निर्माणकर्ता ज़मीन पर कब्ज़ा करता है, दस्तावेज़ माफिया नक्शे बनाता है, अफसर आंखें मूंद लेते हैं, और नेता चुप्पी साध लेते हैं। जब तक इस तंत्र की चेन नहीं तोड़ी जाती, तब तक न तो एचएफएल की तस्वीर बदलेगी, न ही बनारस की।
पार्ट- 15
रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए...चर्चा में है जोनल और वीसी की गलबहियां !