ड्रम, बाल्टी व शृंगी से गूंजती रही महाबली की अंगनाई

समारोह की तीसरी निशा पर पद्मश्री शिवमणि ने ड्रम वादन में जगाया शास्त्रीय संगीत का जादू
आए न बालम... ने श्रोताओं को दिलाई बैजू बावरा की याद, दूसरे दिन अजय चक्रवर्ती समेत कई कलाकारों ने हनुमत दरबार में लगायी हाजिरी
वाराणसी (रणभेरी): संकट मोचन महाराज के चरण-शरण में आयोजित संगीत समारोह की तीसरी निशा शुक्रवार को अनूठे ध्वनि अनुसंधान की साक्षी बनी। ख्यात डूमर पद्मश्री पंडित शिवमणि ने यू. राजेश के मँडोलिन व महंत प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र के पखावज संग लगभग डेढ़ घंटे की प्रस्तुति को अपनी प्रयोगधर्मिता से यादगार बनाया। पश्चिम के दो साज डूम व मैंडोलिन संग पखावज की त्रयी में पूरब के सुर-लय-ताल का झंडा लहराया। शिवमणि का डूम शास्त्रीय संगीत के प्रवाह में इतने अद्भुत तरीके से ठनका, झनका और खनका कि दिलों में उतरता चला गया। इसकी गहराई तालियों की गड़गड़ाहट और थिरकन से महसूसी गई। शिवमणि वास्तव में ड्रम वादन ही नहीं कर रहे थे बल्कि वह निरंतर ध्वनि अनुसंधान भी करते दिखे। उनके वाद्य यंत्रों में कई खास तो कुछ मामूली चीजें भी शामिल हुई जिनसे निकलीं खास आवाजें सुर की झंकार बन गईं।
ताल व लय का इस तरह साथ मिला कि श्रोताओं को ड्रम वादन की श्रव्य दृश्य अदा विभोर कर गई। शिवमणि व उनके सहयोगी राजेश ने कई प्रस्तुतियां दी। उनको सुनने के लिए संकटमोचन दरबार में भारी भीड़ जमा थी। इसके बाद अजय चक्रवर्ती का गायन हुआ। अजय चक्रवर्ती ने कहा कि 65 साल से सीख ही रहा हूं, पंडित नहीं बन पाया। हनुमान जी हमारे सुपरवाइजर हैं। उन्होंने रात दो बजे तक एआर रहमान के साथ रिकॉर्डिंग की। पद्मभूषण पं. अजय चक्रवर्ती ने कहा कि बीते बुधवार की रात दो बजे तक एआर रहमान के साथ महाकुंभफिल्म के गाने की रिकॉर्डिंग की। लेकिन, हनुमान जी हमारे सुपरवाइजर हैं। उन्हें ही साक्षी मानकर सीखता रहा हूं। इसलिए सब छोड़कर समय से यहां हाजिरी लगाई।
पं. चक्रवर्ती ने कहा कि बॉलीवुड म्यूजिक को राग से जोड़ना होगा, तभी क्लासिकल म्यूजिक का फीवर बढ़ेगा। कोलकाता के श्रुति नंदन संस्था में 1000 से ज्यादा युवाओं को राग आधारित शास्त्रीय संगीत सिखा रहा हूं। उन्होंने अपनी पीड़ा सुनाई कि बॉलीवुड म्यूजिक में राग आधारित काम नहीं हो रहा है। राग की लोगों को जानकारी ही नहीं है। हालिया शास्त्रीय संगीत से युवाओं को जोड़ने वाली फिल्म बंदिश-बैंडिट्स में राग आधारित क्लासिकल म्यूजिक को प्रस्तुत किया गया था। इसी वजह से फिल्म म्यूजिकल हिट रही। ऐसे ही अब आगे शास्त्रीय संगीत की लोकप्रियता बढ़ाई जाएगी।
तानसेन परंपरा के कलाकार ने छेड़ा सेनिया घराने का तराना
