राम नाम का प्रताप दिलाता है मुक्ति : मोरारी बापू

वाराणसी (रणभेरी सं.)। प्रख्यात मानस मर्मज्ञ संत मोरारी बापू ने कहा कि सनातन संस्कृति में सिन्दूर के अलग अलग प्रतीक है। सिन्दूर सौभाग्य (सुहाग) का प्रतीक है, सिन्दूर सुहागन स्त्री का सबसे श्रेष्ठ आभूषण है। सिन्दूर श्रद्धा का प्रतीक है, सिन्दूर साहस का भी प्रतीक है तो सिन्दूर का एक अर्थ त्याग और समर्पण भी है। जहाँ समर्पण होगा वहाँ शिकायत का कोई स्थान नही होगा। जानकी जी ने कभी शिकायत नही की, उन्होंने श्रीराम के चरणों मे स्वयं को समर्पित कर दिया। सिगरा स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में सेठ दीनदयाल जालान सेवा ट्रस्ट के तत्वावधान में चल रही श्री राम कथा मानस सिन्दूर के दूसरे दिन रविवार को उन्होंने सनातन संस्कृति में सिंदूर के महत्व का भावपूर्ण वर्णन किया। मोरारी बापू ने कहा कि सिन्दूर साधुता का प्रतीक है, सिन्दूरदान एक प्रकार का सन्यास है, सिन्दूर शरणागति देता है, सिन्दूरदान होते ही जीवन समर्पण में बदल जाता है। सिन्दूर मिलन का प्रतीक है, दिन और रात के मिलन की बेला संध्या सिन्दूरी ही तो है। सूर्योदय हो या सूर्यास्त दोनों सिन्दूरी ही होता है। मोरारी बापू ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने जानकी मंगल में स्त्रियों के तीन लक्षण बताए है, शीलमयी, सुखमयी और शोभमयी। जानकी में ये तीनों गुण विद्यमान थे। जानकी शांति की प्रतीक है। कथा प्रसंग में रामनाम के प्रताप का वर्णन करते हुए मोरारी बापू ने कहा कि रामनाम सिर्फ एक शब्द नही है यह महामंत्र है। महादेव सदैव राम नाम का ही जप करते है। काशी में मुक्ति देने के लिए महादेव इसी राम नाम के मंत्र को तारक मंत्र के रूप में देकर जीव को भव सागर से मुक्ति दिला देते है। यह राम नाम का ही प्रताप है जिसके सीधे जाप करने से व्यक्ति सिद्ध हो जाता है और यदि व्यक्ति राम नाम को उल्टा जपे तो वह शुद्ध हो जाता है। कलिकाल में जब हम यज्ञ नही कर सकते तो परमात्मा का नाम ही श्रेष्ठ है। राम नाम ही जीव के लिए आधार है।
मोरारी बापू ने कहा कि जगद्गुरू शंकराचार्य ने साधुता के पाँच लक्षण बताए है, स्वछता, पवित्रता, प्रसन्नता, स्वतंत्रता और असंगता। इन लक्षणों से ही साधु की पहचान हो सकती है। उन्होंने कहा कि हमें साधुओं की निन्दा बिना विचारे कभी नही करना चाहिए, साधु कभी कुछ नही छुपाता, केवल अपने भजन को छोड़कर। साधु कुशलता पर राग नही रखता और ना ही अकुशलता पर द्वेष रखता है। कथा के शुभारंभ में यजमान जालान परिवार द्वारा व्यासपीठ का पूजन किया गया। आरती में मुख्य रूप से जगद्गुरु यामुनाचार्य सतुआ बाबा संतोष दास जी महाराज, किशन जालान, केशव जालान, भगीरथ जालान, अखिलेश खेमका आदि शामिल रहे।
व्यासपीठ से मोरारी बापू ने मांगी क्षमा
दूसरे दिन की कथा में संत मोरारी बापू ने व्यासपीठ से काशी के विद्वानों, महापुरुषों, काशी वासियों से विगत दिवस उनके काशी विश्वनाथ के जलाभिषेक के लिए क्षमा मांगी। उन्होंने कहा कि उनके मंदिर जाने और जलाभिषेक करने से यदि किसी को ठेस लगी तो हम सभी से क्षमा मांगते है। प्रभु के मंगल विधान के कारण ही यह कथा संभव है। आप सब पूज्य है, जिनसे में क्षमा मांगता हूं। उन्होंने यह भी कहा कि वे भविष्य में मानस क्षमा प्रार्थना की कथा भी गाएंगे।
विरोध में पुतला किया सिपुर्द-खाक
