तो क्या गंगा किनारे मिलेगी अब सबको निर्माण की छूट ?

- भ्रष्टाचार में डूबकर वीडीए प्रशासन हो गया पूरी तरह से अंधा
- वीसी साहब की देख रेख में पनप रहा अवैध निर्माण का धंधा
- गंगा किनारे 12 बिस्वा के अस्पताल को कैसे बना दिया होटल
- गरीब और अमीर के लिया क्या अलग अलग है नियम
- अमीरों के लिए ही कानून क्यों हो जाता है अंधा ?
- जब धनाढ्यों को मिली है खुली छूट तो गरीबों पर क्यों है रोक ?
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी): राष्ट्रीय नदी गंगा केवल नदी ही नहीं बल्कि हमारी आस्था है। जीवन दायिनी गंगा अपनी अविरल निर्मल धारा के लिए जानी जाती है। अपितु इस राष्ट्रीय नदी के तट पर किसी भी प्रकार के निर्माण अथवा योजनाओं हेतु सरकार द्वारा एक सख़्त गाइडलाइन बनाई गई है । एनजीटी से लेकर केंद्र सरकार तक ने ये स्पष्ट कर रखा है कि गंगा के 200 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार का व्यावसायिक निर्माण नहीं हो सकता। लेकिन वाराणसी में इन नियमों का अब खुलेआम मज़ाक उड़ाया जा रहा है और वो भी प्रशासन की निगरानी में। बनारस में जिस ज़मीन पर कभी गरीबों के लिए बनाया गया था एक अस्पताल, वहीं अब एक आलीशान होटल बनकर खड़ा हो गया है। ये वही मेहता अस्पताल है, जिसकी नींव समाजसेवी बलदेव राम मेहता और शालिग्राम मेहता ने रखी थी। ये सोचकर कि जब तक ये शहर रहेगा, तब तक ये अस्पताल गरीबों की सेवा करता रहेगा। पर आज न वो सेवा बची है, न वो सोच। बचा है तो सिर्फ मुनाफा, लालच और सत्ता से मिली संरक्षित लूट। सवाल सिर्फ एक अस्पताल के बिकने का नहीं है, सवाल उस मानसिकता का है जिसमें अमीरों के लिए सारे कानून बेमानी हो जाते हैं और गरीबों के लिए हर नियम सख़्ती से लागू होता है। गंगा सिर्फ एक नदी नहीं, यह आम जनमानस की आस्था है। इसे बचाने के लिए न जाने कितने अभियान चलाए गए, अलग अलग योजनाएं और कानून बनाए गए। लेकिन जब गंगा के किनारे भ्रष्टाचार की बाढ़ आ जाए, तो नियम भी बह जाते हैं। मेहता अस्पताल की ज़मीन पर बने होटल का मामला यही दिखाता है...कैसे कानूनों की धज्जियां उड़ाकर गंगा किनारे बहुमंज़िला व्यवसायिक इमारत खड़ी कर दी गई, और पूरा प्रशासन सिर्फ तमाशा देखता रहा।
क्या अब सबको मिलेगा निर्माण का अधिकार?
वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के जिम्मेदार अफसरों की आँखों के सामने गंगा किनारे अवैध निर्माण हो रहा है वो भी उस ज़मीन पर, जो वसीयत के अनुसार सिर्फ और सिर्फ गरीबों के इलाज के लिए समर्पित थी। वीडीए उपाध्यक्ष और ज़ोनल अधिकारियों के साथ वीडीए बोर्ड में बैठे सत्ता के रहनुमाओं की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठते हैं। क्या उन्होंने जानबूझकर इस गैरकानूनी निर्माण को बढ़ावा दिया ? स्थानीय लोगों से बात करने पर एक आम भावना सामने आती है कि अब बनारस में नियम सिर्फ उन पर लागू होते हैं जिनके पास न पैसे हैं, न पहुँच। जिनके पास सत्ता का साथ है, उनके लिए गंगा किनारे होटल बनाना भी ‘आम बात’ बन चुका है। गौर से देखा जाए तो वाराणसी विकास प्राधिकरण का दोहरा चरित्र सामने आता है। नियम-कानून सिर्फ गरीबों के लिए है, अमीरों के लिए वीडीए के जिम्मेदार अंधे, गूंगे और बहरे हैं। यही वजह है कि वीसी पुलकित गर्ग के कार्यकाल में पूरे शहर में अवैध निर्माण का धंधा पनप रहा है, और वीडीए के अधिकारी भ्रष्टाचार की गंगा में गोता लगा रहे हैं। वजह साफ है कि की अमीरों के लिए यह कानून अंधा बन जाता है जबकि गरीबों के लिए अलग अलग नियम बनाए जाते हैं। अब लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि....जब धनाढ्यों को मिली है खुली छूट तो गरीबों पर क्यों है रोक ?
