चर्चा में है जोनल और वीसी की गलबहियां !

चर्चा में है जोनल और वीसी की गलबहियां !
  • सवालों के घेरे में है जोनल संजीव कुमार की वीसी से नजदीकियां 
  • सुबह की पहली चाय पर ही मुलाकात से होती है दिन की शुरुआत 
  • वीसी का खुला संरक्षण पाकर संजीव कुमार ने कर दी सीएम योगी के आदेशों की अनदेखी 
  • मुख्यमंत्री की साख पर वीडीए अफ़सर जमकर लगा रहे है बट्टा 
  • आय से कहीं ज्यादा अधिक सम्पत्ति अर्जित है जोनल संजीव कुमार के पास
  • भ्रष्टाचार के बड़े खेल की ख़बर आख़िर सरकार को कैसे नहीं है ?
  • जोनल और वीसी की गलबहियां: भ्रष्टाचार के गठजोड़ से मुख्यमंत्री की साख पर बट्टा

 अजीत सिंह

वाराणसी (रणभेरी): सुबह की चाय हो और अपनों का साथ हो, तो इससे अच्छी दिन की शुरूआत भला क्या होगी। उसमें भी चाय पर ऐसे अपनों का साथ जिसके जरिए लक्ष्मी का आगमन हो, तो वह बैठकी और चाय की चुस्की और स्वादिष्ट और आनंददायक हो जाता है। कुछ ऐसा ही चर्चा इन दिनों शहर में है विकास प्राधिकरण (वीडीए) के जोनल अधिकारी संजीव कुमार और प्राधिकरण के उपाध्यक्ष (वीसी) पुलकित गर्ग के रोज़ाना सुबह की मुलाकात और एक कप चाय की। यह चाय अब सिर्फ एक प्रशासनिक औपचारिकता नहीं रही बल्कि यह चाय अब भ्रष्टाचार के नए अध्याय की भूमिका बन चुकी है। शहर के राजनीतिक गलियारों से लेकर पत्रकारिता जगत और आम नागरिकों तक, हर ओर यह सवाल तैर रहा है कि यह करीबी रिश्ता आखिर किस कीमत पर निभाया जा रहा है ? अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि हर सुबह वीसी आवास पर चाय की टेबल पर बैठकर होने वाली चर्चा, दिनभर की ‘डील’ का एजेंडा तय करती है। किसी अवैध निर्माण को बचाना हो, किसी फ़ाइल को दबाना हो या किसी शिकायतकर्ता को ठंडा करना हो, हर योजना की नींव वहीं से पड़ती है।

मुख्यमंत्री का आदेश... ठेंगे पर 

सूबे के ईमानदार और तेजतर्रार मुखिया योगी आदित्यनाथ ने अवैध निर्माणों और भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त कदम उठाने के अनेक निर्देश जारी किए हैं। स्पष्ट आदेश दिए गए थे कि किसी भी ज़ोन में अनियमित निर्माण न होने पाए, और यदि कोई निर्माण बिना अनुमोदन के हो रहा हो, तो तत्काल ध्वस्त किया जाए। लेकिन वाराणसी विकास प्राधिकरण के वीसी और जोन-4 के जोनल अधिकारी संजीव कुमार ने इन आदेशों को जैसे धूल चटा दी हो। न सिर्फ़ उन्होंने अवैध निर्माणों पर कोई सख्त कदम नहीं उठाया, बल्कि कई मामलों में तो निर्माणकर्ताओं को ‘सुरक्षा’ भी प्रदान की। स्थानीय सूत्रों का कहना है कि सीएम के आदेशों की कॉपी उनकी मेज़ पर धूल फांक रही है, और फील्ड में उन्हीं निर्माणों को पूरा होने दिया जा रहा है जिनमें ‘संबंधितों’ की हिस्सेदारी है। वाराणसी विकास प्राधिकरण के अधिकारियों के लिए मुख्यमंत्री का आदेश मतलब बाबा जी का ठुल्लू !

आय से अधिक संपत्ति का खेल

एक सामान्य सरकारी अधिकारी के वेतनमान में रहते हुए संजीव कुमार के पास जो संपत्ति है, वह चौंकाने वाली है। जोनल संजीव कुमार के पास मौजूद संपत्तियों का आकलन यदि उनके वेतन और सेवा वर्ष के आधार पर किया जाए, तो साफ़ होता है कि वह उनकी घोषित आय से कई गुना अधिक हैं। विभागीय सूत्रों से संजीव कुमार की कई शहर में कई प्लॉट, फ्लैट्स और कमर्शियल प्रॉपर्टीज़ की जानकारी सामने आई है जो या तो उनके या उनके परिजनों के नाम पर है। इसके अतिरिक्त, कुछ संपत्तियां फर्जी दस्तावेज़ों के ज़रिए खरीदी गई बताई जा रही हैं। पड़ताल में यह भी सामने आया है कि उन्होंने रीयल एस्टेट कारोबारियों और बिल्डरों के साथ मिलकर ‘मुनाफे का खेल’ खेला है। नियमों के विपरीत अनुमोदन, निर्माण की स्वीकृति और मनमाने नक्शे पास कराना इसी खेल का हिस्सा रहा है।

