सीएम साहब.... न सील, न ढील...जोनल साहब करते है डायरेक्ट डील

सीएम साहब.... न सील, न ढील...जोनल साहब करते है डायरेक्ट डील

जोनल की देख रेख में गंगा किनारे खड़े हो रहे बहुमंजिला मकान

नगवां वार्ड में गंगा से सटे सुखानंद बाबा आश्रम के पास धड़ल्ले से जारी है अवैध निर्माण

भेलूपुर वार्ड में लगी है अवैध निर्माणों की होड़ वीडीए के कारनामों का चारो तरफ है शोर

अजीत सिंह 

वाराणसी (रणभेरी सं.)। काशी, जिसे विश्व की प्राचीनतम जीवित नगरी माना जाता है, केवल मंदिरों और घाटों की नगरी नहीं है, बल्कि यह भारतीय आस्था, संस्कृति और विरासत का प्रतीक भी है। गंगा नदी, जो इस शहर की आत्मा है, केवल एक जलधारा नहीं बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था और जीवन की  रेखा है। परंतु, इस आध्यात्मिक नगरी में विकास की आड़ में ब  भ्रष्टाचार का दीमक अपनी जगह बनाता जा रहा है। इस भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा उदाहरण वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के कार्यकलाप हैं। विकास की प्रक्रिया में जिस संस्था का कार्य नियमन और पारदर्शिता सुनिश्चित करना होता है, वही संस्था अब भ्रष्टाचार और मिलीभगत का प्रमुख  केंद्र बन गया है। हाल के महीनों में प्राधिकरण के जोन 4 अंतर्गत नगवां वार्ड में सुखानंद बाबा आश्रम के पास गंगा तट से सटे क्षेत्र में खुलेआम जो हो मिर्माण रहा है, वह इस बात का प्रमाण है कि किस प्रकार नियम कानून, आदेश और पर्यावरणीय सरोकारों को ताक पर रखकर बहुमंजिला इमारतें खड़ी की जा रही हैं। हाईकोर्ट द्वारा गंगा से 200 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के निर्माण पर रोक के बावजूद, खुलेआम निर्माण कार्य जारी है। यह न केवल न्यायिक आदेशों की अवहेलना है, बल्कि गंगा और वाराणसी की सांस्कृतिक आत्मा के साथ धोखा भी है।

वीडीए की मिलीभगत और भ्रष्ट तंत्र से अवैध निर्माणों की बाढ़

वाराणसी विकास प्राधिकरण, जो कि एक नियामक संस्था के रूप में कार्य करता है, अब भ्रष्टाचार की जड़ बन चुका है। वीसी से लेकर जूनियर इंजीनियर तक, पूरा ढांचा अवैध निर्माण कराने और उसके बदले रिश्वत लेने की प्रवृत्ति में लिप्त है। हालात ऐसे हो चुके है कि शहर के हर इलाके में एक 'सूचना तंत्र' सक्रिय है, जिसे खुद वीडीए के अधिकारियों ने खड़ा किया है। ये लोग रेकी कर अवैध निर्माण की जानकारी अफसरों तक पहुंचाते हैं, जिसके बाद संबंधित जोनल अधिकारी, जेई और अन्य अधिकारी मौके पर पहुंचते हैं। यह पहुंच कानून लागू करने के लिए नहीं बल्कि 'डील डॉल' तय करने के लिए होती है। सील की प्रक्रिया भी एक दिखावा बन चुकी है। किसी अवैध निर्माण पर अगर सील लगती है, तो उसका उद्देश्य निर्माण रोकना नहीं बल्कि दबाव बनाकर मोटी रकम वसूलना होता है। जब तक बिल्डर 'डील' नहीं करता, तब तक निर्माण बंद रहता है। डील होते ही सील हटा दी जाती है, या फिर अधिकारी आंख मूंद लेते हैं। भेलूपुर जोन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इस क्षेत्र में वीडीए का कार्यालय भी है, लेकिन उसके आसपास ही सबसे अधिक अवैध निर्माण हो रहे हैं। कारण स्पष्ट है, अधिकारियों की मिलीभगत। इस विभाग के कई ऐसे अधिकारी हैं जिनका नाम पहले भी भ्रष्टाचार को लेकर चर्चा में रहा है, लेकिन किसी के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई  नहीं हुई। विभागीय सूत्रों की मानें तो वीसी भी अब भ्रष्टाचार के इस पूरे खेल का हिस्सा बने रहते हैं या तो चुप्पी साधकर, या फिर हिस्सेदारी निभाकर। वीडीए के इस भ्रष्ट तंत्र में दलालों की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये दलाल ही बिल्डर और अधिकारियों के बीच सेतु का काम करते हैं। वे 'कमीशन' के आधार पर निर्माण स्वीकृति दिलाते हैं, निर्माण के दौरान आने वाली बाधाओं को हटवाते हैं, और यदि कोई शिकायत होती है तो उसे दबवाते भी हैं। यह तंत्र इतना मजबूत और संगठित है कि आम जनता की शिकायतों का कोई असर नहीं होता। जब एक ओर गरीबों के घरों पर बुलडोजर चलाया जाता है, वहीं दूसरी ओर रसूखदारों के लिए नियमों को मोड़ा-मरोड़ा जाता है। 

