वीडीए नहीं रहा मान, जा रही मजदूरों की जान

वीडीए नहीं रहा मान, जा रही मजदूरों की जान
  • जोखिम भरे जगह पर हो रहा था निर्माण, तो कहां थे वीडीए के जिम्मेदारान !
  • जोनल साहब ! हाइटेंशन लाइन के नीचे किस नियम के मुताबिक हो रहा था अवैध निर्माण 
  • तो क्या जोनल अधिकारी शिवाजी मिश्रा की मिलीभगत से हो रहा था हाइटेंशन लाइन के नीचे मकान का निर्माण 
  • गरीब मजदूर के मौत का जिम्मेदार कौन ! मकान मालिक, जोनल अधिकारी, बिजली विभाग या कोई और ?

 

वाराणसी (रणभेरी/विशेष संवाददाता): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र, सांस्कृतिक राजधानी और धार्मिक नगरी के तौर पर पहचान रखने वाला शहर इन दिनों विकास के नाम पर फैले अराजक निर्माण कार्यों और भ्रष्टाचार के जाल में फंसा है। यहां की एक दुखद हकीकत यह भी है कि इस तथाकथित विकास की सबसे बड़ी कीमत गरीब मजदूर चुका रहे हैं, अपनी जान देकर। ताजा मामला कैंट थाना क्षेत्र के सुअरबड़वा (भीम नगर) निवासी अरमान मलिक के निर्माणाधीन मकान पर कार्य कर रहे शिवपुर थाना अंतर्गत कांशीराम आवास कालोनी निवासी 28 वर्षीय मजदूर सुनील की करंट लगने से मौत हो गई। वह सिकरौल के सुअरबड़वा निवासी अरमान अख्तर के मकान में मजदूरी करने पहुंचा था। दो मंजिल के ऊपर से गुजरी हाईटेंशन लाइन में किसी तरह मजदूर के छू जाने से करंट लगा तो वह जमीन पर आ गिरा। सिर में गंभीर चोट के कारण अचेत पड़े सुनील को मंडलीय अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।

निर्माण कार्य के दौरान मजदूर की मौत पर यह गंभीर सवाल उठता है कि क्या वीडीए को इस निर्माण की जानकारी नहीं थी ? यदि थी, तो इसे समय रहते क्यों नहीं रोका गया ? यदि नहीं थी, तो इसका मतलब यह हुआ कि वीडीए का ज़ोनल अमला अपने क्षेत्र में चल रहे निर्माणों की निगरानी में पूरी तरह असफल रहा है। दोनों ही स्थितियों में, यह स्पष्ट है कि वीडीए की भूमिका लापरवाहीपूर्ण रही है। अगर वीडीए द्वारा इस निर्माण को रोकने की कोई कार्रवाई नहीं की गई और उस स्थल पर कार्यरत मज़दूर की हाईटेंशन करंट की चपेट में आकर मृत्यु हो गई, तो यह सिर्फ़ एक हादसा नहीं बल्कि संस्थागत अपराध बन जाता है। ऐसी स्थिति में, ज़ोनल अधिकारी की जवाबदेही तय होनी चाहिए। सवाल यह है कि आखिर क्यों अब तक उस ज़ोनल अधिकारी या संबंधित कर्मचारियों पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई ? विकास प्राधिकरण द्वारा इस निर्माण कार्य को रोकने की कोई कार्रवाई नहीं की गई तो फिर सीधे तौर पर क्या इस मौत के लिए वीडीए के जोनल अधिकारी जिम्मेदार नहीं है ? क्या उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है या फिर मजदूरों की जान की कीमत प्रशासन की निगाह में कुछ नहीं ? जब तक ऐसे मामलों में सख्त आपराधिक कार्रवाई नहीं होगी, तब तक न तो निर्माण नियमों का पालन होगा और न ही मजदूरों की ज़िंदगी सुरक्षित रह पाएगी।

मजदूर के इस दर्दनाक मौत का जिम्मेदार कौन ?