वीसी के खुले संरक्षण में जोनल की चांदी

इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि वीसी की चुप्पी और संरक्षण आखिर किस संकेत की ओर इशारा करती है ? क्यों बार-बार शिकायतें मिलने के बावजूद संजीव कुमार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती ? क्या वीसी को इन कारनामों की जानकारी नहीं है, या फिर वह खुद भी इस खेल में हिस्सेदार हैं ? प्राधिकरण के अंदरूनी हलकों में इस बात की चर्चा आम है कि वीसी और संजीव कुमार के बीच की नजदीकी अब एक सामान्य प्रशासनिक तालमेल नहीं, बल्कि ‘सहभागी रिश्ता’ बन चुका है। दोनों के बीच की सहजता इतनी है कि कई बार ज़रूरी फाइलें नियमों को दरकिनार कर पास कर दी जाती हैं और इसमें वीसी की मौन सहमति सबसे बड़ा हथियार बनती है।

न्याय की आस लगाए बैठे जनप्रतिनिधि और आम नागरिक

वाराणसी के कई पार्षद, स्थानीय जनप्रतिनिधि और नागरिक लगातार वीसी और जोनल अधिकारी के विरुद्ध शिकायतें कर रहे हैं। उनका आरोप है कि हर शिकायत को या तो दबा दिया जाता है या फिर जांच का नाटक कर उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। खासकर नगर निगम और जिला प्रशासन के कुछ ईमानदार अफसरों ने भी वीडीए के अधिकारियों के खिलाफ नीतिगत निर्णयों की अनदेखी के साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं। बेलगाम हो चुके निर्माणों से स्थानीय इलाकों में जलनिकासी, ट्रैफिक और सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण जैसे गंभीर संकट पैदा हो चुके हैं। 

फर्जी नक्शे और पासिंग घोटाला

सूत्रों की मानें तो वीडीए में फर्जी नक्शों की पासिंग का एक बड़ा रैकेट चल रहा है। संजीव कुमार और उनके सहयोगियों द्वारा ऐसे नक्शे पास कराए गए जिनमें अनुमोदन से पहले ही निर्माण शुरू हो गया था। कई स्थानों पर नक्शा सिर्फ कागजों में था, लेकिन निर्माण पूरा हो चुका था। इन मामलों में नकली मोहर, बनावटी हस्ताक्षर और घूस की मोटी रकम की भूमिका रही। चाहे वो गंगा किनारे का क्षेत्र हो या फिर रवींद्रपुरी के एचएफएल एरिया। सूत्रों ने बताया कि इन इलाकों में जो अवैध निर्माण हुए या हो रहे हैं उस बहुमंज़िला निर्माण में पासिंग से पहले ही चार मंज़िलें खड़ी हो चुकी थीं। जब स्थानीय लोगों ने आपत्ति जताई, तो वीडीए की टीम सिर्फ एक “सूचना” चिपकाकर लौट आई। कई मामलों में ध्वस्तीकरण के आदेश भी बाद में वीडीए का बुलडोजर पंचर हो गया। 

मौन है मुख्यमंत्री कार्यालय, लेकिन क्यों ?

यह सबसे बड़ा और चुभता हुआ सवाल है...जब सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त है, तब भी वाराणसी जैसे प्रमुख जिले में ऐसा गठजोड़ कैसे फलफूल रहा है ? क्या यह चूक है, या फिर जानबूझकर नजरअंदाज़ किया जा रहा है ? कुछ जानकारों का मानना है कि मुख्यमंत्री कार्यालय तक जानकारी पहुंचाई जाती है, लेकिन स्थानीय राजनीतिक लॉबी इस पर तत्काल कार्रवाई से रोक देती है। वहीं कुछ लोग यह भी कहते हैं कि शायद वीडीए के अंदर ही कुछ प्रभावशाली लोग सरकार के आदेशों की ‘फिल्टरिंग’ कर रहे हैं।

शिकायतकर्ता दबाव में, अफसर बेखौफ

इस पूरी व्यवस्था का सबसे दुखद पक्ष यह है कि जो लोग आवाज उठाते हैं, उन्हें ही टारगेट किया जाता है। कई लोगों को खुले तौर पर धमकी दी गई। किसी की निर्माण परियोजना रोक दी गई, तो किसी की फाइलें लटकाई गईं। एक व्यक्ति का कहना है कि संजीव कुमार खुले आम कहते हैं, “मेरे खिलाफ कोई कुछ नहीं कर सकता,” और शायद उनका यह आत्मविश्वास ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बन चुका है। जब कार्रवाई की जगह संरक्षण मिले, तो ऐसा आत्मविश्वास स्वाभाविक हो जाता है।