वाराणसी (रणभेरी सं.)। कथा वाचक मोरारी बापू के सूतक काल के दौरान श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन को लेकर मछोदरी क्षेत्र के लोगों में भारी आक्रोश देखने को मिला। इसी के विरोधस्वरूप स्थानीय निवासियों ने सोमवार को बापू की प्रतीकात्मक सुपुर्द-ए-खाक (अंतिम विदाई) कर विरोध दर्ज कराया। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि मोरारी बापू द्वारा सूतक काल में मंदिर प्रवेश और पूजन करना सनातन परंपराओं और धार्मिक मयार्दाओं का खुला उल्लंघन है। उन्होंने इसे करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुंचाने वाला कृत्य बताया। विरोध कार्यक्रम के दौरान प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी करते हुए मांग की कि धमार्चार्यों को धार्मिक विधानों और सामाजिक परंपराओं का पालन कर समाज को सही दिशा देनी चाहिए। प्रदर्शन में प्रमुख रूप से अतुल कुल, रमेश यादव, पंकज भारद्वाज, गौरी शंकर पांडे, मनोज पांडे, आशुतोष पांडे, बल्लभ अग्रवाल, विधु मिश्रा, धन कुमार और श्याम यादव शामिल रहे।
मुरारी बापू के सूतक उल्लंघन से काशी के संत, विद्वतजन एवं नागरिकों में आक्रोश
रामकथा वाचक मुरारी बापू द्वारा काशी में आकर बार बार धर्म एवं शास्त्र के विरुद्ध आचरण करने से धर्म नगरी के संत, विद्वज्जन एवं धर्म-परायण निवासियों में भारी आक्रोश है।पत्नी की मृत्यु के दो दिन बाद सूतक काल में निषिद्ध कथा, प्रवचन, बाबा विश्वनाथ का दर्शन पूजन आदि वर्जित कृत्यों के विरोध पर उसे सही ठहराने के मुरारी बापू के बयान से यह आक्रोश काफी बढ़ गया है।
पूरे मामले पर विचार हेतु वेद मंदिर में सोमवार को आयोजित संत और विद्वज्जन की एक बैठक में जगद्गुरु रामानुजाचार्य शिव पूजन शास्त्री जी महाराज ने कहा कि मुरारी बापू अपने को गृहस्थ संत मानते हैं। गृहस्थ संत पर भी सूतक के नियम लागू होते हैं जब तक वे विधिवत संन्यास ग्रहण न कर लें। शास्त्री जी ने कहा कि गौतम धर्मसूत्र के अंतर्गत परिजनों के निधन पर 10 दिन के सूतक का विधान है। मोरारी बापू गृहस्थ हैं अत: पत्नी के बाद यह शास्त्रीय मयार्दा उनपर लागू होती है। उनका यह तर्क कि वैष्णव होने के कारण मोरारी बापू सूतक से मुक्त हैं, शास्त्र विरुद्ध है। शास्त्री जी ने कहा कि नारद संहिता में स्पष्ट उल्लेख है कि केवल संन्यासी वैष्णव हीं सूतक के नियमों से मुक्त होते हैं, गृहस्थ वैष्णव नहीं। मुरारी बापू द्वारा सूतक के दौरान मंदिर दर्शन, कथा वाचन और देव पूजन किया जाना शास्त्रीय मयार्दा का उल्लंघन है।मनुस्मृति और पद्म पुराण में स्पष्ट उल्लेख है कि सूतक काल में व्यक्ति के लिए किसी भी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान या देवदर्शन वर्जित हैं। ऐसा करने से पुण्य का ह्रास होता है। उन्होंने कहा कि स्वयं को धर्म, परंपरा और शास्त्रों से ऊपर सिद्ध करने का यह प्रयत्न मयार्दा का उल्लंघन है। मुरारी बापू जैसे लोकप्रिय और जनसमादृत कथावाचक जिनका हजारों लोग सम्मान और अनुकरण करते हैं, का यह कृत्य निन्दनीय एवं अक्षम्य है। वे अपने को धर्म शास्त्र और परंपरागत मान्यताओं से ऊपर सिद्ध करने के विफल प्रयत्न के तहत यह शास्त्र विरुद्ध आचरण कर रहे हैं। पूर्व में भी काशी के महाश्मशान में एक शादी कराकर सनातन जीवन पद्धति और काशी के धर्म समाज को नीचा दिखाने के प्रयत्न करते रहे हैं। हमारी श्रेष्ठ परंपरा, धर्म और जीवन-पद्धति को नीचा दिखाने के मुरारी बापू के लगातार कृत्यों को अब काशीवासी सहन करने को तैयार नहीं हैं। मुरारी बापू के शास्त्र विरोधी कुकृत्य से काशी के नागरिकों में भारी आक्रोश है। वे उनके विरुद्ध संगठित होकर विरोध के लिए तत्पर हैं। अब वह समय आ गया है कि ऐसे धर्म और सनातन परंपरा विरोधी तत्वों को महादेव की धर्म नगरी काशी से खदेड़कर उनके काशी प्रवेश पर रोक लगायी जाय। बैठक में आचार्य सुनील चौबे, राजीव रंजन तिवारी, राधाकृष्ण तिवारी, प्रोफेसर रामजीवन मिश्र, ओमप्रकाश चतुवेर्दी, जयप्रकाश चतुवेर्दी, हरेराम ओझा , नाचक उपाध्याय इत्यादि उपस्थित थे।