नहीं थम रहा गंगा में डूबने का सिलसिला

वाराणसी (रणभेरी सं.)। धार्मिक आस्था और पर्यटन के केंद्र वाराणसी में गंगा घाटों पर स्नान अब जानलेवा साबित हो रहा है। बीते पांच महीनों में डूबने की घटनाओं में 30 लोगों की मौत हो चुकी है। गंगा नदी में घटते जलस्तर, गहराई का सही अंदाजा न हो पाना और लोगों की असावधानी इन हादसों का बड़ा कारण बनकर उभर रहे हैं। बीते 24 घंटे में दो लोगों की गंगा में डूबकर मौत ने फिर एक बार घाटों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पहली घटना भेलूपुर थाना क्षेत्र स्थित तुलसीघाट की है। जानकारी के अनुसार, चंदौली जिले के पड़ाव पानी टंकी इलाके का निवासी आलोक बाल्मीकि उर्फ राधे (25 वर्ष) अपने चार साथियों के साथ देर रात गंगा किनारे स्नान के लिए पहुंचा था। यह घटना रात करीब 12 बजे के बाद की बताई जा रही है। स्नान करते समय आलोक अचानक गहरे पानी में चला गया और डूब गया। उसके साथ मौजूद दोस्तों ने तुरंत शोर मचाया और पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने एनडीआरएफ की मदद से खोजबीन शुरू की। अगले दिन उसका शव भदैनी घाट के सामने से बरामद किया गया। मृतक आलोक अविवाहित था और शादी-विवाह में डीजे संचालन का कार्य करता था। परिवार में तीन भाइयों में से एक की कुछ साल पहले मौत हो चुकी है, जबकि दूसरा भाई राजेश बाल्मीकि आईपी मॉल, सिगरा में काम करता है। पिता संजय बाल्मीकि ने बताया कि आलोक मिलनसार था और मेहनत से अपने काम में लगा रहता था। दूसरी घटना शिवाला घाट के पास की है, जहां 65 वर्षीय मीना यादव की गंगा में डूबकर मौत हो गई। वह हर रोज की तरह रात में जेटी पर खड़ी थीं। इसी दौरान उनका पैर फिसल गया और वह गंगा की तेज धारा में बह गईं। उनके बेटे ने बताया कि माँ कुछ दिनों से मानसिक रूप से अस्वस्थ थीं। मीना के पति लक्ष्मण यादव की पहले ही मृत्यु हो चुकी है। तीन बेटों में से एक की भी बीमारी के कारण कुछ साल पहले मौत हो चुकी है। सूचना मिलने पर पुलिस एनडीआरएफ की टीम के साथ मौके पर पहुंची और वृद्धा की तलाश शुरू की गई, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
घटते जलस्तर से गहराई का नहीं लग पाता अंदाजा इन हादसों के पीछे एक बड़ी वजह गंगा का लगातार घटता जलस्तर भी है। गर्मी के दिनों में नदी का जलस्तर काफी नीचे चला गया है, जिससे घाटों की सीढ़ियाँ अब पानी से काफी ऊपर नजर आ रही हैं। ऐसे में श्रद्धालु जब गंगा में उतरते हैं तो कई बार अचानक गहराई में चले जाते हैं, जिससे डूबने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
जल विशेषज्ञों का मानना है कि जलस्तर में उतार-चढ़ाव के कारण नदी की सतह असमान हो जाती है और सामान्य दिखने वाली जगहों पर भी गहराई अचानक बढ़ सकती है। लोग गंगा की गहराई और धारा को कम आंकते हैं, जो उनकी जान पर भारी पड़ता है।
सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी, अपीलों का नहीं असर
घाटों पर पुलिस बल और गोताखोरों की तैनाती तो है, लेकिन हादसे रुक नहीं रहे। श्रद्धालुओं को सावधानी बरतने की लगातार अपील की जाती है, लेकिन लापरवाही आम बनी हुई है। प्रशासन द्वारा तीव्र धारा वाले स्थानों और गहराई वाले क्षेत्रों में न जाने, बच्चों पर निगरानी रखने और केवल निर्धारित स्नान क्षेत्रों में ही स्नान करने की सलाह दी जाती है। बावजूद इसके घाटों पर अनियंत्रित भीड़ और असावधानी लगातार जानें ले रही है।
पर्यटकों की भीड़ और बढ़ता जोखिम
श्री काशी विश्वनाथ धाम के नवनिर्माण और गंगा घाटों की ऐतिहासिकता देश-विदेश से भारी संख्या में श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित कर रही है। गर्मियों की छुट्टियों में यह संख्या और बढ़ जाती है, जिससे घाटों पर भारी भीड़ जमा हो रही है। यह भीड़ एक ओर धार्मिक आस्था का प्रतीक है, तो दूसरी ओर सुरक्षा के लिहाज से गंभीर चुनौती बन चुकी है। प्रशासन को अब सिर्फ अपीलों से आगे बढ़ते हुए ठोस कदम उठाने होंगे। घाटों पर चेतावनी संकेतों के साथ-साथ स्वचालित निगरानी प्रणाली, लाइफ गार्ड की संख्या में वृद्धि, रात्रि स्नान पर प्रतिबंध और स्थानीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। जब तक घाटों पर सुरक्षा को लेकर सख्त और सतत निगरानी नहीं की जाती।