तीसरी प्रस्तुति तानसेन वंश परंपरा और जयपुर के सेनिया घराने के कलाकार प्रो. राजेश शाह की रही। उन्होंने सितार पर राग झिंझोटी में आलाप जोड़ और झाला की प्रस्तुति से लोगों को मुग्ध कर दिया। बीएचयू के मंच एवं संगीत कला संकाय के पूर्व डीन प्रो. राजेश शाह ने रागों की कठिनाई को बड़ी ही सरलता से सितार पर निकाला। सितार के हर नोट पर रजनीश तिवारी ने संगत की। संगीत समारोह की दूसरी निशा की पहली प्रस्तुति लावण्या शंकर के भरतनाट्यम नृत्य की रही। राग मल्लारी से शिव की अराधना की। फिर रामचरितमानस के प्रसंगों पर राम-राम जय राजा राम... गीत पर नृत्य करते हुए त्रेता युग के 10 रामभक्तों के रोल निभाए। शबरी बनकर बेर को जूठा किया तो हनुमान बनकर आकाश यात्रा भी की। केवट बन नाव की पतवार चलाई और वानर बनकर भगवान राम के निदेशों का पालन किया। 45 मिनट की प्रस्तुति में लावण्या ने अपने भावों और शैली से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया।
और कहीं न मिलेंगे ऐसे श्रोताः प्रो. विश्वम्भरनाथ
महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने कहा कि मैं कोई आर्टिस्ट नहीं, जो कुछ मेरे पास है हनुमान जी का, मेरे गुरु जी का प्रसाद है। उन्होंने संकट मोचन संगीत समारोह के श्रोताओं की सराहना करते हुए कहा, गुरुवार रात सितार बज रहा था और श्रोता उसमें सुर मिला रहे थे। अद्भुत, रिहर्सल न ट्रेनिंग, लेकिन क्या सुर में गा रहे थे। यह जता रहे थे कि यहां परफार्म करना हो तो पूरे होश में आइए। यहां का श्रोता कमजोर नहीं। सब गुणी है, ईश्वर के रूप है, और कही नहीं इस तरह के श्रोता मिलेंगे।
आत्मा की आवाज सुनें : शिवमणि
पं. शिवमणि ने संकट मोचन संगीत समारोह में प्रस्तुति के अवसर को सौभाग्य बताया। कहा, ऐसे सुअवसर माता-पिता, गुरु के आशीर्वाद से मिल पाते हैं। मेरा जीवन व मेरी यात्रा भगवान शिव को समर्पित है। उन्होंने नई पीढ़ी को मोबाइल के अधिक प्रयोग पर सचेत किया। कहा, यह भविष्य चौपट कर सकती है। अपने करियर पर फोकस करें। किताबों पर ध्यान दें। आत्मा की आवाज सुनें, वह सदा सही होती है।
पं. विकास महाराज ने कनार्टक राग पर बजाया सरोद
भोर में महावीर के पट खुलने से पहले ही मंच पर बनारस घराने के पं. विकास महाराज ने कनार्टक के राग चारुकेसी में सरोद बजाकर हर किसी को मुग्ध कर दिया। स्वयं का कंपोज किया एक धुन बजाकर श्रोताओं को गंगा की पीड़ा का एहसास कराया। सितार पर विभाष महाराज और तबले पर प्रभाष महाराज ने संगत की। इस बीच आरती के लिए प्रस्तुति को 20 मिनट के लिए रोकना पड़ा। मंच पर विकास महाराज ने कहा कि जीवन में एक ही चीज सीखा-बड़ों और गुरुओं का सम्मान। इससे अच्छा मंच आदर का कुछ नहीं हो सकता। छह सेकंड तक गूंजती रही ध्वनि बांसुरी से होंठ और मृदंगम से अंगुलियां हटने के बाद भी छह सेकंड तक संकट मोचन परिसर में सुमधुर ध्वनियां गूंजती रहीं। ये श्रोताओं के लिए विस्मयकारी पल बन गया। हर कोई चारों से आ रही आवाज का स्रोत ढूंढने लगा। महावीर धाम में ध्वनि का ऐसा परावर्तन खास मौकों पर सुनने को मिल पाता है। संकट मोचन संगीत समारोह की पहली निशा में सात प्रस्तुतियां हुई। गुरुवार की आधी रात के बाद हुई प्रस्तुतियों में हैदराबाद के डॉ. येल्ला वेंकटेश्वर और बंगलूरू के प्रवीण गोड़खिंडी की बांसुरी श्रोताओं को खास लगी। डॉ. येल्ला वेंकटेश्वर के मृदंगम के साथ वायलिन, बांसुरी की क्रीड़ा