भक्तों के प्रेम में भीगकर भगवान होंगे बीमार : 108 कलश गंगाजल से भगवान जगन्नाथ को कराया देव स्नान, 14 दिनों तक काढ़े का करेंगे सेवन

वाराणसी (रणभेरी): आज यानी कि 11 जून को स्नान पूर्णिमा मनाई जा रही है। पूर्णिमा तिथि पर भगवान जगन्नाथ का 84 घाटों के गंगा जल से अभिषेक किया गया। गर्मी से परेशान भक्त हर साल गंगा जल से भगवान को स्नान कराते हैं। भक्तों द्वारा कराए जानें वाले इस स्नान के कारण अगले दिन भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा बीमार हो जाती हैं। फिर पूरे 15 दिन वो भक्तों को दर्शन नहीं देते हैं। इन दिनों भगवान को परवल के काढ़े का भोग लगाया जाता है। आज भोर में 5 बजे मंगला आरती के बाद 5 तरह के मेवे का भोग लगा। फिर भक्तों के जल चढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ।
मंदिर गर्भगृह के छत पर भगवान का सिंहासन लगा है जहां वह दर्शन दे रहे। भगवान को आज गुलाबी वस्त्र पहनाया गया है। यहां जलाभिषेक करने के लिए काशीवासियों के साथ साथ अन्य राज्यों से भी भक्त पहुंच रहे हैं। यह भोर से ही भक्त प्रभु को जल, तुलसी की माला और फल चढा रहे है। यह सिलसिला देर शाम तक जारी रहेगा। मान्यता है कि जो जगन्नाथ पुरी मंदिर नहीं जा पाते हैं उनको काशी में ही उतना फल मिलता है भगवान जगन्नाथ के दर्शन करके। वाराणसी के अस्सी क्षेत्र में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर पुरातत्व विभाग के अनुसार 1711 ईसवी का है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित राधेश्याम पांडेय ने बताया ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को जब गर्मी की अधिकता होती है तो उस दिन देव प्रतिमाओं को जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान के बाद तीनों देवता बीमार पड़ जाते हैं और फिर वह एकांतवास में चले जाते हैं। एकांतवास की इस प्रक्रिया को पुरी में 'अनासरा' कहते हैं। इन 15 दिनों में देव विग्रहों के दर्शन नहीं होते हैं। 15 दिनों के बाद जब जगन्नाथ जी ठीक होते हैं तब उस दिन 'नैनासार उत्सव' मनाया जाता है। इस दिन भगवान का फिर से श्रृंगार किया जाता है, उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और इसके बाद वह भ्रमण के लिए तैयार होते हैं। उन्होंने बताया 27 जून को रथयात्रा पर मेली की शुरुआत होगी प्रभु वहीं तीन दिन भक्तों को दर्शन देंगे।