दलालों ने गरीबों की उम्मीद को मुनाफे में बदला दिया
बनारस में कई इमारतें ऐसी हैं जिनकी दीवारें सिर्फ ईंट और सीमेंट से नहीं, बल्कि भावना, त्याग और सेवा की भावना से बनी हैं। मेहता अस्पताल भी ऐसा ही एक नाम था। एक ऐसा संस्थान जिसे शहर के हर वर्ग ने ससम्मान देखा। विशेषकर गरीब तबके के लोगों के लिए यह अस्पताल एक वरदान से कम नहीं था। बलदेव राम मेहता और शालिग्राम मेहता कोई साधारण नाम नहीं थे। इन दोनों समाजसेवियों ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा सार्वजनिक भलाई को समर्पित किया। 20वीं सदी के उत्तरार्ध में उन्होंने वाराणसी के रामघाट क्षेत्र में गंगा के किनारे लगभग 12 बिस्वा ज़मीन एक ट्रस्ट को समर्पित की। यह जमीन अस्पताल के लिए दान की गई थी, और वसीयत में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि यहां हमेशा एक ऐसा अस्पताल चलेगा जो गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करेगा। वसीयत में यह भी लिखा गया था कि ट्रस्ट, सरकार या कोई अन्य एजेंसी इस ज़मीन का उपयोग सिर्फ और सिर्फ चिकित्सा सेवा के लिए करेगी, न कि किसी निजी लाभ या व्यवसाय के लिए। जिस इमारत में कभी दर्द और उम्मीदें टकराती थीं, जहां डॉक्टर और नर्सें किसी मरीज़ को बचाने की कोशिश में दिन-रात लगी रहती थीं, उस जगह अब ग्लास की दीवारें और एसी कमरों वाला होटल खड़ा है। बलदेव राम मेहता और शालिग्राम मेहता की आत्मा शायद हर रोज़ उस इमारत की छत पर भटकती होगी। पूछती होगी कि...क्या हमने यही चाहा था ?
गंगा किनारे अमीरों को छूट, गरीबों पर कहर
एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र को स्मार्ट सिटी बनाने की बात करते हैं, तो दूसरी ओर नगर नियोजन और भवन विकास से जुड़ा सबसे बड़ा विभाग, वाराणसी विकास प्राधिकरण (वी.डी.ए.), उन्हीं सिद्धांतों को तार-तार करता दिख रहा है। दशाश्वमेध जोन में चल रहे दर्जनों अवैध निर्माण इस सच्चाई की जीती-जागती मिसाल हैं। ये निर्माण रातोंरात खड़े हो रहे हैं, लेकिन प्रशासन की आंखें बंद हैं। दिलचस्प यह है कि इनमें से ज्यादातर निर्माण रसूखदारों और धन्नासेठों के हैं। वहीं, गरीब यदि एक छोटी सी मरम्मत भी करना चाहे तो उसके ऊपर बुलडोजर चल जाता है। गंगा तट के करीब दशाश्वमेध जोन, वीडीए जोन-4 के भेलूपुर और नगवां वार्ड जहां हर दिन हजारों श्रद्धालु आते हैं, आज अवैध निर्माण का अड्डा बन चुका है। सूत्र बताते हैं कि इस क्षेत्र में पिछले कुछ महीनों में ही दर्जनों होटल, लॉज और बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। इनमें से अधिकांश के पास न तो कोई वैध मानचित्र है, न निर्माण की स्वीकृति। यह सारा निर्माण वीडीए के मक्कार अधिकारियों के मौन सहमति और सांठगांठ से हुआ है या हो रहा है।
रसूखदारों के आगे बौनी हुई वीडीए की फौज
