जोनल संजीव कुमार की शह पर हो रहा गली-गली अवैध निर्माण

- खोजवा क्षेत्र के हनुमान गली में अतिक्रमणकारियों ने किया पूरे गली में कब्जा
- सरकारी जमीन पर धड़ल्ले से अवैध निर्माण को अंजाम दे रहे अतिक्रमणकारी
- गली के दोनों किनारे पर दस फीट ऊपर से छज्जा बढ़ाकर पाट दी गई है गलियां, हवा और धूप तक नहीं पहुंच रही
- गंगा किनारे से लेकर गलियों तक अवैध निर्माण, निकम्मा वीडीए बेच चुका है ईमान
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी): वाराणसी, एक ऐसा शहर जिसकी पहचान उसकी गलियों, घाटों और गंगा की निर्मल धार से है। लेकिन आज यही पहचान खतरे में है। विकास प्राधिकरण (वीडीए) के अधिकारियों की मिलीभगत और प्रशासनिक उदासीनता ने इस ऐतिहासिक शहर की आत्मा को धीरे-धीरे खोखला कर दिया है। अवैध निर्माण और अतिक्रमण की बाढ़ हर गली, हर मोहल्ले में फैल चुकी है, खासकर खोजवा क्षेत्र की हनुमान गली में। हनुमान गली आज भ्रष्टाचार और प्रशासनिक मिलीभगत की जीती-जागती मिसाल बन चुकी है। यहां सरकारी जमीनों पर खुलेआम कब्जा हो रहा है, और वीडीए आंख मूंदे बैठा है। दोनों ओर से छज्जे बढ़ाकर गलियों को इस तरह पाट दिया गया है कि अब न तो सूरज की रोशनी पहुंचती है, न ही ताजी हवा। जो गलियां कभी वाराणसी की पहचान होती थीं, वहीं गालियां अब सीलन व दुर्गंध भरी, दमघोंटू सुरंगनुमा गली में तब्दील होती जा रही हैं। अवैध निर्माण पर कार्रवाई तो दूर, शिकायत करने वालों को ही धमकाया जाता है। जब शासन की आंखों में धूल झोंककर सरकारी जमीन पर इमारतें खड़ी कर दी जाती हों, तो सवाल उठता है कि कानून का राज है या फिर बिल्डरों, दलालों और अतिक्रमणकारियों का ?
हनुमान गली में कब्जे की कहानी
खोजवा की प्रसिद्ध हनुमान गली (श्री राम मंदिर के पास) अब अतिक्रमण और भ्रष्टाचार की दलदल में धंसी हुई है। कभी यह गली भक्तों और पर्यटकों की चहल-पहल से गुलजार रहती थी, लेकिन आज इसके दोनों ओर अवैध निर्माण की बेतरतीब दीवारें खड़ी कर दी गई हैं। इतना ही नहीं, दोनों ओर से छज्जे बढ़ाकर लगभग दस फीट ऊपर तक गली को ढक दिया गया है। ये छज्जे इस तरह फैले हैं कि नीचे चलना भी मुश्किल हो गया है। धूप तो यहां जमीन पर पहुंच ही नहीं सकती। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सब पिछले एक-दो वर्षों में हुआ है। कुछ लोगों ने रातों-रात निर्माण करवाया, तो कुछ ने विकास प्राधिकरण के क्षेत्रीय अधिकारी को घूस खिलाकर बिना अनुमति के निर्माण कराया। स्थानीय लोगों का कहना है कि हमने कई बार शिकायत की कि ये लोग सरकारी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। उल्टे उन लोगों ने हमें धमकाया कि चुप रहो, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा। स्थानीय निवासी बताते हैं कि पहले धूप आती