गंगा किनारे गंगवार की जमीन पर चल रहा अवैध निर्माणों का खेल

नगवां वार्ड स्थित सुखानंद बाबा आश्रम के समीप गंगा के महज 100.150 मीटर की दूरी पर अवैध रूप से बहुमंजिला इमारत का निर्माण किया जा रहा है। यह क्षेत्र न केवल हाईकोर्ट के 200 मीटर प्रतिबंध क्षेत्र में आता है, बल्कि गंगा पुनरुद्धार और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कई राष्ट्रीय नीतियों के तहत संवेदनशील भी घोषित है। इसे गंगवार का क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके बावजूद, निर्माण कार्य बिना किसी रोक-टोक के जारी है, मानो कानून और प्रशासन केवल नाम मात्र के हों। स्थानीय निवासियों ने बताया कि निर्माण कार्य कई महीनों से चल रहा है। दिन में मजदूर और रात में सामग्री की ढुलाई होती है। जब कुछ जागरूक नागरिकों ने इस निर्माण की शिकायत वीडीए कार्यालय से की, तो या तो उन्हें टाल दिया गया या यह कहा गया कि "जांच की जाएगी।" पर जांच न तो कभी हुई, न कोई कार्रवाई। सूत्रों के अनुसार, यह निर्माण एक बड़े रसूख व्यक्ति द्वारा कराया जा रहा है, जिसका उद्देश्य वहां होटल खड़ा करना है। यह भी पता चला है कि इस निर्माण में वीडीए के मेंबर और सीएम के खासमखास के संरक्षण और स्थानीय दलालों की बलबूते किया जा रहा है जो वीडीए के जोनल अधिकारी से सेटिंग कराकर आवश्यक अनुमति और निरीक्षण से बचाव सुनिश्चित करते हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि जिस स्थान पर निर्माण हो रहा है, वह भेलूपुर जोनल कार्यालय से बमुश्किल 300 मीटर की दूरी पर है। फिर भी, जोनल अधिकारी और जेई ने इसे देखने की जहमत तक नहीं उठाई। या कहें, उन्होंने जानबूझकर नजरअंदाजी की क्योंकि "डील डन" हो चुकी थी।