खूब रास आई। सरगम की पिच पर मृदंगम की थाप आसमानी थ्रो लगाते दिख रही थी। कई बार तो ऐसा लगा कि दोनों हाथ की अंगुलियां हवा में हैं, फिर भी मृदंगम की थाप सुनाई दे रही है। साथी कलाकार बोल पड़े कि यहां अमृतवर्षा हो सकती है। हर-हर महादेव से संबोधित करते हुए डॉ. येल्ला ने कहा, भइया मैं दुनिया के दुनिया के 70 देशों की यात्रा कर चुका हूं लेकिन ऐसा कहीं नहीं हुआ। ये महंत और ऑडियंस की वजह से ही संभव है। बंगलूरू के प्रवीण गोडखिंडी ने अंत में कुछ ऐसा बजाया कि प्रस्तुति खत्म होने के बाद तक बांसुरी की ध्वनि गूंजती रही। पं. गोड़खिंडी ने खड़े होकर हाथ जोड़ा। इससे पहले उनकी बांसुरी की आवाज ने कभी विरह तो कभी वैराग्य की दुनिया में पहुंचाया। लगा कि भोर की बेला में मुरली की मधुर धुन सुन मन का विचलन दूर हो रहा है। पिता वेंकटेश्वर को याद कर नए राग वेंकटेश कौंस से युवा संगीतकारों को परिचित कराया। नौ मात्रा का अंतरा बजाकर श्रोताओं की निद्रा तोड़ दी। कोलकाता के ईषान घोष ने तबले पर जुगलबंदी की।
विश्वमोहन-सलिल भट्ट की अंगुलियों से झनके वीणा के तार
संकट मोचन संगीत समारोह की तीसरी प्रस्तुति में ग्रैमी अवार्ड विजेता पद्मभूषण पंडित विश्व मोहन भट्ट व 'तंत्री सम्राट' की उपाधि से सम्मानित उनके पुत्र सलिल भट्ट ने मोहन वीणा व सात्विक वीणा की शानदार जुगलबंदी की। पं. विश्वमोहन भट्ट के अमृत महोत्सव (75वें वर्ष) को ध्यान में रखते हुए जयपुर घराने की पिता-पुत्र जोड़ी ने संकट मोचन महाराज के चरणों में पूर्व रंग से विशेष प्रस्तुति समर्पित को। साथ ही अपनी 14 पीढ़यों की साधना-आराधना से सजा पोस्टर महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र को भेंट किया। दीर्घायुष्य, आरोग्य, यश-कीर्ति व मंगलयमय जीवन के आशीर्वचन से भाव में आए। राम जोग में पूरे विस्तार से आलाप, जोड़, झाला व दोनों वीणाओं के संवाद से श्रोताओं को चमत्कृत किया। विलंचित, द्रुत गति की रचनाओं को प्रस्तुत कर राग जोग को परिभाषित किया। इसी राग में शिव-हनुमान की स्तुति की। तीव्र गति की तानों और असंख्य तिहाइयों के बादन से मंदिर परिसर गुंजायमान होता रहा। अहमदाबाद से आए बनारस घराने के तचला वादक पं. हिमांशु महंत ने संगत की।
सौरव-गौरव ने कथक में सहेजा बनारस
दूसरी प्रस्तुति में सौरव-गौरव ने कथक में अपने बनारस घराने की बारीकियों को प्रस्तुत किया। गुरु पं. रविशंकर मिश्र के बोल पढ़त व निर्देशन में सर्वप्रथम श्रीराम वंदना की। हनुमान स्तुति के भावदार प्रदर्शन का आधार पं. जसराज के गाए भजन 'मेरे प्यारे लला हनुमंत लला...' को बनाया। दर्शकों ने तालियों से इस प्रस्तुति को सराहा। बनारस घराने की पुरानी बंदिशों ने उनके नृत्य को ऊंचाई पर पहुंचाया। इस क्रम में गत भाव में तीन भावों की नायिकाओं शर्मिली, चंचल व घमंडी की असरदार प्रस्तुति को सराहना मिली। शिव का आनंद तांडव 'डिमिक डिमिक डमरू वाजे, प्रेम मगन नाचे भोला...' से समापन किया। तबले पर अकरम खां, उदय शंकर, सारंगी पर अनीश मित्र व हारमोनियम पर मौहित साहनी ने संगत की।