थी, गर्मियों में राहत मिलती थी। अब तो पूरा रास्ता दुर्गंध से भरा रहता है। बच्चों और बुजुर्गों को सांस लेने में ज्यादा दिक्कत होती है। न दिन में सूरज दिखता है, न रात में रोशनी। क्या यही है स्मार्ट सिटी ? अवैध निर्माण इतना व्यापक है कि एक गली के भीतर करीब दर्जन भर मकानों ने गली की सीमा से बाहर छज्जे बढ़ा रखे हैं। इनमें से कई ने जमीन के नीचे भी खुदाई कर दुकान या बेसमेंट बना लिया है। न तो इसका स्ट्रक्चरल सेफ्टी का कोई सर्टिफिकेट है, न फायर सेफ्टी की व्यवस्था।
इस पूरे मामले में जोनल अधिकारी संजीव कुमार की भूमिका सर्वाधिक संदिग्ध मानी जा रही है। लोगों का कहना है कि इधर लगातार संजीव कुमार को हर निर्माण से पहले सूचना दी जाती है, लेकिन वे आंख मूंदकर या कहें ‘जेब गरम कर’ इजाजत दे देते हैं। यही वजह है कि शिकायतों के बावजूद कार्रवाई का कोई नामोनिशान नहीं।
अब सवाल यह है कि अगर इस तरह से वाराणसी में प्राचीन गलियों का वास्तविक स्वरूप बिगड़ता गया और विभागीय अधिकारियों की सहमति से अवैध कब्जा होता रहा तो वाराणसी अपनी गलियों की विशेष पहचान खोता जाएगा।
अब यह एक अहम सवाल है कि जिला प्रशासन इन काले कारनामों से अनजान है या फिर वह भी इनका हिस्सा बन चुका है ?
अवैध निर्माण में जोनल अधिकारी संजीव कुमार की भूमिका
वाराणसी विकास प्राधिकरण के जोन-4 में तैनात ज़ोनल अधिकारी संजीव कुमार का नाम पिछले कई महीनों से एक के बाद एक अवैध निर्माण मामलों में सामने आता रहा है। हनुमान गली का मामला भी इससे अछूता नहीं है। स्थानीय नागरिकों के अनुसार, यहां जितने भी निर्माण कार्य हुए हैं, उनमें से अधिकांश की शिकायतें सीधे संजीव कुमार को भेजी गई थीं, लेकिन उन पर न तो कोई कार्रवाई हुई, न ही कोई जांच। जोनल की जेब गरम करो फिर चाहे अवैध निर्माण कराओ, छज्जे फैलाओ या फिर सरकारी जमीन पर कब्जे करो, सब माफ है। वीडीए के कर्मचारी की माने तो उनका कहना है कि संजीव कुमार वीडीए उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग के बड़े घनिष्ठ हो गए है जिसकी वजह से वो बे रोक टोक अपनी मनमानी करते हैं । हैरानी की बात ये है कि संजीव कुमार के कार्यकाल में खोजवा, भेलूपुर, और नगवा क्षेत्रों में अवैध निर्माण की बाढ़ सी आ गई है। शीर्ष अधिकारियों गहरे रिश्ते होने की वजह से उनके खिलाफ कोई विभागीय जांच नहीं बैठाई गई। अब सवाल उठता है कि अगर एक ज़ोनल अधिकारी इतना ताकतवर हो गया है कि कानून, नियम और शासनादेश सब उसके सामने बौने हो गए हैं, तो वाराणसी में अवैध निर्माण कैसे रुकेगा ? क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘भ्रष्टाचार-मुक्त शासन’ के दावों पर ऐसे अफसर पानी नहीं फेर रहे हैं ?
शिकायतों के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं?
वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) को नागरिकों द्वारा की जाती गई सैकड़ों शिकायतों की फेहरिस्त मौजूद है, लेकिन इन शिकायतों पर संज्ञान लेने की बजाय उन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हनुमान गली के अवैध निर्माण के मामले में अब तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि वीडीए के अधिकारी जानबूझकर चुप्पी साधे हुए हैं। वीडीए सूत्रों की माने तो
वीडीए का पूरा तंत्र अब रजिस्ट्री कार्यालय, नक्शा सत्यापन और ज़ोनल निरीक्षण विभाग के बीच बिचौलिए नेटवर्क में बदल गया है। हर चीज की फीस तय है, बस कागजों में कार्रवाई दिखा दो, असल में कुछ नहीं होता।
इस पूरे मामले में वीडीए की निष्क्रियता यह दर्शाती है कि या तो उन्हें ऊपर से संरक्षण प्राप्त है या फिर पूरी व्यवस्था ही भ्रष्टाचार से सड़ चुकी है।
सीएम साहब ! कौन तय करेगा जवाबदेही ?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अवैध निर्माणों पर कड़ी कार्रवाई करने के स्पष्ट निर्देश सभी ज़िलों को दे रखे हैं। गंगा किनारे किसी भी हाल में निर्माण नहीं होगा...यह निर्देश खुद मुख्यमंत्री ने वाराणसी दौरे के दौरान दोहराया था। लेकिन हनुमान गली से लेकर खोजवा, नगवा, अस्सी और शिवाला जैसे क्षेत्रों में गंगा के किनारे लगातार निर्माण कार्य जारी हैं। मुख्यमंत्री के निर्देशों की धज्जियां उड़ाने वाले अफसर खुलेआम सरकार की साख को बट्टा लगा रहे हैं, लेकिन कोई सख्त कार्यवाही अब तक नहीं हुई है। स्थिति देखकर ऐसा लगता है कि योगी सरकार की तमाम घोषणाएं और आदेश ज़मीनी स्तर पर अफसरों द्वारा नज़रअंदाज़ किए जा रहे हैं। प्रदेश सरकार द्वारा गठित विशेष निगरानी टीमें (जिसमें सीएम के खासमखास शामिल हैं) वाराणसी में कागज़ों तक ही सीमित हैं। मुख्यमंत्री की प्राथमिकताओं के बावजूद जब वाराणसी जैसे वीआईपी ज़िले में आदेशों की ऐसी अवहेलना हो रही है, तो अन्य जिलों का हाल क्या होगा, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं। जनता अब यह जानना चाहती है कि क्या सरकार इन अफसरों से जवाब तलब करेगी ? क्या जोनल अधिकारी संजीव कुमार, वीडीए उपाध्यक्ष और भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होगी ? या फिर हर बार की तरह इस बार भी कुछ दिन शोर मचने के बाद मामला ठंडा कर दिया जाएगा ?
क्या कभी रोके जा सकेंगे ये बेलगाम निर्माण ?
वाराणसी में जो हो रहा है वह सिर्फ एक शहर की नियोजन व्यवस्था की विफलता नहीं, बल्कि एक गहरी और संगठित प्रशासनिक सड़ांध का संकेत है। जोनल अधिकारी से लेकर विकास प्राधिकरण के उच्चाधिकारियों तक, हर स्तर पर मिलीभगत और भ्रष्टाचार का ऐसा जाल फैला है कि कानून सिर्फ किताबों में रह गया है। हनुमान गली जैसे संकरी जगहों में जहां बच्चों को खेलने की, बुजुर्गों को चलने की जगह नहीं बची, वहां पर धड़ल्ले से अवैध निर्माण जारी है। गंगा किनारे जहां निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित है, वहां आलीशान होटल और फ्लैट खड़े हो रहे हैं। और ये सब हो रहा है प्रशासन की आंखों के सामने, उनकी मिलीभगत से। जब तक भ्रष्ट अधिकारियों और दलालों के गठजोड़ पर सीधा और प्रभावी प्रहार नहीं होगा, तब तक न तो गंगा की धरोहर बचेगी, न शहर की सांसें। शासन की साख तभी बचेगी जब दोषियों के खिलाफ न सिर्फ सस्पेंशन बल्कि कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए।
सवाल यह नहीं है कि अवैध निर्माण को रोका जा सकता है या नहीं, सवाल यह है कि क्या सरकार वाकई ऐसा करना चाहती है ? जनता अब जवाब चाहती है।
पार्ट-24
रणभेरी के कल के अंक में पढ़िए... जोनल संजीव कुमार के भ्रष्टाचार की एक और कहानी