एल्विश यादव को हाईकोर्ट से झटका, सांप से जहर निकालने के मामले में दर्ज एफआईआर नहीं होगी रद्द

एल्विश यादव को हाईकोर्ट से झटका, सांप से जहर निकालने के मामले में दर्ज एफआईआर नहीं होगी रद्द

प्रयागराज। सोशल मीडिया एंफ्लुएंसर और यू-ट्यूबर एल्विश यादव को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने एल्विश यादव की रेव पार्टी में ड्रग्स-सांप के जहर के इस्तेमाल मामले में चार्जशीट-समन रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया है।  

इस मामले में की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने की। सोमवार को जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव ने इस मामले में फैसला सुनाया। इस मामले में तीन नवंबर 2023 को नोएडा के सेक्टर 49 में यू-ट्यूबर एल्विश यादव समेत कई लोगों पर प्राथमिकी दर्ज हुई थी। पीएफए आगेर्नाइजेशन के एनिमल वेलफेयर आॅफिसर गौरव गुप्ता ने सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। सभी पर रेव पार्टी में ड्रग्स, स्नेक वेनम के प्रयोग व जिंदा सांपों के साथ वीडियो बनाने का आरोप लगा था।

अलग-अलग कई धाराओं में दर्ज है एफआईआर

एल्विश यादव के खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और आईपीसी व एनडीपीएस अधिनियम की कई धाराओं में मामला दर्ज है। इसी मामले में नोएटा सेक्टर-49 में एक थाने में दर्ज एफआईआर में एल्विश के खिलाफ चार्जशीट फाइल की गई है। साथ ही अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा समन भी जारी किया गया है।

एल्विश ने किया ये दावा

एल्विश की ओर से इस चार्जशीट और कार्यवाही को यह कहते हुए चुनौती दी गई है कि एल्विश के खिलाफ जानकारी देने वाला वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए सक्षम नहीं था। यह दलील दी गई है कि आवेदक यानी कि एल्विश के पास से कोई सांप या नशीला पदार्थ बरामद नहीं हुआ है। वहीं एल्विश और अन्य सह-अभियुक्तों के बीच कोई संबंध स्थापित नहीं हुआ है। एल्विश की ओर से ये भी कहा गया है कि सूचना देने वाला व्यक्ति अब पशु कल्याण अधिकारी नहीं है, लेकिन उसने खुद को पशु कल्याण अधिकारी बताते हुए एफआईआर दर्ज कराई है।

एल्विश का दावा- आरोपों को साबित करने में फेल रही पुलिस

एल्विश की ओर से कोर्ट में यह भी दलील दी गई कि आवेदक एक प्रभावशाली व्यक्ति है और टेलीविजन पर कई रियलिटी शो में दिखाई देता है। ऐसे में एफआईआर में एल्विश का नाम होने से मीडिया का इस ओर बहुत ध्यान गया। मीडिया की खबरों के चलते ही पुलिस अधिकारियों ने आवेदक को गिरफ्तार करने के तुरंत बाद धारा 27 और 27 ए एनडीपीएस अधिनियम को लागू करके मामले को और अधिक संवेदनशील बनाने का प्रयास किया। हालांकि, पुलिस अतिरिक्त आरोपों को साबित करने में फेल रही है। जिसके बाद उन्हें हटा दिया गया।