भ्रष्टाचार का जाल और प्रशासनिक खामोशी

संजीव कुमार और वीसी की निकटता ने सिर्फ़ अवैध निर्माण को नहीं बढ़ावा दिया है, बल्कि वाराणसी जैसे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक शहर की योजना विकास प्रक्रिया को भी मज़ाक बना दिया है। विकास प्राधिकरण अब उन लोगों की सेवा में लग चुका है, जो ‘पैसा और पहचान’ के दम पर कानून को ठेंगा दिखा सकते हैं। आम नागरिकों के लिए नियम-कानून की बात करने वाला प्राधिकरण, अब रसूखदार बिल्डरों और दलालों के लिए "सेवा केंद्र" बन चुका है। वीसी की मौन सहमति और जोनल की खुली मनमानी का यह गठजोड़ साबित करता है कि बिना राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण के इस स्तर की अनदेखी संभव नहीं है। और जब शिकायतें सरकार के सर्वोच्च कार्यालय तक जाएं और फिर भी कार्रवाई न हो, तो यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर संकट की स्थिति बन जाती है।

सरकार की साख पर लग रहा है बट्टा

सीएम योगी आदित्यनाथ की सरकार बार-बार यह दावा करती रही है कि “भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस” है, लेकिन वीडीए के हालात इस दावे को झुठलाते दिख रहे हैं। जब सीएम के सख्त निर्देशों को कोई जोनल अधिकारी अपने वीसी के संरक्षण में खुलेआम ठुकरा सकता है, तो फिर बाकी अफसरों को क्या संदेश जाता है? यह मामला सिर्फ संजीव कुमार या किसी एक वीसी का नहीं, यह पूरे प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली और जवाबदेही की परख का मसला बन चुका है। अगर सरकार इस मामले में भी चुप रहती है, तो यह उन हज़ारों ईमानदार अधिकारियों के लिए एक नकारात्मक संकेत होगा, जो नियमों का पालन कर रहे हैं।

वाराणसी में कानून से ऊपर है 'गठजोड़'

वीडीए के भीतर फैले इस भ्रष्टाचार का असर अब हर गली, हर मोहल्ले और हर ज़मीन पर साफ़ दिखाई दे रहा है। जिन इलाकों में पहले हरियाली हुआ करती थी, वहां अब कंक्रीट के जंगल उग आए हैं। जिन सड़कों पर दोपहिया वाहन आराम से निकलते थे, अब वहाँ ट्रैफिक रेंगता है। कारण एक ही...मनमाने तरीके से बहुमंज़िला अवैध निर्माणों को स्वीकृति और संरक्षण। नगवा क्षेत्र में गंगा के किनारे सुखानंद बाबा आश्रम के पास जिस तरह बहुमंज़िला इमारतें बिना ज़ोनल अनुमति के खड़ी हो रही हैं, वह न सिर्फ़ मास्टर प्लान की अवहेलना है, बल्कि पर्यावरणीय अपराध भी है। एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी “नमामि गंगे” जैसे कार्यक्रमों से गंगा को स्वच्छ करने की बात करते हैं, वहीं उनकी ही संसदीय सीट पर गंगा तट की ज़मीनें बेच दी गई हैं। भेलूपुर में “एचएफएल” नाम की बस्ती में कई फ्लैट प्रोजेक्ट्स ऐसे खड़े हो चुके हैं, जिनके पास कोई वैध पासिंग नहीं थी। वहीं सिगरा में दर्जनों निर्माण ऐसे चल रहे हैं, जिन पर कभी "नोटिस" चिपकाया गया था और फिर वही नोटिस हटाकर भवन पूरा करा दिया गया। जांच करने वाली टीमों को पहले ही ‘इशारा’ कर दिया जाता है कि “यह ऊपर से सेट है।”

प्रशासनिक संरचना बना 'दलाल नेटवर्क'

यह सिर्फ़ संजीव कुमार और वीसी तक सीमित मामला नहीं है। ज़ोन कार्यालयों में बैठे जूनियर इंजीनियर से लेकर नक्शा खींचने वाले निजी आर्किटेक्ट तक...सब इस भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बन चुके हैं। कोई निर्माणकर्ता नक्शा पास कराने जाता है, तो उसे पहले बता दिया जाता है कि “कितना देना होगा और किनके हिस्से में कितना जाएगा।” यह तंत्र इतना संगठित है कि एक तरह से "ब्रोकरेज सिस्टम" की तरह चलता है, जिसमें दलाल पहले 'मोल-भाव' करते हैं, और फिर नक्शा बिना किसी अड़चन के पास हो जाता है।

पार्ट-16  

रणभेरी के सोमवार के अंक में पढ़िए.....

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