सिकरौल में हाइटेंशन तार के चपेट में आने से मजदूर की हुई मौत के बाद सवाल खड़े हो गए हैं। सवाल यह है कि 
क्या मकान मालिक ने जानबूझकर हाईटेंशन लाइन के नीचे निर्माण शुरू किया ? जब हाइटेंशन तार के नीचे निर्माण शुरू हुआ तो विकास प्राधिकरण (वीडीए) के जिम्मेदार कहां थे ? क्या बिजली विभाग जो जानता था कि उस क्षेत्र में हाईटेंशन लाइन है और फिर भी उसे भूमिगत या सुरक्षित नहीं किया गया ? या फिर पूरा तंत्र, जो विकास के नाम पर गरीबों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहा है ? इस पूरे मामले ने वीडीए की कार्यशैली, उसकी निष्क्रियता और ज़ोनल अधिकारियों की कथित मिलीभगत पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि उन्हें इस निर्माण की जानकारी नहीं थी तो यह लापरवाही है, और यदि थी तो यह अपराध है।

मजदूरी में निकला, मौत में समा गया 

वाराणसी के कैंट थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सिकरौल के सुअरबड़वा मोहल्ले में एक निर्माणाधीन मकान का दृश्य आम दिनों की तरह था। कुछ मजदूर ईंटें ढो रहे थे, कोई निर्माण कार्य से जुड़े कुछ अन्य काम कर रहा था, तो कोई बेसमेंट में सरिया काटने में लगा था। इन्हीं में से एक था सुनील कुमार (28), जो शिवपुर थाना क्षेत्र के कांशीराम आवास कॉलोनी का रहने वाला था। वह दिहाड़ी मजदूर था। सुबह काम पर निकलने वाला और शाम को लौटने वाला एक साधारण युवा, जिसकी दुनिया परिवार के भरण-पोषण के इर्द-गिर्द घूमती थी।

सुनील ने बाकी मजदूरों के साथ अरमान अख्तर नामक व्यक्ति के निर्माणाधीन मकान पर काम शुरू किया। मकान दो मंज़िला था और निर्माण कार्य चल रहा था। मजदूरों के अनुसार, मकान के ऊपर से एक 11 हजार वोल्ट की हाईटेंशन लाइन गुजरती थी, जो इतने करीब थी कि लोहे की सरिया उठाने या छत पर चढ़ने वाले को ज़रा सी चूक में उसकी चपेट में आने का खतरा था। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले भी कई बार इस लाइन को लेकर आपत्ति जताई गई थी, लेकिन मकान मालिक ने कोई ध्यान नहीं दिया। यहां तक कि किसी भी सुरक्षा उपाय, जैसे वायर इन्सुलेशन या चेतावनी बोर्ड, तक की व्यवस्था नहीं की गई थी। सुनील इन्हीं दुर्व्यवस्थाओं का शिकार हो हाइटेंशन तार की चपेट में समा गया।  चिंगारी निकली, करंट फैला और सुनील तड़पता हुआ नीचे गिर पड़ा। करंट की तीव्रता इतनी अधिक थी कि वह छत से सीधे ज़मीन पर आ गिरा। सिर में गंभीर चोट लगी, शरीर झुलस गया और वह बेहोश हो गया। मकान पर मौजूद अन्य मजदूरों ने उसे किसी तरह से उठाया और आनन-फानन में नज़दीकी मंडलीय अस्पताल ले गए, लेकिन डॉक्टरों ने जांच के बाद उसे मृत घोषित कर दिया। अस्पताल की रिपोर्ट में मृत्यु का कारण करंट लगना और सिर में गंभीर चोट बताया गया। स्थानीय निवासी ने कहा कि यह लाइन तो खतरनाक थी ही, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी आँखें मूंदे बैठे थे। न बिजली विभाग ने कोई ऐक्शन लिया, न वीडीए ने रोक लगाई। ये हादसा टाला जा सकता था।

कानून की मौत बन गई सुनील की मौत

भारत में किसी भी हाईटेंशन लाइन के नीचे या समीप भवन निर्माण पर सख्त प्रतिबंध है। विद्युत अधिनियम 2003, विद्युत सुरक्षा विनियम 2010, और नेशनल बिल्डिंग कोड (एनबीसी) में यह स्पष्ट उल्लेख है कि 11 केवी हाईटेंशन लाइन के नीचे किसी भी प्रकार का निर्माण प्रतिबंधित है। इस प्रकार की लाइन के दोनों ओर कम से कम 3.7 मीटर (12 फीट) का सुरक्षा क्षेत्र जरूरी होता है। भवन स्वामी, ठेकेदार और निर्माण एजेंसी को पहले से विद्युत विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेना होता है। कोई भी नक्शा तभी पास किया जा सकता है जब वह इस सुरक्षा मापदंड को पूरा किया जाता है। सुअरबड़वा में जहां सुनील की मौत हुई उस मकान का न तो नक्शा पास था, न विद्युत विभाग से एनओसी और न ही वीडीए से अनुमति। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह मकान सेटिंग के ज़रिए बनाया जा रहा था, जिसमें वीडीए के अधिकारियों को मौन सहमति देने के बदले अवैध सुविधा शुल्क दिया गया था।

सवाल... सुनील के मौत का जिम्मेदार कौन ?