यह सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर वीडीए इन रसूखदारों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करता ? जवाब है... रसूख और रिश्वत। जिन अमीरों ने दशाश्वमेध जोन में होटल या बहुमंजिला इमारतें खड़ी की हैं, वे सीधे वीडीए के उच्चाधिकारियों और राजनीतिक नेताओं से जुड़े हैं। यही वजह है कि ज़ोनल अधिकारी से लेकर मुख्य अभियंता तक कोई कार्रवाई नहीं करता। जबकि नियम साफ कहते हैं कि किसी भी निर्माण के लिए स्वीकृत नक्शा होना चाहिए, फायर सेफ्टी की अनुमति होनी चाहिए, और पर्यावरण संबंधी दिशानिर्देशों का पालन जरूरी है।
गरीबों के हिस्से सिर्फ बुलडोजर
विडंबना देखिए कि जब कोई गरीब अपनी मेहनत की कमाई से एक छोटा-सा कमरा जोड़ना चाहता है, तो उसी वीडीए के अधिकारी कानून की किताबें खोलकर पहुंच जाते हैं। बिना स्वीकृति नक्शा के एक ईंट भी लगाने नहीं देते। लाव-लश्कर के साथ गरीबों के मकान तोड़ने में कोई देरी नहीं करते। उन्हें नोटिस, जुर्माना और मुकदमे का डर दिखाया जाता है। यानी एक ही विभाग के दो चेहरे... एक अमीरों के लिए मूकदर्शक, और दूसरा गरीबों के लिए जल्लाद।
एनजीटी और हाईकोर्ट का आदेश भी ठेंगे पर
गंगा किनारे 200 मीटर की परिधि में किसी भी प्रकार के नए निर्माण पर रोक है। यह आदेश नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और हाईकोर्ट दोनों ने दिए हैं। इसके बावजूद दशाश्वमेध जोन में निर्माण हो रहे हैं। जीता जगता उदाहरण है रामघाट से सटे मेहता अस्पताल की जमीन पर बन रहे आलिशान होटल।जिन अधिकारियों पर इन अवैध निर्माणों को रोकने की जिम्मेदारी है, वही यदि खुद इसमें हिस्सेदार बन जाएं तो न्याय की उम्मीद करना व्यर्थ है। दशाश्वमेध जोनल सौरभ प्रजापति जैसे अधिकारी, जिनका काम नगर नियोजन के नियमों का पालन कराना है, वे ही यदि धनबल और सत्ताबल के सामने घुटने टेक दें, मक्कार हो जाए तो सवाल उठता है...क्या वाराणसी में कानून का राज है या रसूखदारों का ?
सवालों की फेहरिस्त
- गंगा किनारे हो रहे इन निर्माणों की अनुमति किसने दी?
- यदि अनुमति नहीं थी तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
- शिकायतों के बावजूद दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई विभागीय जांच क्यों नहीं चली?
- क्या वीडीए के उच्च अधिकारी भी इस खेल में शामिल हैं?
- जब अमीरों को अवैध निर्माण की छूट है, तो गरीबों के मकानों पर बुलडोजर क्यों?
विकास प्राधिकरण...दोहरी नीति का खतरनाक चेहरा
दशाश्वमेध जोन में हो रहे ये अवैध निर्माण सिर्फ नगर नियोजन के नियमों का उल्लंघन नहीं हैं, बल्कि यह न्याय और प्रशासनिक निष्पक्षता पर भी गहरा सवाल खड़ा करते हैं। गरीब के निर्माण पर बुलडोजर चलाने वाले वीडीए के जिम्मेदार आखिर रसूखदार के आगे भीगी बिल्ली क्यों बन जाते। अमीरों से यारी, गरीबों से गद्दारी वाराणसी विकास प्राधिकरण का दोहरा मापदंड बन गया है। अगर यही रवैया जारी रहा तो आने वाले समय में वाराणसी की धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय विरासत खतरे में पड़ जाएगी।
पार्ट- 18
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