खुलेआम हाइकोर्ट के आदेश की उड़ाई जा रही धज्जियां

एक आरटीआई कार्यकर्ता ने बताया कि उन्होंने जब इस निर्माण की जानकारी मांगी तो उन्हें जवाब मिला कि "रिकॉर्ड में ऐसा कोई निर्माण स्वीकृत नहीं है।" इसका सीधा अर्थ है कि यह निर्माण पूर्णत: अवैध है, परंतु फिर भी यह धड़ल्ले से जारी है और इसका एकमात्र कारण है...भ्रष्टाचार। इस निर्माण स्थल पर न तो कोई सरकारी बोर्ड लगा है, न ही किसी निर्माण अनुज्ञा की प्रति चिपकाई गई है, जोकि नियमानुसार अनिवार्य होती है। यह इस बात का संकेत है कि अधिकारियों को इस निर्माण की जानकारी है, लेकिन वे खुद ही उसे संरक्षण दे रहे हैं। यह पूरा मामला दशार्ता है कि कैसे एक सुनियोजित तंत्र के तहत गंगा के किनारे अवैध निर्माण कराए जा रहे हैं, और कैसे हाईकोर्ट के आदेशों का खुलेआम मजाक बनाया जा रहा है। जब यह सब प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में हो रहा है, तब प्रश्न उठता है... क्या विकास का मतलब कानून की धज्जियां उड़ाकर पर्यावरण और सांस्कृतिक विरासत को मिटाना ही है ?

प्रशासनिक चुप्पी और राजनीतिक संरक्षण

वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) में फैले भ्रष्टाचार की जड़ें केवल अफसरशाही तक सीमित नहीं हैं। इस गहरी साजिश की सबसे मजबूत कड़ी है प्रशासनिक चुप्पी और राजनीतिक संरक्षण। जहां एक ओर जोनल अधिकारी, जेई और अन्य विभागीय कर्मचारी अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करने में नाकाम साबित हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधि भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। यह चुप्पी संयोग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति प्रतीत होती है। सूत्रों की मानें तो अवैध निर्माण कराने वाले बिल्डरों और रसूखदारों के तार सीधे-सीधे कुछ प्रभावशाली नेताओं और अधिकारियों से जुड़े हैं। यही वजह है कि इन निमार्णों पर कार्रवाई करने की बजाय विभागीय अधिकारी आंख मूंद लेते हैं। जब भी कोई शिकायत होती है, तो जांच की रस्मअदायगी कर फाइलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। 

हाईकोर्ट के आदेशों की अनदेखी और वीसी की भूमिका

गंगा किनारे दो सौ मीटर के भीतर किसी भी प्रकार के निर्माण पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से रोक लगा रखी है। यह आदेश सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि गंगा की पवित्रता और पारिस्थितिक संतुलन की रक्षा के लिए एक सख्त निर्देश है। लेकिन वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के लिए यह आदेश महज एक कागज का टुकड़ा बनकर रह गया है। सवाल यह है कि जब कोर्ट का आदेश इतना स्पष्ट है, तो फिर नगवां में सुखानंद बाबा आश्रम के पास बहुमंजिला निर्माण कैसे हो रहा है? इसका जवाब छिपा है वीडीए के शीर्ष पद पर बैठे और स्थानीय जिम्मेदारों की भूमिका में। एक ओर जहां वीसी को पूरे शहर के निर्माण कार्यों पर नजर रखनी होती है, वहीं दूसरी ओर जब बात रसूखदारों और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त लोगों की आती है, तो उनकी सक्रियता शून्य हो जाती है। सूत्रों के अनुसार, वीडीए वीसी को अवैध निमार्णों की जानकारी समय-समय पर मिलती रहती है। विभाग के भीतर बनी सूचना तंत्र के जरिए हर बड़ी गतिविधि उन तक पहुंचती है। बावजूद इसके, न तो कोई संज्ञान लिया जाता है और न ही कोई आदेश जारी होता है। इससे यह आशंका और भी गहरी हो जाती है कि कहीं न कहीं वीसी की मौन स्वीकृति भी इस गोरखधंधे में शामिल है। विडंबना यह है कि वीसी की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति अगर अपने पद और जिम्मेदारी का पालन नहीं करेगा, तो विभाग की कार्यशैली पर स्वाभाविक रूप से सवाल उठेंगे ही। 

पार्ट 14

रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए...
सद्दाम, अल्ताफ और रिजवान को आखिर किसका है संरक्षण ?