1. मकान मालिक अरमान अख्तर : जिसने हाईटेंशन लाइन की परवाह किए बिना निर्माण कराया ?

2. वीडीए ज़ोनल अधिकारी : जिनकी जिम्मेदारी थी ऐसे निर्माणों को रोकना, पर वे मूकदर्शक बने रहे ?

3. बिजली विभाग : जिसने खतरनाक लाइन के ठीक नीचे निर्माण होने दिया ?

4. स्थानीय पुलिस : जो हादसे से पहले कभी सक्रिय नहीं हुई, और हादसे के बाद भी केवल औपचारिकता निभाई ?

वीडीए के जिम्मेदारों पर कार्रवाई क्यों न हो!

वाराणसी के सिकरौल स्थित सुअरबड़वा क्षेत्र में हो रहे अवैध निर्माण के दौरान मजदूर के मौत मामले ने एक बार फिर वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) की कार्यशैली और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह क्षेत्र वीडीए के ज़ोन-1 में आता है, जिसकी निगरानी का दायित्व एक ज़ोनल अधिकारी, एक जूनियर इंजीनियर (जेई) और एक असिस्टेंट इंजीनियर (एई) पर होता है। इन अधिकारियों का कर्तव्य केवल नक्शा पास करना नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर हो रहे निर्माण कार्यों की सघन निगरानी, अवैध निर्माण पर त्वरित रोक, सीलिंग और आवश्यक होने पर विध्वंस की कार्रवाई सुनिश्चित करना होता है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या वीडीए को इस अवैध निर्माण की जानकारी नहीं थी? अगर नहीं थी, तो यह ज़ोनल अधिकारी और उनके अधीनस्थों की गंभीर प्रशासनिक विफलता है। क्या वे अपनी ज़िम्मेदारियों से इतने कटे हुए हैं कि अपने ही ज़ोन में हो रहे निर्माण की खबर तक नहीं रखते? और अगर उन्हें पूरी जानकारी थी, तब यह और भी अधिक आपत्तिजनक है कि जानते-बूझते उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसे में यह संदेह स्वाभाविक है कि कहीं यह सब मिलीभगत का परिणाम तो नहीं ?दोनों ही परिस्थितियों में ज़ोनल अधिकारी की जवाबदेही तय होती है। यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि प्रशासनिक कर्तव्यों की घोर उपेक्षा है, जिसके चलते न केवल नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं, बल्कि शहर की नियोजित विकास प्रक्रिया को भी चोट पहुंची। ऐसे में यह मांग पूरी तरह जायज़ है कि संबंधित ज़ोनल अधिकारी, जेई और एई पर कठोर कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में कोई अधिकारी अपने दायित्वों से मुंह न मोड़े।

जोनल साहब ! हाइटेंशन लाइन के नीचे किस नियम के मुताबिक हो रहा था अवैध निर्माण ?

सिकरौल के सुअरबड़वा क्षेत्र में हाइटेंशन लाइन के ठीक नीचे हो रहा अवैध निर्माण आखिर किस नियम के तहत जारी था ? क्या वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) की आंखों में पट्टी बंधी थी या फिर जानबूझकर मुंह मोड़ लिया गया ? निर्माणाधीन भवन में काम कर रहे मजदूर सुनील की हाइटेंशन तार की चपेट में आकर दर्दनाक मौत हो गई। यह केवल एक हादसा नहीं, बल्कि वीडीए की लापरवाही और प्रशासनिक मिलीभगत से उपजा परिणाम है।

सवाल यह है कि इतने खतरनाक क्षेत्र में निर्माण को कैसे अनुमति मिल गई? अगर बिना नक्शा पास कराए निर्माण हो रहा था, तो उसे रोका क्यों नहीं गया? जोनल अधिकारी, जेई और एई की भूमिका संदिग्ध है। सुनील की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है...जोनल अधिकारी या कोई और ?

पार्ट -48 

रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए...विकास की नहीं विध्वंस की इबारत लिख रही है वीडीए !